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अध्याय दूसरा। आने लगे। ये लोग हिन्दुस्तानी व्यापारियोंके जहाज़ोंसे माल लूटने लगे व शहरमें भी घूमकर प्रजाको कष्ट देने लगे। प्रजाकी पुकार सुन गुजरातके बादशाह मुज़फ्फरशाहने सन् १५१५में यहां किला बंधवाया और इनकी रोक व जांचका प्रबन्ध किया। दिनपर दिन गोपीपुराके आसपास रौनक बढ़ते देख गोपीने उस सुरज कंचनीके मरते समयके वचनको याद किया और उसका नाम कायम रखनेके लिये यही विचार किया कि इस वस्तीका नाम उसीके नामसे प्रसिद्ध हो ।
बादशाह मुज़फ्फरशाहसे गोपीने सब हाल कहा और सूरज नामः रखनेके लिये निवेदन किया। बादशाहने सिर्फ इस खयालसे कि वेश्याके नामसे नगरका नाम प्रसिद्ध करना ठीक न होगा, यह स्वीकार किया कि आखरी अक्षर जको बदलकर त कर दिया जाय । गोपीने स्वीकार किया और सन् १९२१ में इसका नाम सूरत प्रसिद्ध कर दिया । ज्यों २ व्यापार चमकता गया गुजरात के बादशाहका अमल बढ़ता गया । इस समय सूरत नगर एक बड़ा व्यापारी बन्दर था। सन् १५१४ में पुर्तगाला यात्री बार्बसा आया था। उसने लिखा है, सूरत बड़ा ही कीमती बन्दर था जहां मलाबार आदिसे जहाज़ आते 21 (Barbase describes Surat as a very important seaport frequented by many ships from malabar and all other ports vide Imp.G. 1908)। सन् १५४६ में अहमदाबादके बादशाहने एक किल्ला बनवाया।
सन् १५६१ में जब तीसरे मुज़फ्फरशाह गुजरातकी गद्दीपर बैठे तब सूरत मिरज़ाके हाथमें था। यह बादशाह अकबरसे विरुद्ध हो गया, तब देहलीका बादशाह अकबर स्वयं बड़ी भारी फौज
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