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म ध्वजसिंहासनच्छत्रचामरादिविभूषितम् । शास्त्रोक्तवर्णनोपेतं मानस्तंभाचलंकृतम् ॥५३॥
। जगज्जन्तूपकाराय केवलज्ञानभागिनः। परं निर्मापयामास यक्षराट् धर्मसिद्धये ॥५४ र्चासागर -१८
१८-चर्चा अठारहवीं प्रश्न- तीर्थकर केवली भगवान के केवलज्ञान उत्पन्न होनेके बाद गणधरोंकी, केवलियोंकी, अवधिज्ञानियोंकी, विक्रिया ऋद्धिको मारा करनेवाली गानो गारों में मतलाई है वह समवशरणमें रहने वालों को है अथवा उनके समय की है अर्थात् अनन्तर होनेवाले तोथंकरके उत्पन्न होने तक को है।
समाधान—यह गणना समवशरणमें रहनेवालों की है। श्री ऋषभदेवके समवशरणमें जितने मुनि आदि वर्तमान थे उन्हींको संख्या बतलाई है। मुनिराज आदि सब विहार समयमें भी साथ ही रहते हैं। सो हो श्रीरविषेणाचार्य विरचित पद्मपुराणमें चौथे पर्वमें लिखी है
तस्यासीद्गणपालानामशीतिश्चतुरुत्तरा। सहस्राणि च तावन्ति साधूनां सुतपोभताम् ।। ५८ ।। अत्यन्तशुद्धचित्तास्ते रविचन्द्रसमप्रभाः।
एभिः परिवृताः सर्वे र्जिना विहरते महीम् ॥ ५६ ॥ इससे सिद्ध होता है कि गणधर आदि सब मुनियोंको गणना समवशरणमें रहनेवालोंकी ही समझना | चाहिये । समवशरणको स्थितिसे आगे पीछेके मुनि इस संख्यासे बाहर हैं, वे इस संख्यामें शामिल नहीं हैं। जिस प्रकार श्रीऋषभदेवके समवशरणमें रहनेवालोंको संख्या बतलाई उसी प्रकार श्रीअजितनाथसे लेकर श्री। महावीर पर्यंत समस्त तीर्थंकरोंकी समझ लेना चाहिये।
१६-चर्चा उन्नीसवीं प्रश्न---इस पंचमकालके इस वर्तमान समयमें होनेवाले मुनिराज किस क्षेत्रमें ठहरें ? वन, उपवन, # पर्वत, गुफा, नवीके किनारे, श्मशान आदिमें ही निवास करें अथवा किसी और जगह भी अपनी स्थिति रक्खें। ।
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