Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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विषयानुक्रम
मंगलाचरण, पीढिकाबन्ध पृ. १ प्रथम पर्व
पृ. २
धातकी खण्ड द्वीप, मंगलावती विजय, रत्न संचय नगर, राजा कनकप्रभ, रानी सुवर्णमाला, पुत्र पद्मनाभ, कनकप्रभ का वृद्ध बैल को देखना और वैराग्य, संसार की असारता, पद्मनाभ का राज्याभिषेक, श्रीधरमुनि के समीप कनकप्रभ की दीक्षा,
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द्वितीयपर्व पृ. ५
पद्मनाभ का राज्य संचालन, स्वर्णनाभ नामक पुत्र की प्राप्ति, सुगन्धिपवन उद्यान में श्रीधर मुनि का आगमन, द्वारपाल और राजा की मुनि प्रशंसा, राजा का मुनि दर्शन, मुनि का धर्मोपदेश, मुनि द्वारा राजा के अतीत और अनागत भव का कथन । पद्मनाभ का पूर्व भव, (श्रीसेन कथा गा. २०७) पुष्करवर द्वीप के पश्चिम विदेह में सुगन्धि विजय का श्रीपुर नगर, श्रीषेण राजा, श्रीकान्ता राणी, रानी का पुत्र प्राप्ति के लिए शोकाकुल होना, पुत्र प्राप्ति विषयक राजा का मुनि से प्रश्न, मुनि द्वारा समाधान, पुत्र प्राप्ति, पुत्र का श्रीधर्म नामकरण, श्रीधर्म कुमार का प्रभावती राज कन्या से विवाह, प्रभावती देवी से श्रीकान्त नामक पुत्र का जन्म, श्रीकान्त का श्रीकान्ता नाम की कन्या से विवाह, श्रीधर्म का राज्यारोहन, श्रीषेण की श्रीप्रभ मुनि के समीप दीक्षा, श्रीधर्म की पितृ वियोग में राज्य की उपेक्षा, श्रीधर्म की विजय यात्रा, विजय यात्रा से वापसी के समय मार्ग में मुनि दर्शन, मुनि को यौवन काल में दीक्षा ग्रहण विषयक प्रश्न, मुनि द्वारा दीक्षा का कारण वृत्तान्त का कथन, मुनि का दीक्षा पूर्व का वृतान्त - विदेह क्षेत्र की विशाला नगरी, वहां का राजा जय, जय की रानी जयश्री, राजा की रानी के प्रति आसक्ति, राज्य की उपेक्षा, सामन्तों द्वारा राजा का निष्कासन, राजा का रानी के साथ वन में निवास, रानी द्वारा सिंहगुफा में पुत्र पुत्री प्रसव, सिंहनी की गर्जना से भयभीत रानी का पुत्र को लेकर भागना, पुत्री को सिंह गुफा में छोड़ना, सिंहनी द्वारा मानव कन्या को दूध पिलाकर बड़ा करना, केरल राजा द्वारा पुत्र का अपहरण, पश्चात् उसे रानी को सौपना, बालक नाम वनराज रखना । उसी वन में मुनि का उपदेश, मुनि की सेवा में केरलराज वनराज, जय और उसकी रानी जयश्री का आगमन, सिंहपर आरूढ हो कन्या का मुनि की सेवा में आगमन, मुनि द्वारा जय को पुत्र वनराज, पुत्री सिंहरथा का परिचय कराना, सभी का स्नेह मिलन, वनराज द्वारा खोये हुए राज्य की प्राप्ति । वनराज की हरिनामक पुत्र प्राप्ति के पश्चात् दीक्षा । हे श्रीधर्म ! 'में वही वनराज हूं। मेरा दीक्षा का कारण भी यही हैं ऐसा मुनि का कथन, श्रीधर का श्रीपुर की ओर प्रयाण, लंबे समय तक राज्य करने के बाद श्रीप्रभ मुनि के समीप दीक्षा, मृत्यु के बाद सौधर्मकल्प में देवत्व की प्राप्ति (गा. ४५९
तक)
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तृतीय पर्व (पृ. १९)
श्रीधर मुनि का देवलोक से च्युत होकर शुभानगरी के राजा अजितंजय की रानी अजिया के उदर से जन्म, बालक का अजितसेन नामकरण, अजितसेन का युवराजपद, अजितसेन का चण्डरुचि असुर द्वारा अपहरण, पुत्र के अपहरण से राजा अजितंजय की शोकातुरता, तपोभूषण मुनि का आकाश मार्ग से आगमन, चारणमुनि
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