Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 145
________________ ११४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय तस्स सुणिय वयणं उद्दीवियमच्छरो भणइ दूओ । गुरुगव्वक्खलिरगिरो पुरओ पुरओऽभिसप्पंतो ॥ २९५० ॥ अकुसलकम्मोदइणो बुझंति सयं न न य परुवएसा । समई च्चिय पुन्नग्गलाओ जाणंति करणिज्ज ॥ २९५१ ॥ न निमित्तमेत्थ सत्थं न सुयणभणिई न गुरुयणुवएसो । कुसलाकुसला हि मई दिव्ववसा जायइ नराण ॥ २९५२ ॥ निय पोरुसं कहतो सो सोहइ जो तहेव निव्वडइ । विक्कममयमत्ता उण हासट्ठाणं रणे हुंति ।। २९५३ ॥ जो अत्तणो परस्स य पढम चिय अंतरं न चिंतेइ । परिणामदारुणो से सरहस्स व विक्कमो मेहो ॥ २९५४ ।। इच्छंतो अहियसिरिं मइमंतो अत्तणो कुणउ वेरं । सह अहमेण समेण व बलवंतेणं तु तमजुत्तं ॥ २९५५ ॥ पेच्छंतो बहुपरिवारमप्पणो हयमई जियं चेव । सव्वं मन्नइ न मुणइ कज्जे विरलो च्चिय सहाओ ॥ २९५६ ।। नइवेगाओ पडणं दळु थड्ढाण सालविडवीण । वेयसतरु व्व नमिरो न होज्ज को नाम अहियबले ॥ २९५७ ॥ बहुसत्ता अविलंघा थिरा सया जइ वि हुंति ते दो वि । हरयस्स हरयवइणो तहा वि गुरु अंतरं दिळें ॥ २९५८ ॥ पियजंपिरपरिवारो सुहिए च्चिय मा हु वीससेज्ज तुमं । तारयगणपरियरिओ वि राहुणा जं ससी गसिओ ॥ २९५९ ॥ बहुतरुवरपरिवारियमवि धरणिधरं समं पि रुक्खेहिं । अन्नं च किं न पारइ पलाविउं जलनिही खुहिओ ॥ २९६० ।। सयमेव तए भणियं रणम्मि पयडं भविस्सइ परं च । जीहाए विणा जम्हा जाणिज्जइ न हु रसविसेसा ।। २९६१ ।। अहिए हिओवएसेण किं व मझं करेसु अभिरुइयं । पडिकले जमुवेक्खा हियसिक्खा होइ अणुकूले ।। २९६२ ।। ससुओ समागमित्ता तस्स सहं मुक्कमच्छरो होउं । पूयसु नियसिरकमलेहिं रणमहिं वा गलचुएहिं ।। २९६३ ।। इय तस्स गिरं सोउं खुहिया जुवरायपमुहसयलसहा । संपइ धरिया रन्ना अणुवायकरो त्ति कलिऊण ॥ २९६४ ।। वच्च तुम उचियगिहासणाइ ववहारमेयस्स कारेह । इय भणिऊण निउत्तं समुट्ठिओ नरवई तत्तो ।। २९६५ ।। सेसो वि सहालोओ विसज्जिओ तेण उठ्ठिऊण गओ। नियनियगिहाई रन्नो पायपणामं करेऊण ॥ २९६६ ।। जुवराएणं सद्धिं राया वि समं च मंतिवग्गेण । मंतणघरं पविट्ठो मंतीणं सम्मुहं भणइ ।। २९६७ ।। अम्हे वि नीइमग्गे कोसल्लं जं गया स तुम्ह गुणा । सो रविकराण महिमा जगं पयासेइ जं दिवसो ॥ २९६८ ।। अवि मेरुसमे वि ममं का चिंता आगयम्मि कज्जम्मि । सव्वत्तो वि हु जग्गंति तस्स तुम्हारिसा गुरुणो ।। २९६९ ।। को नाम नियट्टेज्जा अपहाओ पए पए परिखलंतो। अम्हे गए व्व मत्ते जइ होज्ज न अंकुसा तुन्भे ।। २९७० ॥ तुब्भं चेव मईए पुरक्कओ विक्कमो फुरइ अम्हं । न हि सत्तेओ वि रवी असारही जाइ नहपारं ॥ २९७१ ॥ जं तेण दूयवयणेण भासियं अम्ह निठुरं वयणं । तं तुब्भेहिं वि निसुयं सभागएहिं किमु भणामो ॥ २९७२ ।। तं तह सुणिउं सहसा जं मह कोवेण तरलियं न मणं । तममंति तस्स गेहं ति भाविलोयाववायभया ॥ २९७३ ॥ उदयंतो च्चिय वइरी निग्गहिओ नेय पयडइ वियारं । रोगो व्व इइ मईए सो अम्हे हणिउमभिलसइ ।। २९७४ ।। एत्तो च्चिय दंडाओ न परो तन्निग्गहे उवाओ त्ति । जइ अत्थि भणह सव्वन्नुणाहिआराओ धीविविहा ॥ २९७५ ।। इय भणिऊण नरिंदे मोणेण ठिए पयंपए मंती । पुरभूई नामेणं नयविणयविसिट्ठमिह वयणं ।। २९७६ ॥ तुम्ह पसाएणम्हे मईए रिद्धीए भायणं जाया । तम्हा तं चिय अम्हं गुरू सुही सामिओ बंधू ॥ २९७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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