Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ १७० सिरिचंदप्पहजिणचरियं सा पसरइ दिव्व झुणी जिणस्स जिय सजलजलयगज्जिरवा। गरुययरमोहनिद्दानिवडियजणबोहणत्थं व ॥ ५३४४ ॥ विशेषकम् ॥ सरयससिकिरणनिम्मलजसजं पिव विहाइ जं जं च । वुड्ढाइ तवसिरीए केसंतसिरिं समुव्वहइ ।। ५३४५ ।। जमसेसजगत्तयपुन्नतंतुसंताणसरिसमाभाइ । रंजियपुरंदरं रुइररयणखचियं कुणइ दंडं ॥ ५३४६ ।। तं देवरायकरकमलचलियचामरजुगं जगपहुस्स । सहइ ढलंतं पुण पुण नमिरं च गुणाणुरागेण ।। ५३४७ ॥ विशेषकम् ।। जच्चतवणिज्जमइयं विचित्तमणिनियरचित्तयं तुंगं । वित्थिन्नं विमलसमुल्लसंतकिरिणोहदिप्पंतं ।। ५३४८ ।। सीहासणं विरायइ भत्तीए नियपए समुज्झित्ता । जिणवरआसणहेउं समागयं मेरुसिंग व ॥ ५३४९ ॥ जुयलं ॥ नीरयनिरब्भगयणे जह सोहइ तरणिकिरणपब्भारो । डिंडीरपिंडपंडुरखीरोयहिसविहदेसो वा ।। ५३५० ॥ जलहिस्स महणसमए अमयपवाहोऽहवा पवित्थरिओ। तह रेहइ जिणतणुकिरिणबद्धभामंडलं रुइरं ।। ५३५१ ।। अवि य -- देहाणुमग्गलग्गं दीसइ भामंडलं ससिपहस्स । सेवाइ रयणिनाहेण पेसियं किरणजालं व ॥ ५३५२ ॥ गुरुपडिरवभरियनहंगणो य बहिरियजणोह सुइविवरो । पठुक्कंठसिहंडीहि जोइओ घणरवभमेण ॥ ५३.३ ।। विबुहो बोहणत्थपहओ वज्जतो देवदुंदुही सहइ । आहवणं च कुणंतो जिणपासे दूर चारीण ॥ ५३५४ ॥ जुयलं ॥ च्छाया न जस्स सुलहा नीसेससुरासुरेहिं वि जयम्मि । भवदवगिम्हुम्हाए गाढं परितावियतणूहिं ।। ५३५५ ॥ तस्स वि छायं अहयं जणेमि सीसोवरिट्ठियं संतं । तिजयप्पहुस्स एवं किंकणिरावेण जं कहइ ।। ५३५६ ।। तं सहइ थूलनित्तुलनिम्मलमुत्ताहलोह हसिरं व । च्छत्तत्तयं जिणिंदस्स कुमुयसरयब्भसमवन्नं ॥ ५३५७ ॥ विशेषकम्॥ अन्नं च - आबद्धनीलमणिकिरणजालनवहरियजणियसद्धाए । पासं न जस्स कइय वि विमुंचई मुद्धहरिणउलं ॥ ५३५८ ।। पवियसियकणयकमलट्ठियं तयं धम्मचक्कमइरम्मं । सोहइ जिणिंदपुरओ सुरकयनीलिंदनीलमयं ।। ५३५९ ।। (जुयलं) माणिक्कखंडमंडियचामीयरचारुदंडकयसोहो । पवणपहल्लिरआबद्धकिंकिणीरावरमणिज्जो ॥ ५३६० ॥ तिहुयणगुरुस्स पुरओ सहइ महिंदज्झओ महातुंगो। उड्ढमुहमुल्लसंतो सिवगइमग्गं व दंसंतो ।। ५३६१ ॥ देवा य पहरिसेणं कलयलसद्देण सव्वओ चेव । उक्किठि सीहनायं करिति तित्थयरपामले ॥ ५३६२ ।। एत्थंतरम्मि परिसाओ इंति ताओ पयाहिणं दाउं । वाराओ तिन्नि तित्थेसरस्स तो ठंति सट्ठाणे ।। ५३६३ ।। तासिं च कमो एवं भयवं पि पयप्पयासणा पुव्वं । पढम चिय पडिबोहइ अट्ठासी गणहरे जे उ ॥ ५३६४ ।। उत्तमकलजाइगणा अच्चब्भयरूवसंपयाकलिया। नीसेसलक्खणधरा तिवई सणिऊण जिणपासे ।। ५३६५ ।। उप्पत्तिविगमधुवपयडरूवनियबुद्धिपयरिसगुणेण । उवलहियसयलतत्ता दुवालसंग पकुव्वंति ।। ५३६६ ॥ आयारो सूयगडो ठाणं समवाय भगवईओ य । नायाधम्मकहाओ सत्तमयमुवासगदसाओ ॥ ५३६७ ।। अंतगडाणुत्तरओ उवाइयाणं दसाओ तह दुण्णि । तह पण्हावागरणं एक्कारसं विवागसुयं ।। ५३६८ ॥ एयाणं पढमंगं अट्ठारसपयसहस्सपरिमाणं । सेसाई हुंति दस पुण दुगुणा दुगुणाइ माणेण ।। ५३६९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246