Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 212
________________ अखलियपयावपसरनिवकहा १८१ अट्ठहि सएहिं सूरो चंदो असिएहिं अट्ठहिं सएहिं । उवरिमतलं च जोयणसएहिं नवहिं भवे ताण ॥ ५६४१ ॥ सड्ढाए रज्जूए तदुवरि वेमाणिया सुरा हुंति । सोहम्माइदुवालस कप्पेसुं कप्पसंपन्ना ॥ ५६४२ ॥ कप्पाईया नवसु य गेवेज्जेसुं अणुत्तरेसुं च । पंचसु पवरविमाणेसु हुंति सययं सुहेक्कनिहा ।। ५६४३ ।। तेसु य जहन्नमाउं सोहम्मे पलियमेक्कमुवरइयं । दो सागरोवमाई उक्कोसेणं तु तत्थ ट्ठिई ।। ५६४४ ।। ईसाणे वि हु एवं दोसु वि ठाणेसु नवरमहियत्तं । कप्पे सणंकुमारे जहन्नओ दोन्नि अयराई ॥ ५६४५ ॥ उक्कोसेणं सत्तउ माहिन्दे ताई दो वि अहियाई । सत्तेव बंभलोए जहन्नमियरं च दस ताई ।। ५६४६ ।। दस चेव जहन्नेणं लंतयकप्पम्मि चउदसुक्कोसा । सुक्के जहन्नओ चोद्दसेव सत्तरस उक्कोसा ।। ५६४७ ।। सत्तरस सहस्सारे जहन्नओ अट्ठदस उ उक्कोसा । अट्ठारसेव आणयकप्पम्मि जहन्नओ इंति ॥ ५६४८ ॥ उक्कोसेणं पुण तत्थ चेव एकूणविंसई होइ । पाणयकप्पे स च्चिय जहन्नओ विसई अयरा ।। ५६४९ ॥ एवं विंस जहन्ना उक्कोसा आरणम्मि इगवीसा । स च्चिय जहन्नमच्चुयकप्पे बावीस उक्कोसा ।। ५६५० ।। हेट्ठिल्लुक्कोसठिई एवं उवरुवरि होइ हु जहन्ना । उक्कोसेणेगुत्तरवुड्ढी नव जाव गेवेज्जा ॥ ५६५१ ॥ विजयाइसु चउसु पुणो इगतीस जहन्नओ वि अयराई । उक्कोसेण उ तेत्तीस हंति सव्वट्ठसिद्धे उ ॥ ५६५२ ॥ अजहन्नाणुक्कोसा तेत्तीसं सागरोवमाई सया। एत्तो उड्ढं अहियं पि व ट्ठिउं सक्कइ न को वि ।। ५६५३ ।। देवाउपालराएण एवमेसा ठिई कया ताव । अस्सायोदयपुमुहा वि तत्थ पयडंति नियसत्तिं ॥ ५६५४ ॥ चउसु वि देव निकाएसु जेण इंदाणणो सुरादसहा ।। जं संति केइ सुरजम्मपत्तसोक्खाहिमाणधणा ।। ५६५५ ॥ ईसाविसायमयकोहलोभपमुहेण मोहकडएण । तेसु वि जगडिज्जंतेसु जणइ दुक्खं असायभडो ॥ ५६५६ ।। तहा हि - परआणा करणेणं कस्स वि कस्स वि य परिभवभरेण । कस्स वि नियपरियणआणखंडणेणं च दुसहेण ।। ५६५७ ।। कस्स वि भवणं दठूण अत्तणो गब्भवासपडणं च । उप्पायइ गुरुदुक्खं लद्धवयासो असायभडो ।। ५६५८ ॥ जे उण नव गेवेज्जेसु संति पाएण तेसिमणवरयं । अहमिंदत्तेणं चिय जणेइ साओदओ सोक्खं ॥ ५६५९ ।। चारित्तधम्मरायस्स चेव आणाइ एत्थ य पवेसो । देवाणुपुब्विनामाइ नवरि लब्भइ पओलीए ।। ५६६० ।। मणुयाणुपुव्विनामा बीयपओली वि अत्थि एत्थ परं । तीए विणिग्गमो च्चिय न पवेसो होइ कस्सा वि ॥ ५६६१ ।। एवं च जइ वि मिच्छत्तमंतिवसवत्तिणो वि इह संति । जइणपुरवासरहियाण तह वि ताणं न हु पवेसो ॥ ५६६२ ।। जं जइणपुरे वसिउं भावविहीणा वि तह पवज्जेउं । चारित्तधम्मरायस्स आणमिह इंति न हु इहरा ॥ ५६६३ ।। जे पुण सुबोहरायस्स चेव वसवत्तिणो कया पुट्विं । सम्मत्तअमच्चेणं जइणपुरे वासिऊण चिरं ।। ५६६४ ॥ चारित्तधम्मराएण संगया तयणु हुंति भावेण । तेसिं सम्मत्तजुयाण तत्थ को वारइ पवेसं ॥ ५६६५ ॥ साओदओ वि तेसिं जणइ सुहं केवलं ठिइखएणं । तत्तो निव्वासेउं ते नरनयरीए खिप्पंति ॥ ५६६६ ।। पंचोत्तरपवरविमाणवासिणो जे य संति ताणं पुणो। मिच्छत्तअमच्चेणं संगो न हु होइ कइया वि ॥ ५६६७ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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