Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 211
________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं (८० मणुयगई नयरीए एवं मणुयाउपालदेवो वि । सायासायाइ पभूयसुहडसंपत्तसाहेज्जो ॥ ५६१३ ।। गब्भुप्पन्नमणूसाण कुणइ आउट्ठिई जहन्नेण । अंतोमुहुत्तमुक्कोसओ उ पलिओवमे तिन्नि ।। ५६१४ ।। कायठिई पुण एत्थ वि अट्ठभवग्गहणपरिमियं चेव । तत्तो असायउदयाओ विविहपीडा उ कारवई ।। ५६१५ ॥ इट्ठविओगाणिट्ठप्पओगजणियाइ जेण दुक्खाई । सारीरमाणसाई मणुयाण असायउदएण ॥ ५६१६ ।। साओदयाइहिंतो केइ वि सोक्खाई अणुहवावेई । नीयागोयाईहिं उ नीयागोयत्तणाइ पुणो ॥ ५६१७ ।। साओदयाइणो नवरमेत्थ सुकयाहियाण केसि पि । इयरुदया पुण इयराण हुंति पाएण निच्चं पि ॥ ५६१८ ।। जे वि हु सम्मुच्छिमया मणुधा तेसिं सया वि असुहुदया। आउं जहन्नमुक्कोसगं च अंतोमुहुत्तं ति ।। ५६१९ ॥ एएसिं उभएसि पि जाउ नयरी तहिं पओलीओ। पंचनरयाणुपुव्वीमाईओ सिवपओलीए ॥ ५६२० ॥ मणुयाणुपुब्वियाए तासु पवेसो विणिग्गमो दो वि । लब्भंती इयराहि उ विणिग्गमो चेव न पवेसो ॥ ५६२१ ।। जा उण सिवप्पओली पिहियं चिय तीए दाणमणवरयं । न हु को वि सो वि तीए लहेइ निक्कासमवि काउं ॥ ५६२२ जे च्चिय सबोहनरवइबलेण सम्मत्तमंतिसंजत्तो । पाविय मणस्सगइपरिनिविटठपज्जत्तगिहिवासो ॥ ५६२३ ।। जइणपुरमज्झवत्ती होऊणुल्लसियजीवनियविरिओ। चारित्तधम्मसामंतदिन्नअइगरुयसाहेज्जो ।। ५६२४ ।। सिवनयरिं गंतुमणो निद्धाडियसयलमोहरायबलो । होउं केवललच्छीए भायणं जणियजणचोज्जो ॥ ५६२५ ॥ सो च्चिय आउनरिंदं पिहणियनामाइ सुहडग्णसहियं । उग्घाडिऊण वच्चइ सिवप्पओलीए सिवनयरिं ।। ५६२६ ॥ एत्तो चिय एसा संतिया विमग्गं पि लहइ जं न लहुं । (..........) इमीए अन्नो जणो कोइ ।। ५६२७ ।। रयणप्पहाए उवरिल्ल पयरभूमीए रज्जुमाणाए । एसा मणुस्सगइपुरवरी य संचिट्ठइ निविट्ठा ।। ५६२८ ॥ पणयालीसं जोयणलक्खमाणं इमीए नायव्वं । आयामवित्थरेहिं पायारो माणुसनगो य ॥ ५६२९ ।। तिरिगईनयरी उण रज्जुपमाणा तहिं पओलीओ। तासु य तिरियाणुपुव्वीए (..........) ।। ५६३० ।। निक्कासो य पवेसो य होइ इयराहि निग्गमो चेव । लहु पारियाओ नयरीसु संति अवराओ वि बहूओ ।। ५६३१ ॥ देवगईनयरीए राया देवाउपालनामो वि । देवाणं तह चेव य आउठिईए कुणइ चिंतं ।। ५६३२ ।। भवणाहिववंतरजोइसाण वेमाणियाण तह चेव । चउरो तत्थ निकाया वसंति पाएण सुहकलिया ॥ ५६३३ ॥ असुरा नागा विज्जू सुवन्नअग्गीयवाउथणिया य । उदहीदीवदिसा वि य आइल्ला दसविहा ताव ॥ ५६३४ ।। भूयपिसाया जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । मह उरगा गंधव्वा वंतरदेवा य अट्ठविहा ।। ५६३५ ।। उभएसिं पि इमेसिं आउट्ठिइ चिंतणं कयं चेव । उक्कोसजहन्नगयं रयणप्पहनयरिपत्थावे ॥ ५६३६ ।। चंदाइच्चा गहरिक्खतारया जोइसा उ पंचविहा । चंदाण तत्थ पलियं अब्भहियं वासलक्खेण ।। ५६३७ ।। आइच्चाणं तं चिय वाससहस्साहियं गहाणं तु । संपुन्नमेव पलियं नक्खत्ताणं च तस्सद्धं ।। ५६३८ ।। ताराण चउन्भागो पलियस्स जहन्नओ उ विन्नेओ । तस्सेव अट्ठ भाओ आउयचिंताइ कुसलेहिं ।। ५६३९ ।। तेसिं पुरा वासाणं हेट्ठिल्लतलो नहम्मि रयणाए । समभागाओ सत्तहि नउएहिं जोयणसएहिं ।। ५६४० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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