Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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अपमाने
जो गुणनमिरो होउं सयं पि परपरिभवं सहेइ नरो । दिट्ठपहेहिं भरिज्जइ जलेहिं जलहि व्व सो तेहिं ।। २९९६ ।।
अपात्रे
पडिक जमुवेक्खा हियसिक्खा होइ अणुकूले || २९६२ ॥
अप्रमादे
१९५
या कज्जाई जओ हवंति, पाएण विग्घेहिं उवद्दुयाइं । सामग्गियं तो मणुयत्तमाई, खणं पि लद्धं न पमाइयव्वं ॥ १०४ सेयं च कज्जं तमिहप्पसिद्धं, जं देवलच्छीए हवेज्ज हेऊ । जुत्ताइ सुद्धाए जसस्सिरीए, सुमाणुसत्तस्स य मोक्खमूलं ।। १०५ नहु इच्छित्थलाभे कुणइ विलंब अयाणो वि ॥ २३६९ ॥
असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते किं नु विहिंसा अजया गहिंति ।। ४०९४ अभयदाने
भव्वत्ते परिपाकं, पत्ते लद्धे य कह वि सम्मत्ते । जायम्मि सुद्धबोहे, होइ मई अभयदाणम्मि ।। १३२१ ।। संपन्नाइ मईए, एवं धम्मत्थि एहिं सत्तेहिं । सुपसत्थमभयदाणं दिज्जइ जसत्ति जीवाणं ॥ १३२२ ।। जो पुच्छेज्जेकेक्कं किं इच्छसि जीवियं च पुहई वा । जीवियमिच्छेज्ज नरो, मयस्स पुहईए किं कज्जं ॥ १३२३ तो मरणभीरुयाणं, जीवाणं जीयमिच्छमाणाणं । जो देइ अभयदाणं, एयं भणियं महादाणं ।। १३२४ ।। दुक्कालोवहयाणं, दारिद्दोवद्दुयाण दीणाण । रोगेहिं विहुरियाणं, पक्खित्ताणं च गोत्तीसु || १३२५ ॥ अच्चुग्गदुक्खजणणीहिं विविहकरुणप्पलावहेऊहिं । घत्थाण तह य बहुयावयाहिं महुकंडराहिं च ॥ १३२६ ॥ म भीसिदाणपुव्वं, जं कीरइ किं पि इह परित्ताणं । अनुकंपाभरनिब्भरमणेहिं उवयारनिरवेक्खं ।। १३२७ ।। धम्मे य जिणुदिट्ठे, जणिज्जए जो य ताण परिणामो । तेणावि अभयदाणं, पयट्टियं होइ सुमहत्थं || १३२८ || तस - थावराण जीवाण जो य रक्खाइउज्जओ संतो। करइ करावेइ वयं, जिणप्पणीयं महासत्तो ।। १३२९ ।। समभावभावियप्पा, पडिहइ मणमाइदंडमाहप्पो । तेणा वि अभयदाणं, पयट्टियं होइ सुमहत्थं ॥ १३३० ॥ इय भणियमभयदाणं एत्तो आहार- उवहिदाणाई । वोच्छं कमपत्ताइं, दिज्जंति जहा य जेसिं च ॥ १३३१ ।। परउवयारपसत्ता चयंति नियजीवियं पि सप्पुरिसा । किं पुण अभयपयाणं, न दिंति जं वयणमणसज्झं || ३१५७ || परपरिओससुहासाइ दिति दुक्खज्जियं धणं धीरा । किं पुण अभयपयाणं तंवोवरिठ्ठे च इट्ठं च ॥ ३१५८ ॥ अरिबले
जं परिमुणियारिबला पोढमई छग्गुणे पउंजेह । रिउसव्वस्सं सव्वं, चरेहिं अवगाहह समंता ॥। ३०३५ ।। अर्थस्य नान्यथाभावे
केवलनाणुवलद्धस्स न उण अत्थस्स अन्नहा भावो । तह वि हु दूराईयम्मि दुक्कुहो संदिहिज्जा वि ॥ २६३७ ॥
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