Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
२०६
भेदविवेके
अह एवमेव दोन्ह वि चेट्ठा अविवेयपुव्विया चेव । माणुसपसूण ता भण किमंतरमसिंगिसिंगिकयं ॥ ३०१४ || भाग्ये
पढियव्वमन्नहा ठियगिहकरणिज्जं तु अन्नह च्चेय । न हि पुट्ठिभार जुज्जइ जयभावियजोग्गओ वसहो ।। २९९२ ।। मतिज्ञाने
नाणं पंचपयारं, तत्थ उ मइनाणमाइमं भणियं । सुय-ओही-मणपज्जव - केवलनाणाई सेसाई ॥ १२८१ ॥ अत्थुग्गह-ईहावाय-धारणाभेयओ मई चउहा । अत्थोग्गह- वंजण ओग्गहो य इह उग्गहो दुविहो । १२८२ ॥ मण छट्ठाणं पंचिंदियाण अत्युग्गहो य छब्भेओ । मण-नयणे वज्जित्ता, बीओ उण चउविहो होइ ॥ १२८३ || ईहाइयाणि तिन्नि उ, पत्तेयं हुंति छव्वियप्पाणि । सुयनिस्सियमइनाणं, अट्ठावीसइविहं एवं ॥ १२८४ ॥ बत्तीसविहं तु इमं, उप्पत्तियमाइबुद्धिपरियरियं । तव्विह खओवसमजा, जमणिस्समई चउब्भेया ।। १२८५ ।। बहुबहुविहाइभेएहिं सेयरे हुंति गुणियमखिलमिणं । तिन्नि सया चुलसीया, भेयाणं एत्थ परिमाणं ।। १२८६ ॥ मदान्धे
कुओ मiधाण सन्नाणं ।। २९४७
मद्ये
मज्जासत्तो विससु मुच्छिओ जं कसायवसवत्ती । निद्दाविगहाभिरओ, अकुसलकम्मेसु अभिरमइ | ११३० || मनः पर्यवज्ञाने
मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं । माणुसखेत्तनिबद्धं, गुणपच्चइयं चरित्तवओ ।। १२९४ ॥ रिजुमइविउलमईभेयभिन्नमेयं पि भन्नई दुविहं । नवरं इमम्मि संभवइ नेय मिच्छत्तपरिणामो || १२९५ ।।
मरणे
इ चिन्तितो बहुविहकज्जक्खणिओ खणा खणा जीवो। न मुणइ आसन्नं पि हु मरणं तो जाइ रंको व्व ॥ २५६६ ॥ महारम्भे
महया आरंभेणं महईए परिग्गहाभिरइए य । कुणिमाहारेण तहा पंचेंदियमारणेणं च ।। २८३४ ||
एहिं तं पुणो विहु विसेसहेऊहिं पोसियं गाढं । सामोदिन्नजरो इव सक्करखीराइपाणेणं || २८३५ ।।
तस्स फलं नरयगई तत्थ य दुक्खं महादुरवसाणं । तं वन्निरं न तीरइ बहुएहिं वि सागरसएहिं ॥ २८३६ ||
माने
माणधो जं अहियं पच्चुयदंडेणं दंसइ वियारं । उवसमइ न कइया वि हु निव्वाइ किमग्गिणा अग्गी ॥ २९८७ ॥
मांसगृद्धयाम्
पसुपेरंडविहरिसियउ निसुणवि साहुक्कारु । न मुणइ जं नारयदुहह दिन्नउ संचक्कारु || ३१५२ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246