Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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पउमनाहनिवो तुह पुरओ दिट्ठपरंपरस्स कज्जण्णुणो य मह सरिसो । लज्जइ कह न भणंतो न य सत्थलविक्कलित्तमई ॥ २९७८ न हि कज्जपंडियाणं सत्थविऊ सुंदरो वि सहइ पुरो । जंपतो जं लक्खणमलक्खवेइस्स केरिसयं ।। २९७९ ॥ अहियारपयठिएहिं तह वि पहू निययबुद्धिअणुसरिसं । सिक्खवियव्वो जम्हा कस्स वि किंचि वि परिप्फुरइ ।। २९८० विजिगीसुणा नरेणं निच्चं नयविक्कमा न मोत्तव्वा । फलसिद्धीए न हेऊ अन्नो जमिमे परिच्चज्ज ।। २९८१ ॥ नयविक्कमाण वलिओ नओ य अमओ परक्कमो विहलो । सपरेण वि जं हम्मइ सीहो हयमत्तगयनिवहो ॥ २९८२ बलवंतो वि अरी खलु सुहसज्झो होइ नीइवंतस्स । जमुवायविऊ बंधंति वणयरा मत्तहत्थि पि ॥ २९८३ ॥ नयमग्गममुंचंतस्स जइ वि विहडेज्ज कह वि कज्जगई । पुरिसस्स नावराहो विहिणो च्चिय दूसणे तत्थ ॥ २९८४ ।। नयसत्थदंसिएणं मग्गेण न संचरेज्ज जो सययं । सो बालो व्व अलायं आयड्ढइ अत्तदहणत्थं ॥ २९८५ ।। इइ तं विवेइपढमो अरिम्मि सहसा पउंज मा दंडं । जं सामेणं वि समिही अहिमाणधणो पुहइपालो ।। २९८६ ॥ माणधणो जं अहियं पच्चुयदंडेणं दंसइ वियारं । उवसमइ न कइया वि हु निव्वाइ किमग्गिणा अग्गी ।। २९८७ ।। पढमं रिउम्मि सामं जुजेज्जा तयणु भेयमाईए । दंडो उण अंते च्चिय रिउस्स भणिओ विवेईहिं ।। २९८८ ॥ दोससयं फुसिउमलं नरस्स एक्कं पि होइ पियवयणं । अवि जलियविज्जुपुंजो जलेण जंवल्लहोजणे जलओ॥ २९८९ (गीतिका) दंडेण बलस्स खओ उवप्पयाणेण अत्थहाणीओ। कवडंतिजसविणासो भेएण अओ सिवं साम ! ।। २९९० ।। इय नयसारं वयणं भणिउं पुरुभूइणा कए मोणे । सासूयं जुवराओ पोरुससारं भणइ वाणिं ।। २९९१ ॥ पढियव्वमन्नहा ठियगिहकरणिज्जं तु अन्नह च्चेय । न हि पुट्ठिभार जुज्जइ जयभावियजोग्गओ वसहो ॥ २९९२ ।। पररिद्धिबद्धमच्छरनिक्कज्जपरूसणे पियमरिम्मि । विहलं चिय होइ कयं विसमसहावो हु जेणखलो ।। २९९३ ।। विसयम्मि खलु निउत्तो बलवंतो सुंदरो वि उववाओ । न हि वज्जघायजोग्गम्मि कमइ लोहाउहं उवलो ॥ २९९४ ।। अन्नं च - दंडं चिय बिंति सूरिगव्विए पक्खमाणणा पवणे । किमुवेइ कत्थ वि वसं अनत्थनासो बलीवद्दो ।। २९९५ ॥ जो गुणनमिरो होउं सयं पि परपरिभवं सहेइ नरो । दिट्ठपहेहिं भरिज्जइ जलेहिं जलहि व्व सो तेहिं ॥ २९९६ ।। वट्टसहावम्मि जणे अइनमिरो पावए न हु पमाणं । पयडो च्चिय दिळेंतो एत्थऽथवा कुवलयच्छीण ॥ २९९७ ॥ कणयं व ताव पुरिसो गरुओ जाव न परिहरेहिं कयतुलणो । तोलिज्जतो उण तक्खणं पि गुंजाहलाइ समो ॥ २९९८ सिवहेऊ होइ खमा जईण न उणो नरिंदचंदाण । बहुणा दूरंतरिओ मोक्खस्स भवस्स जं मग्गो ॥ २९९९ ।। अफुरियतेयाण सया पराभवो चेव होइ पुरिसाण । रिट्ठो वि सिरे पायं देउलसीहाण जं कुणइ ॥ ३००० ॥ अवि य - सरिसे वि वइरिभावे सया वि जं ससहरं गसइ राहू । दिणनाहं पुण कइया वि किं पि तं तेयमाहप्पं ।। ३००१ ।। सययं पराणुवत्तणपरस्स किविणस्स जीवियं धिद्धी । अणुणित्तु परं सुणहो व्व जियइ जोऽणुचियललणेहिं ।। ३००२ चइऊण निययपोरुसमणुगच्छइ चाडुएहिं जो वइरिं। पयडइ असारयं सो अवुट्ठिजलओव अत्तणो गज्जन्तो॥ ३००३ (संकिन्नयं)
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