Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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पउमनाहनिवो भत्तिभरनिब्भरेणं पुणो पुगो नामि उत्तमंगेण । सेविज्जतो उद्धसियरोमकूवेण सव्वत्तो ।। ३१३५ ।।। तो चिंतियमेएणं, हुं नामिमस्स मुणिवरस्सेव । माहप्पेण न जाया पावस्स वि पावरिद्धी मे ।। ३१३६ ।। जत्तियमेत्ते खेत्ते, पसरइ दिट्ठी महातवस्सीण । तत्तियमेत्ते कस्स वि उवघाओ होइ न हु जेण ॥ ३१३७ ।। ता धन्नो अहमवि एत्तिएण जं सयलपावविद्दवणो । दिट्ठो मुणी महप्पा, मए वि पारद्धिपत्तेणं ॥ ३१३८ ।। संपइ पुण जइ पाए, इमरस गंतूण पणिवयामि अहं । ता जम्म पि कयत्थं करेमि न हु एत्थ संदेहो ॥ ३१३९ ॥ अन्नं च रन्नपसुया वि पज्जुवासंति जइ इमं साहुं । एवं उवसंतमणा, संपावियइट्ठलाभ व्व ॥ ३१४० ।। तो कह अम्हारिसया, सविवेया वि हु महामुणिं एयं । पत्तं महानिहिं पिव, अपुन्नवंता परिहरंति ।। ३१४१ ।। इय चिंतिऊण गंतूण सहरिसं नमइ मुणिवरं राया । हेयादेयविऊ को, व कुणइ न हु साहुसंबंधं ।। ३१४२ ।। तक्खणझाणसमत्तीए काउसग्गं मुणी वि पारेउं । अभिनंदइ तं खलु धम्मलाभआसीसदाणेण ॥ ३१४३ ।। भणइ य नरिंद ! जुत्तं, न तुम्ह काउं इमं महापावं । पारद्धी कीरंता, जं पोसइ पावरिद्धिमिमा ॥ ३१४४ ।। तुम्हे च्चिय पावपरद्धयाण सत्ताण सत्तहीणाण । सरणं नरनाह ! पराभविज्जमाणाण अन्नेहिं ।। ३१४५ ।। भणियं च - दुर्बलानामनाथानां बालवृद्धतपस्विनाम् । अनार्यैः परिभूतानां, सर्वेषां पार्थिवो गतिः ।। ३१४६ ।। अन्नंच तुम्ह हत्था, दप्पुटुरवइरिरंभणसमत्था । भयतरलविलक्खजियाण पहरमाणा कहं न लज्जति ॥ ३१४७ ।। (गीतिका) अह पोरुसयपयडणकारणाण तुम्हाण एस ववहारो । धिद्धी इमं पि असरणजियाण किं पोरुसं हणणे ।। ३१४८ ।। भणियं च - रसातलं यातु यदत्र पौरुषं क्व नीतिरेषा शरणो हादोषान् । विहन्यते यद् बलिनात्र दुर्बलो हहा महाकष्टमराजकं जगत् ॥ ३१४९
अहह पहारदढत्तं पहुस्स वलिवलिअमूढलक्खत्तं । एमाई जं पि जपंति चाडुयारा जणा के वि ।। ३१५० ।। तं पि हु परपावपरायणाण अमुणियसुतत्तमग्गाण । तुट्ठीए होज्ज वयणं, परलोयपरम्मुहमईण ।। ३१५१ ॥ भणियं च - पसुपेरंडविहरिसियउ निसुणवि साहुक्कारु । न मुणइ जं नारयदुहह दिन्नउ संचक्कारु ॥ ३१५२ ।। नयरपालजायणह, घणहं जो देइ उरु । जा उड्डइ निवडुंतिहि नरयासणिहि सिरु ।। ३१५३ ।। जो नियमसइ राय न रइ असणह मणइ । मंसरसिहि सो गिद्ध मुद्धमयउल हणइ ।। ३१५४ ।। हरियंकुरजलभोयणई, हरिणई हणइ हयास । अप्पु न चेयहिं नीसुइय, वलि कियविसयपिवास ।। ३१५५ ।। ता जीवदयापवरो, होसु महाराय ! मुयसु पारद्धिं । कारुन्नपहाण च्चिय, सुयणा जं हुंति सव्वत्थ ।। ३१५६ ।। किंच - परउवयारपसत्ता चयंति नियजीवियं पि सप्पुरिसा । किं पुण अभयपयाणं, न दिति जं वयणमणसझं ।। ३१५७ ॥
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