Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१५२
सिरिचंदप्पहजिणचरियं
वज्जंतविविहआउज्जवज्जपडुपाडसद्दसंवलियं । जणजणियगरुयचोज्जं दीसंतविचित्तपेक्खणयं ॥ ३९६६ ॥ वरदाणतुट्ठअत्थियणघुट्ठबहुविहविसिट्ठआसीसं । सुरमागहजयजयरावभरियनीसेसदिसविवरं ।। ३९६७ ।। सुरवइआएसेण य आढत्तं तयणु देवनिवहेण । दिज्जंतपउरदाणं वद्धावणयं अइमहंतं ॥ ३९६८ ।। (कलापकम्) महसेणनरिंदो वि हु दळु तं तारिसं विवाहमहं । नियपुत्तस्स विसिटुं न माइ हरिसेण नियदेहे ।। ३९६९ ।। तह लक्खणा वि देवी पमोयभरनिब्भरा मणे जाया । नियसुयरिद्धीए न कस्स अहव जायइ मणे तोसो ।। ३९७० ।। चंदप्पहनाहस्स उ जइ वि न विसएसु तारिसी तन्हा । तह वि हु भोगे भुंजइ अणीहचित्तो वि सो भयवं ।। ३९७१ ।। परमेसरो हु गब्भप्पभिईओ चेव मइसुओ ओहिं । तिहिनाणेहिं समग्गो अप्परिवडिएहिं सयकालं ।। ३९७२ ।। जाणइ जीवाजीवे, जाणइ जीवाण बहुविहगईओ । जाणइ बहुविहगइहेउकम्ममिहपुन्नपावफलं ।। ३९७३ ।। जाणइ बंधं मोक्खं च तं च सव्वं वियाणमाणो सो। विसएसु वि तह वट्टइ छलिज्जए जह गतेहिं इमे ॥ ३९७४ ।। विसभोगं पि करंतो नावायं लहइ जं उवायन्नू । अणुवायपवित्तीयउ अमयं पि विसाउ अब्भहियं ॥ ३९७५ ॥ भणियं च - सा का वि कला ज्झायंति जोइणो जाणिऊण परमत्थं । पहायंति घडसएण व छिप्पंति न बिंदुणा चेव ॥ ३९७६ ॥ एवं अड्ढाइयपुव्वलक्खमाणम्मि अइगए काले । जम्मा उ जिणवरिंदस्स अन्नदियहम्मि महसेणो ।। ३९७७ ॥ सुरराएण समेओ, महाविभूईए सोहणे लग्गे । रज्जाभिसेयमहिमं करेइ, से अप्पए रज्जं ।। ३९७८ ।। (जुयल) जिणरज्जभिसेयजलप्पवाहसे उग्गअंकुरछलेण । हरिसुद्धसिया अवहरियदोससार त्ति सहइ धरा ।। ३९७९ ।। पिउणो उवरोहेणं रज्जं परमेसरो पडिच्छेइ । आणाभंगं गरुया कइया वि कुणंति न गुरूण ।। ३९८० ।। मुत्तिवहूसंगसमूसुओ वि अणूणेइ सो महीमहिलं । जणपायडं भवेज्जा कहन्नहा तस्स दक्खिन्नं ।। ३९८१ ।। पालंते तम्मि महिं चउसायरमेहलं महासत्ते । नंदइ लोओ जणवुड्ढिहेउउदओ गुरूण हया ॥ ३९८२ ।। एत्तो च्चिय दुब्भिक्खं डमरं ईईड वइरमारीओ । रज्जे न तस्स न हु अक्कमंति हरिणा हरिं अहवा ।। ३९८३ ॥ देवकया देसकया कालकया ओववाइया वा वि । जाया न तम्मि भूवे उवद्दवा दिव्वमंति व्व ।। ३९८४ ॥ वायंति सुरहिवाया सुहफरिसा दिणयरो न य तवेइ । पंकयवणसंडाणं विबोहकरणाउ अहिययरं ।। ३९८५ ॥ वट्टति न य कसाया लद्धं सामियं समेक्कनिहिं । अविरोहेण पयट्टइ जणो, समग्गो वि सव्वत्थ ।। ३९८६ ॥ इंदाइदिसावाला वि जस्स पालंति सासणं मुइया । तेण समं इयरनराहिवाण होही कह विरोहो ?॥ ३९८७ ।। अइवुट्ठी अणावुट्ठी कहं तु रज्जम्मि तस्स संभवइ । इच्छावरिसा निच्चं पि सेवया जस्स मेहपहू ॥ ३९८८ ॥ लभ्रूणं तं पहुं विजियदेवरायड्ढिवित्थरं रज्ज । अहियं सोहइ दिवसं व तरणिबिंब निहयतिमिरं !॥ ३९८९ ।। पयइ च्चिय पविरा इ गुणगामो से उवाहिनिरवेक्खो । केण व दिणयरकिरणा कीरंति पयावहारिल्ला ॥ ३९९० ।। कज्जाई तप्पभावेण चेव सिझंति हिययइट्ठाई । मंतिअमच्चाइपरिग्गहो य रज्जस्स सोहत्थं ॥ ३९९१ ।। तं सामि गुणिणो पाविऊण जाया पगामसोहिल्ला । गंभीरगयणवित्थरमुवलभिऊणं व जोइगणा ॥ ३९९२ ।।
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