Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
चंदप्पहजिणवण्णणं
१६५
निस्संगो वि हु भयवं तं न निवारेइ देवराएण । पक्खिप्पंतं खंधे काउं तित्थयरकप्पो त्ति ॥ ५२१२ ।। भणियं च - सव्वे वि एगदूसेण निग्गया जिणवरा चउव्वीसं । नो नाम अन्नलिंगे नो गिहिलिंगे कुलिंगे वा ।। ५२१३ ॥ ईसा इव रज्जसिरीए सोहहरणत्थमह विमुक्को वि । सो तवसिरीए विहिओ सव्वंगपकामराहिल्लो ॥ ५२१४ ।। अहिययरपत्तसोहं तं दर्छ सुरवरो पहट्ठमणो । संथुणइ दिव्ववाणीए सयलजणजणियहरिसाए ॥ ५२१५ ।। परमाहप्पेण गुणा केत्तियमेत्त त्ति कहिउमंगाई । आभरणविमुक्काई वि अहियं तुह नाह ! सोहंति ।। ५२१६ ।। मह वालसंगमे तुत्तमं गया केरिस त्ति तव विरहे । पयडुन्हीसमिसेणं समुन्नयं सहइ तुज्झ सिरो ॥ ५२१७ ।। तुह मुहयंदो कंतीए पूरयंतो दिसाओ अहिययरं । सोहइ परोवयारेण कस्स अहिया न सोहंति ॥ ५२१८ ।। तुह सामि ! भालवट्टो मोत्तुं तिलयाइचत्तभिउडीओ । रागद्दोसविमुक्को तुमं व पसमं समुव्वहइ ॥ ५२१९ ॥ करुणट्ठाणजिएसुं विरत्तयाणं असेसवत्थूसु । वलिवलि तुह नयणाणं अप्पियपियनिव्विसेसाणं ।। ५२२० । नासावंसं अणुरूवमेव मन्नामि तुज्झ जेण तए । सुद्धज्झाणमिसेणं तत्थेव निवेसिया दिट्ठी ।। ५२२१ ।। तुह जिणवरवंजियसद्दवित्थरं सवणजुयलमइरम्मं । वायरणं पिव सोहइ विरइयविबुहयणमणतोसं ॥ ५२२२ ।। निययाहरो वि तुमए नियग्गरागं न मोइओ जमिह । मन्ने तेण जिणो वि न सहावदोसं खमो हरिउं ॥ ५२२३ ॥ तुह कंठो सहजसिरीए संजुओ सहइ जणतिरेहिल्लो। निवलच्छिमुक्कपरिरंभकहणवायातिर्थक्को व्व ।। ५२२४ ॥ सिरिवच्छो वच्छयलम्मि लक्खणं होइ उत्तमनरा । सिरिवच्छंकियवच्छो त्ति तेणं तं भणइ एस जणो ॥ ५२२५ ।। मह पुण बुद्धी जिणलक्खणेसु सव्वेसु एस चेव धरो । तेण न उत्तारिज्जइ तुमए हिययाउ कइया वि ।। ५२२६ ॥ तुह जिण ! पलंबबाहू काउस्सग्गठियस्स सोहंति । भवजलहिकद्दमक्खुत्तजंतुउद्धरणदंड व्व ॥ ५२२७ ।। कह सुकुमारसरीरो धरेहि दुद्धरधयं ति चिंताए । खामो मज्झो जाओ न मुणइ तुह अतुलबलरिद्धिं ।। ५२२८ ।। गंभीरनाहिविवरं तुह रेहइ नाह ! वयनिरुद्धाओ। हिययाओ ओसरंतस्स दाररूवं अणंगस्स ।। ५२२९ ।। तुह नाह ! रोमराई वियडे वच्छम्मि रेहइ सुरेहा । अंतो फुरंतझाणग्गिनिग्गया धूमरेह व्व ।। ५२३० ॥ लहिही तुहोवओगं विसालया जिणनियंबबिंबस्स । ज्झाणनिवेसत्थमकंपमासणे संनिविट्ठस्स ॥ ५२३१ ।। तुह चेव सलहणिज्जे उरूसु पसत्थलक्खणे नाह ! सचराचरजगधरणं तुह देहं जेहिं धरियमिणं ॥ ५२३२ ।। उवभवरि उत्तरोत्तरवुड्ढिकरी जं सुवित्तया तेणं । तुह जंघाहिं धरिज्जइ कहिउं व जणस्स जिणनाह !।। ५२३३ ।। अरुणंगुलीओ जिणवरसिरिकुलगेहम्मि तुज्झ पयकमले । चंदणमालाइ सहति नाइनवपल्लवालीओ ॥ ५२३४ ॥ तुह नाह ! पायजुयलं जुगवं उज्जोइउं दसदिसाओ । नहमणिमिसेण दिप्पंतदीवए दिसपयासेइ ।। ५२३५ ।।। पडिपुन्नचरित्तनिमित्तमेव तुह सामि ! चलणजुयलं पि । निम्मलजसदेविंदेहिं संथुयं होउ मज्झ सया ॥ ५२३६ ।। अम्हारिसो जिणेसर ! न खमो तुह रूववन्नणं काउं । को वा सामन्ननरो वइज्ज खीरोयहिस्स तडं ।। ५२३७ ॥ तं नत्थि तुज्झ अंगं पगामरमणिज्जयाइ जं मुक्कं । जं च न विरागलच्छीए अहियसोहं कयं तुज्झ ।। ५२३८ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246