Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 159
________________ १२८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तहा हि - मन्ने सयलदियंतरविसप्पि दठूण ताण बाणगणं । गयणममुत्तं जायं, तप्पभिई चेव भीयं वा ॥ ३३१९ ॥ वीररसतोसिया जयसिरि वि न गणइ गयागयकिलेसं । दोण्ह वि ताण समीवे, वारं वारं परिब्भमइ ॥ ३३२० ।। एत्थंतरम्मि रिउणा, मंतेण व छलियसंकुणा सीसे । तह पहओ भीमरहो जह मुच्छाभिंभलो जाओ ।। ३३२१ ।। तो खत्तधम्ममणुयत्तंतेण महारहेण खणमेत्तं । वीसमियं इयरेण वि मुच्छं तो उठ्ठियं ताव ।। ३३२२ ।। पुरओ दठूण रिउं, रोसवसा दसणदट्ठनियओट्ठो । वीसमसि कीस गिण्हाहि आउहं जेण पहरामि ।। ३३२३ ।। इय भणमाणो च्चिय निययहत्थिणा पाडिऊण से हत्थिं । जीवग्गाहं गेण्हइ, तं सह सुरमुक्ककुसुमेहिं ॥ ३३२४ ॥ तो पिउगहणामरिसा, उत्तेइयसारही रही तत्थ । सूररहो संपत्तो, धणुहं धीर व्व णिधुणंतो ।। ३३२५ ।। इंतं तं दळूणं पिउणा खित्तस्स सम्मुहं झ त्ति । अंतरनियदिन्तरहो महीरुहो अह पडिच्छेइ ।। ३३२६ ।। सो तेण तया सद्धिं, जुज्झंतो चिरयरेण तस्सउरे । पक्खिवइ सरं तह जह सो पडइ रहम्मि तव्विवसो ॥ ३३२७ ॥ तो सारहीरहं से वालइ घेत्तूण तं तहा विहुरं । एत्तो महीरहरहे, सुरेहिं खित्ता कुसुमवुट्ठी ।। ३३२८ ।। अवयरइ तओ सिरिपुहइवालरन्नो सुओ बलुम्मत्तो । नामेण धम्मपालो, दारुणकोवारुणसरीरो ॥ ३३२९ ।। वरिसंतो सरधाराहि जो य सझाघणो व्व वित्थरइ । लग्गो तस्स समग्गो, महीरहाईनिवइवग्गो ॥ ३३३० ।। तो इमिणा एक्केण वि, सीहेण व मत्तमयगलसमूहो । पच्छाहुत्तो विहिओ, विमुक्कलज्जो असेसो वि ।। ३३३१ ।। तं भज्जतं दतॄण रायचक्कं सुवन्ननाभो य । आसासिंतो ढुक्को, रहेण सिरिधम्मपालस्स ।। ३३३२ ।। तो भणइ धम्मपालो, रे रे अवसरसु मज्झ दिट्ठिपहा । मह हत्था काउरिसे पहरंता जेण लज्जंति ।। ३३३३ ।। बालो बालमई तह, जुज्झसमत्थो न होसि कत्थ वि य । ता वच्च पिउसमीवं पेससु तं चेव मह पासे ।। ३३३४ ।। अवि य - को सि तुमं भीमरहो य को व को वा स तुज्झ जणओ वि । ता सव्वे मिलिऊणं आगच्छह जेण पहरामि ।। ३३३५ इय पभणंतो भणिओ जुवराएणं न उत्तमनराण । सोहइ अप्पपसंसाकरणं परनिंदणं वा वि ।। ३३३६ ॥ जओजे अप्पणो पसंसं करंति निंदं परस्स गरुया वि । ते रायमग्गवडियाओ हुंति लहुया तणाओ वि ॥ ३३३७ ॥ ता पहरसु वीसत्थो, एएहिं किमालजालभणिएहिं । नियमाउयाइ चवलत्तसूयगेहिं असारेहिं ।। ३३३८ ॥ इय तव्वयणायन्नणअहिययरुप्पन्नकोवविहुरो सो । दुल्लक्खमोक्खसंधाणधणुगुणो मुयइ सरविरई ॥ ३३३९ ।। जुवराओ वि हु से अद्धमग्गमब्भागए वि बाणगणे । छिंदइ नियरोवेहिं आरोवियधणुविमुक्केहिं ।। ३३४० ।। जाए सिलीमुहखए सेल्ले मेल्लेइ धम्मपालो वि । ताण खयम्मि य कुंतेहिं, पहरई तक्खए असिणा ।। ३३४१ ।। इयरो वि निययसेल्लाइएहिं तप्पहरणाई कुणइ तहा । अद्धपहे च्चिय जह अक्खमाई जायंति नियकज्जे ॥ ३३४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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