Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 148
________________ पउमनाहनिवो ११७ हा पुत्तय ! पावाए किं विलसियमेरिसं ति इय भणिरी । जा पविसइ सा मज्झे, ता पेच्छइ सुत्तयं बालं ॥ ३०२९ ।। खंडाई बहूयाई, विहियं सप्पं च पासिउं तत्थ । पच्छायावपरद्धा, चिंतइ हा ! सुंदरं न कयं ॥ ३०३० ॥ पढम चिय रोसवसे, जा बुद्धी होइ सा न कायव्वा । अह कीरइ कह व तओ, न सुंदरो तीए परिणामो ।। ३०३१ ।। इय जं भणंति विउसा तं सच्चं चिय न एत्थ संदेहो। अवियारियकयकोवाइ जं मए घाइया नउली ।। ३०३२ ।। ता जह साडोड्डणिया, पच्छायावस्स भायणं जाया। अवियारियकयकज्जो अन्नो वि तह च्चिय हवेज्ज ॥ ३०३३ ।। तम्हा एत्थ य कज्जे नरिंद ! ता मह मई फुरइ एवं । जं पभणइ जुवराओ, तं कीरउ किंतु सविलंबं ॥ ३०३४ ।। जं परिमुणियारिबला पोढमई छग्गुणे पउंजेह । रिउसव्वस्सं सव्वं, चरेहिं अवगाहह समंता ।। ३०३५ ॥ सपरविभागावगमे, सयं पि तुब्भे वि उज्जया होह । तुरियमुभयाणुजाई भिच्चा य वसीकरिज्जंतु ।। ३०३६ ।। अरिसामवाइया वि हु, तह भेइज्जंतु निउणबुद्धीए । अलिओवनिबंधपरेहि, सासणेहिं असारेहिं ।। ३०३७ ।। अन्नं च तुम्ह मित्तं भीमरहो अत्थि तस्स सच्चमिणं ! जाणाविज्जउ कज्ज, आणाविज्जउ य सो एत्थ । ३०३८ ॥ जम्हा सो खलु तुम्हच्चएण लेहेण तुरियमागमिही । समसुहदुक्खो जं तारीसो हु अन्नो न अस्थि सुही ॥ ३०३९ ।। जओ - सो राया जो पालइ पयाओ नीईए नियपयाउ व्व । सो सुकई जस्स रसग्गलाई वयणाई सव्वत्थ ।। ३०४० ॥ सो पुत्तो जो नियवंसउन्नई कुणइ गुरुयणे भत्तो । तं मित्तं सुपवित्तं, जं खलु वसणाणुयत्तेइ ॥ ३०४१ ।। तं असमतेयकलियं, पावेऊणं सहायमइबलियं । घणविगमं व रवी तुममच्चग्गलतेयवं होही ॥ ३०४२ ॥ जो वि इमो रिवुदूओ, सो वि पहिज्जउ इमं भणेऊण । मासावहीए करिणं, समरं वा तुज्झ दाहामि ॥ ३०४३ ।। इय हियमियवयणमिमस्स सुणिय अणलसमई महीवालो । सयलाभिमयं मंतिस्स सव्वमणुमन्नइ पहिट्ठो।। ३०४४ ।। उट्ठइय मंतणाओ, काऊणावस्साई कज्जाई । मंतिस्स कुणइ वयणं, गुरू न लंघति जयकामा ॥ ३०४५ ॥ अह अन्नदिणे गणएण दंसिए, दोसवज्जिए सगुणे । मिलिएसु भीमरहमाइएसु सयलेसु राईसु ।। ३०४६ ॥ अणुकलसउणपवणुच्छलंतअहिययरचित्तउच्छाहो । पडिवक्खजिगीसाए, नयराओ विणिग्गओ राया ।। ३०४७ ।। पसमियतममाहप्पो, जणनयणाणंदणो सुतेइल्लो । संकिन्नगुणत्तेणं, जो भाइ ससि व तरणि व्व ।। ३०४८ ॥ अवि य - जस्सुवरिधरियधवलायवत्तमाभाइ नियजससरिच्छं । आणंदियसयलजणं निरुद्धतेयस्सिमाहप्पं ॥ ३०४९ ।। जलहरमग्गविसाले उरत्थले जस्स तह य हारो वि । तारयगणो व्व सुहससिसेवाए समागओ सहइ ॥ ३०५० ॥ वरकुंडलग्गसंलग्गपोमरायज्जुईए विच्छुरिया । जस्स भुया गेरुयरेणुरुइरकरिसुंडसारिच्छा ॥ ३०५१ ॥ जो वित्थारइ गयणे मेघाभावे वि इंदधणुलच्छि । पंचविहमउडमणिविप्फुरंतघणकिरणजालेण ।। ३०५२ ।। परिभविही मंडलिए रिउविजयविणिग्गओ इमो त्ति भया । ससिरविणो रयणंगयछलेण सेवंति जस्स भए ।। ३०५३ वरहारतरलमरगयमणिकिरणचएण पूरियं जस्स । जमुणा दहस्स लच्छि, विलुंटए नाहिकुहरं च ।। ३०५४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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