Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 143
________________ ११२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय भणिऊण मुणिंदे मोणेण ठियम्मि भणइ नरनाहो । विणओणयसिरिपंकयविरइयपवरंजलीबंधो ॥ २८९६ ।। मुणिनाह ! जं पयंपसि, तहेव तं नत्थि एत्थ संदेहो । संसारभउव्विग्गो करेमि विन्नत्तियं तह वि ॥ २८९७ ।। जइ वि हु न अस्थि मह एत्थ अवसरे जोग्गया वयग्गहणे । तह वि दुवालसभेयं सावयधम्मं पवज्जामि ।। २८९८ ।। पंचाणुव्वयमेत्तो पुट्विं पडिवज्जिओ मए धम्मो । गिण्हामि इयाणिं नाह ! सत्त सिक्खावयाई पि ॥ २८९९ ॥ तो अतिहिसंविभागंतदिसिवयाई वयाई सव्वाइं । दिन्नाई उचियभंगेहिं मुणिवरिदेण नरवइणो । २९०० ।। एवं च पुव्वपडिवन्नऽणुव्वएहिं समं एमेहिं च । बारसविहगिहिधम्म पडिवज्जेऊण नरनाहो ।। २९०१ ।। भत्तिभरोणयसीसो नमिऊण महामुणिं गओ सगिहं । बारसविहं पि धम्मं अणुसमयं अणुसरेमाणो ॥ २९०२ ।। रज्जेण समं धम्मं परिवालंतस्स तस्स वच्चंति । जा तत्थ केत्तियाई वि दिणाई तावऽन्नदियहम्मि ॥ २९०३ ।। अत्थाणगयस्स पुरो आगंतूणं सहाइ मज्झम्मि । पडीहारो विणयणओ विन्नत्तिं कुणइ अभिउत्तो ।। २९०४ ।। देव ! दुवारे दूओ चिट्ठइ देवस्स दंसणाकंखी । जइ जायइ आएसो ता पविसावेमि तं मज्झे ॥ २९०५ ॥ तो भणइ नरवरिंदो सिग्घं पेसेसु तयणु सीसेण । आणं पडिच्छिऊणं नीहरिओ तं पवेसेइ ।। २९०६ ।। दिन्नासणोवविट्ठो दठूण सभागयं नरवरिंदं । दूओ कुसग्गबुद्धी सावट्ठभो भणइ एवं ॥ २९०७ ।। रविण व्व निययतेएण जेण हिममहिहरो व्व रिउनियरो । तावितेणं विहिओ महावयानिवहआलीढो ॥ २९०८ ।। बहुसत्तिसंपयाए पालितो जो महीयलं सयलं । पुहईपालो त्ति नियं नामं च जहट्ठियं कुणइ ॥ २९०९ ।। आलिंगिऊण गाढं सो मज्झ पहू तुमं सिणेहेण । इय भणइ मह मुहेणं दूयमुहा जेण रायाणो ॥ २९१० ॥ आणंदं तुज्झ गुणा जणंति दूरट्ठियस्स वि महंतं । गरुयाण वि कुमुयाण व किरणा ससिणो जयप्पयडा ।। २९११ ।। तुह सयलदिसापयडा कित्ति च्चिय कहइ विणयसंपत्तिं । पुप्फसिरी इव फललच्छिमसरिसिं गरुयरुक्खस्स ॥ २९१२ पयडइ मणोगयं तुह सुसीलयं नीइसारसुपवित्ती । जम्हा कुसीलयाणं न हणइ न य पक्खवाओ वि ॥ २९१३ ॥ इय कित्तियं व भन्नउ गुणेक्कनिलयस्स तुज्झ नरनाह ! । केवलमेत्थावसरे दप्पेण विणासियं किं पि ॥ २९१४ ॥ अहवा गुरुगुणभूसिए वि को वि हु हवेज्ज खलु दोसो। चंदस्स व सकलंकत्तदूसणं बहु गुणत्ते वि ॥ २९१५ ॥ दप्पाओ च्चिय तुमए पुब्विल्लठिई विलंघिया इन्हिं । जम्हा तुह पुव्विल्ला सया नया अम्ह पुव्विल्ले ॥ २९१६ ।। दठूण बंधणं करिवराण नरवइ गिहेसु मयवसओ । को नाम अत्तणो हियमिच्छंतो तो करेज्ज विऊ ।। २९१७ ।। जच्चंधो व्व न पेच्छइ मयमूढो अत्तणो हियं अहियं । सो अहव दिट्ठिए च्चिय न नियइ इयरो वि मणसा वि ॥ २९१८ किंच सरीरसमुत्था मयाइणो सत्तुणो समाइट्ठा । नीईए तज्जएणं एत्थ सुही होइ नरनाहो ॥ २९१९ ॥ जो पुण निययं पि मणं अरिछक्काओ न रक्खिउं सक्को । सो परिभूइभयाओ व अत्तणो मुच्चइ सिरीए ।। २९२० ।। अंकुसकिरिय व्व गएण तुज्झ सढया मए चिरं सहिया । इण्हि तु अविणओ जो तए कओ दुस्सहो स पुणो ॥ २९२१ वणकेलीगयराओ जो तुह सयमेव आगओ नयरं । सो तुमए च्चिय गहिओ त्ति साहियं मह चरेहिं इमं ।। २९२२ ।। किर नट्ठि वत्थुसामी अहं ति तोऽलं तुमं सयं चेव । पेसेसि मज्झ इइ चिंतिऊण दियहे ठिओ कह वि ॥ २९२३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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