Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 142
________________ पउमनाहनिवो १११ एसो वि धरणिकेऊ एत्तो च्चिय विविहमावयं पत्तो । थेवस्स वि दुक्कडविलसियस्स सामत्थममुणंतो ।। २८७२ ।। जो वि वसुंधरनामो मंती एयस्स सो वि संसारे । भमिओ बहुदुक्खयरे कसायसामत्थओ राय ! ।। २८७३ ।। पत्तो य करिवरत्तं इन्हिं इमिणा य निययसत्तीए । निद्धाडिओ वणाओ वणकेलीधरणिकेउजिओ ॥ २८७४ ।। ता किं पि सासयत्तं न एत्थ वलिओ वि परिभवं लहइ । परिहवणिज्जो वि बली ना गव्वं को वि मा कुणउ ।। २८७५ किंच - सामन्नं चिय एयं भन्नइ वयणं भवम्मि जीवाण । मरणम्मि समीवत्थे थिरत्तणं कस्स अन्नस्स ।। २८७६ ।। धण्णे धणे व रज्जे व जोव्वणे सुंदरे य रमणियणे । जा का वि थिरत्तासा सा सव्वा मोहनडियाण ।। २८७७ ।। इय मुणिवयणं सोउं सिढिलिकयमोहबंधणो राया। भणइ जहट्ठियमेवं मुणिनाह ! तए समाइटें ।। २८७८ ।। मज्झ वि पविट्ठमेयं हियए अन्नं च एस करिनाहो । मज्झुवगारनिमित्तं च आगओ नियवणं चइउं ।। २८७९ ।। जओ - जइ वि समागंतूणं इमिणा लोओ उवद्दुओ मज्झ । पुव्वभवं तह वि इमस्स मुणियमह चित्तमुवसंतं ॥ २८८० ।। इंतो न एत्थ जइ पुण एसो तो कह तुमं मह कहतो । एयस्स चरियमुवजणियगरुयसंसारवेरग्गं ।। २८८१ ।। संसारस्स सरूवं निययाणुभवेण अणुहवंतो वि । तह वि न बुज्झइ लोओ अणाइमोहोवहयबुद्धी ।। २८८२ ।। तुम्हारिसाण पुण मुणिवरिंद ! वयणाण निहयमोहेण । तह पडिबुज्झइ मुज्झइ जह न पुणो निययतत्तम्मि ॥ २८८३ ।। एसा पणंगणा इव मणाणरागं भवदिठई जणइ । मोहबहलाण न उणोवलद्धसविसद्धबोहाण || २८८४ ।। ता अज्ज नाह ! तुह वयणवट्टिसत्तबोहनिवहेहिं । मह मणभवणे सुविवेयदीवओ तह समुज्जलिओ ।। २८८५ ॥ जह मोहमहातिमिरस्स नत्थि मणयं पि तत्थ अवयासो।अहवा विरुद्धसविहम्मि कह विरोहिस्स होज्ज ठिई ।। २८८६ (जुयलं) देस अओ नियदिक्खं महापसायं महोवरि विहेउं । अपसन्नेस गरूसं इमीए लाभो न जं होइ ।। २८८७ ।। चिंतामणिमाईया अज्ज वि लब्भंति कह वि संसारे । तुह दिक्खा उण मुणिनाह ! भावओ लब्भए नेय ।। २८८८ ।। तो केवलिणा भणियं कायव्वमिमं खु भव्वसत्ताण । सुलहा न हु सामग्गी जं होइ इमीए लाभम्मि ॥ २८८९ ।। तथा चोक्तम् - चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ॥ २८९० ॥ कालाणुरूवकिरिया कीरंती किंतु बहुफला होइ । कालाविक्खा वि अओ कायव्वा बुद्धिमंतेहिं । २८९१ ।। भणियं च - कालम्मि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ । इय सव्व च्चिय किरिया नियनियकालम्मि विन्नेया ।। २८९२ ।। कालो उ सो इमीए उत्तमफलसाहगो भवे राय ! । चारित्तावरणीयस्स कम्मुणो जत्थ खउवसमो ।। २८९३ ॥ तुह उण चारित्तावरणकम्मउदयम्मि वट्टमाणस्स । अज्ज वि के वि हु दियहा अविक्खणिज्जा भविस्संति ॥ २८९४ वेरग्गं पि हु पोढं होही तुह तम्मि चेव कालम्मि । एयस्स चेव नरवर ! निमित्तओ हत्थिरायस्स ।। २८९५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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