Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 140
________________ पउमनाहनिवो १०९ इय जत्थ जत्थ वच्चइ पावोवहओ तहिं तहिं चेव । दुक्खाई चिय पाउणइ न उण सोक्खं निमेसं पि ॥ २८२१ ।। अवि य - फालिज्जइ सो करवत्तएहिं पीलिज्जई य जंतेहिं । संडासयधरियमुहो पाइज्जइ तत्ततउयाई ॥ २८२२ ।। कुंभीहिं तह पइज्जइ सहस्ससो तेहिं पावअसुरेहिं । तच्छिज्जइ वासीहिं कट्टिज्जइ तह कुहाडेहिं ।। २८२३ ॥ विलिहिज्जइ विविहुल्लेहणीहिं विधिज्जई य वियणत्तो। विज्झणियसहस्सेहिं कहें लट्ठ व कट्ठहओ ॥ २८२४ ।। किंच - हण छिंद भिंद गिण्हह वच्चइ कत्थेस नासिऊणऽम्ह । एमाइ सवणदुसहे निसुणइ सद्दे महारुद्दे ।। २८२५ ॥ स्वे वि के वि ते सो पासइ दिट्ठीए दुहयरे गाढं । विगरालरक्खसाईण जाई दलृ पि असमत्थो ।। २८२६ ।। अच्चंतविरसकडुए रसे वि रसणाइ साडसंजणए । दूसहछुहाए नडियस्स गोयरं इंति से कह वि ॥ २८२७ ।। परिसडियसुणयमडयस्स जो हु गंधो तओ अणंतगुणो । नासाए सन्निहिओ सया वि से पावउदएण ।। २८२८ ॥ सिंबलीअवरुंडणतत्तवालुयालोलणाइ दुक्खं च । अणुहवमाणस्स सया फासेण वि से सुहं कत्तो ? ।। २८२९ ।। इय किं पि ठाण जणियं परमाहम्मियकयं च किं पि सया। अणुहवमाणस्स दुहं गयाइं से सत्त अयराइं ॥ २८३० ॥ एत्थंतरम्मि पुठं रन्ना मुणिनाह ! केण कम्मेण । नरयम्मि जंति जीवा केत्तियमेत्ता उ इह नरया ॥ २८३१ ।। तो भणइ मुणिवरिंदो सुण नरवर ! जं तए इमं पुढें । नरयनिबंधणकम्मं सामन्नविसेसहेउकयं ।। २८३२ ।। मिच्छत्ताविरइकसायजोगजणियं जमित्थ किर कम्मं । असुहज्झवसायगएण तं खु सामन्नहेउकयं ।। २८३३ ।। महया आरंभेणं महईए परिग्गहाभिरइए य । कुणिमाहारेण तहा पंचेंदियमारणेणं च ।। २८३४ ॥ एएहिं तं पुणो वि हु विसेसहेऊहिं पोसियं गाढं । सामोदिन्नजरो इव सक्करखीराइपाणेणं ॥ २८३५ ।। तस्स फलं नरयगई तत्थ य दुक्खं महादुरवसाणं । तं वन्निउं न तीरइ बहुएहिं वि सागरसएहिं ॥ २८३६ ।। तह रयणाभासक्करवालुयपंकप्पहाओ धूमाभा । तमतमतमप्पहाओ पुढवीओ हुंति सत्तेव ॥ २८३७ ।। धम्मा वंसा सेला अंजणरिट्ठा मघा य माघवई । एयाणं नामाइं रयणाईयाइं गोत्ताई ॥ २८३८ ॥ एयासु तीस पणुविस पणरस दस तिन्नि एक्कसंखाओ। पंचूणनरयलक्खा पंच पुणो सत्तम महीए ।। २८३९ ।। एए य केइ अव्वत्ततिव्वतावा परे य अइसीया । दुव्विसहरूवरसगंधफाससद्देहिं दुहहेऊ ।। २८४० ॥ परमाहम्मियअसुरा तह आइल्लासु तीसु पुढवीसु । नारयजियाण दुक्खं उदीरयंती महाघोरं ।। २८४१ ।। तत्तो य परिल्लासुं नत्थि गमो ताण नरयपालाण । अन्नोन्नं चिय दुक्खं जणंति तिसु तेण नेरइया ।। २८४२ ।। तहा हि - आउप्पत्तीउ च्चिय अच्चंतुप्पन्नवइरसब्भावा । तिव्वाओ वेयणाओ परोप्परं ते उदीरंति ।। २८४३ ।। परमाहम्मियरइयं तं दुक्खं पुव्ववन्नियं किं पि । तं एत्थ वि नाणत्तं तु केवलं जमिह अन्नोन्नं ।। २८४४ ।। सत्तममहीए जे पुण नारयभावेण के वि जायंति । ते वज्जकंटयाउलघडियालयलद्धजम्माणो । २८४५ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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