Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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पउमनाहनिवो
१०७
तो तव्वयणाणंतरमेवुट्ठविऊण भमुहसन्नाए । संपेसइ पवरभडे लद्धजसे संगरसएसु ।। २७६९ ।। गंतूण तओ तेहिं वि तेण समं तं रणं समाढत्तं । निम्मायपोरुसो जेण एस रणरहसमारूढो ।। २७७० ।। तह जुज्झिउमाढत्तो पहारविहुरीकओ वि जह गाढं । नच्चिरकबंधसेसो वि हणइ तं सुहडसंघायं ॥ २७७१ ।। जे वि हु पुत्ताईया संगामे ते वि तस्स आवट्टा । केइ वि केइ वि गहिया पाडेऊणं जियंता वि ॥ २७७२ ॥ तत्तो वि समरकेउं अमच्चवयणेण धरणिकेउस्स । ठविउं रज्जे धरणो सयं पुणो जाइ सट्ठाणं ।। २७७३ ।। अह सो वि धरणिकेऊ रोद्दज्झाणोवगयपरीणामो । मरिऊण तच्चपुढवीए नारयत्तेण उप्पन्नो ॥ २७७४ ।। तहा हि - वसहो व्व सो वराओ नरयाणुपुब्विनामकम्मेण । रज्जुसमेऽणुबद्धो नीओ नरयम्मि पावेण ॥ २७७५ ।। तत्थ य जहाणुरूवं जत्तियकालं च जाण पासाओ। दुक्खं तेण तहा हं संखेवेणं तुह कहेमि ।। २७७६ ।। पढम चिय सो पावो संकुडघडियालयम्मि उप्पन्नो । दुव्विसहफासदुग्गंधभरियनिच्चंधयारम्मि || २७७७ ।। हुंडविहुंडो अन्तोमुहुत्तसंजायसयलगत्तसरो । अच्चंतुव्वेयकरो पच्चक्खो पावपुंजो व्व ॥ २७७८ ।। घडियालयसंकडयाइ सव्वओ देहगरुययाए य । उव्वेल्लं अलहंतो पीडाए रडइ गाढयरं ।। २७७९ ।। अक्कंदरवायन्नणसंतोसुप्पत्तिकिलिकिलायंता । परमाहम्मियदेवा, तो मिलिया झ त्ति कत्तो वि ।। २७८० ॥ पभणंति य अन्नोन्नं, रे रे गेन्हह इमं विकड्ढेह । घडियालयाओ अइसंकडाओ संडासएहिं लहुं ।। २७८१ ।। अहवा मज्झे च्चिय कप्पणीहि काऊण खंडखंडाई । खिवह दुवारे मोक्कलभूमीए इमं महापावं ।। २७८२ ।। एवंविहमल्लावं सणिऊण इमो बिभीड संभंतो। संकयणमणो चिटठड खणमेत्तं जाव मोणेण || २७८३ ॥ एक्केण कप्पिओ कप्पणीए भल्लेण केण वि विभिन्नो । छिन्नो छुरियाइ परेण ताव खंडीकओ एवं ॥ २७८४ ॥ खित्तो दुवारदेसे दिसवालाणं बलि व्व भिन्नदिसं । मिलिओ सो पुणरवि पारओ व्व दुक्कम्मपरतंतो ॥ २७८५ ॥ एत्थंतरम्मि पुण दिठिगोयरं ताण जाव सो पत्तो । दूसहवयणेहिं पुणो वि ताव ते बिंति ते मिलिया ॥ २७८६ ॥ रे रे अकज्जकारय ! जाई तए संचियाइं पावाई । ताण फलं कडुयरसं अणुहव इन्हिं इहं पत्तो ।। २७८७ ॥ हा हा हयास ! किं किं पावाइं पहुत्तणाभिमाणेण । विहियाइं तए किं नासि कोइ तुह वारओ तइया ।। २७८८ ॥ किं वा वि सवणविवरं कत्थ वि कइया वि कस्स वि सयासा । पत्ता न तुज्झ नरया जेणेवमुवज्जियं पावं ।। २७८९ रे रे पयाउ निप्पीलिऊण अलियावराहओ तुमए । जं पोढत्तं नीयं तं कत्थ गयं धणमियाणिं ।। २७९० ॥ किं व पयादंडनिवाडणुत्थपावाओ एस गरुयाओ। सीसम्मि तुह पडतो न रक्खिओ तेण दुहदंडो ।। २७९१ ।। एमाइ भणंतेहिं सवज्जदंडेण तह हओ कह वि । सयसो विभिन्नदेहो जह जाओ सहसदेहधरो ।। २७९२ ।। तो ते विचित्तरूवे विउव्विउं सीहवग्घमाईणं । खाविन्ति तेहिं विरसं रसंतयं तं पुणो बिंति ।। २७९३ ।। पारद्धिं रममाणेण जं तए ससयसूयराईया । पहया पलायमाणा कंतारे निरवराहा वि ।। २७९४ ।। तप्फलमुवणयमेयं सहेसु किं रससि करुणसद्देण । किं वा विउव्विरूवे विरयसि बहुपयरदुहहेऊ ।। २७९५ ॥
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