Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 109
________________ ७८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं पाएसु निवडिऊणं, ताहे मोयाविऊण अत्ताणं । भरहनरिंदाउ इमा, पव्वइया जिणसयासम्मि ।। २०१३ ।। भरहो वि रज्जलच्छि, अणुहवमाणो अहन्न दियहम्मि । चिंतइ न मज्झ भाउयवग्गो आणं पडिच्छेइ ॥ २०१४ ।। तो तेसिं आणागाहणत्थमहमुज्जमं लहु करेमि । इय चिंतिऊण मंतीण कहइ निययं अभिप्पायं ।। २०१५ ॥ तो तेहिं दिट्ठमेवं मंतणयं दूयवयणओ देव ! । सव्वे वि निययबंधू, मग्गावसु ताव रज्जाई ।। २०१६ ।। तो जइ रज्जाइं समप्पिहंति तो लट्ठयं अह न एवं । तो आणं गाहिज्जह, इय भणिए पेसई दूए ।। २०१७ ।। तेहिं वि ते गंतूणं, भणिया जह अप्पिणेह रज्जाई । भरहस्स संतिया अहव हविय पालेह रज्जाई ।। २०१८ ॥ तो ते भणंति गंतुं भणाहि भरहस्स एरिसं वयणं । तुम्ह वि अम्ह वि ताएण ताव दिन्नाई रज्जाई ॥ २०१९ ॥ तो एउ ताव ताओ, तं पुच्छित्ता भणिस्सई जं सो । तं काहामो अम्हे, होसु थिरो ताव कइवि दिणे ।। २०२० ।। इय भणिऊणं दूए, विसज्जिऊणं च भरहपासम्मि । सयमवि चलिया ते तायपायमूलम्मि अविसन्ना ॥ २०२१ ।। तइया य विहरमाणो, भयवं अट्ठावयम्मि सेलम्मि । सिरि उसभनाहसामी, समागओ तियसकयपूओ ।। २०२२ ।। ते तत्थ समोसरियं नाऊण जिणं समागया सव्वे । अभिवंदिऊण भत्तीए जिणवरं भणिउमाढत्ता ॥ २०२३ ॥ तुब्भेहिं पसायणं, जाई विइन्नाई ताय ! रज्जाई । अम्हाण ताई भरहो संपइ उद्दालइ हढेण ॥ २०२४ ।। ता ताय ! किं करेमो जुज्झेमो अहव तस्स अप्पेमो । रज्जाई ताई आइससु इन्हि जं अम्ह करणिज्जं ।। २०२५ ।। तयणु नियत्तियकामो, भोगेहिंतो जिणो भणइ एए । भो भो ! किंपागफलोवमेहिं किं तुम्ह कामेहिं ।। २०२६ ।। जओसल्लं कामा विसं कामा, कामा आसी विसोवमा । कामे य पत्थेमाणा अकामा जंति दोग्गई ।। २०२७ ।। केयारिसं च सोक्खं, कामेहिंतो हविज्ज जीवाण । चवलत्तणेण जे विज्जुविलसियाई विसेसंति ।। २०२८ ।। अन्नं च सद्दरसरूवगंधफासाण संगमे सोक्खं । जं जायइ जीवाणं, परव्वसं तं समग्गं पि ॥ २०२९ ॥ जह य च्चिय संबंधो, तेसिं सव्वाण होज्ज अणुकलो । तइया वि देहविहुरत्तणाइणा होज्ज दुहहेऊ ।। २०३० ।। तो ते भणामि पुत्ता, जइ सव्वं चिय सुहत्थिणो होउं । इच्छह रज्जं तो मुयह एय उवरिम्मि पडिबंधं ॥ २०३१ ।। जओदुक्खं चिय रज्जाओ, जं पत्ता पाणिणो न कस्सावि । निययस्स वि वीसासं, उवेंति जं भोयणाईसुं । २०३२ ।। तहा हि - न सुहं सुयंति न सुहं भमंति न सुहं रमंति कइया वि । न सुहं पिबंति न सुहं जेमंति परेसु कयसंका ।। २०३३ ।। जं चिय अपरायत्तं, जं चिय साहावियं सयाभावि । ता तम्मि चेव सोक्खे, जइयव्वं इह बुहेहिं सया ।। २०३४ ॥ मोत्तूण मुत्तिसुहं, जं पुण अन्नं न अत्थि एरिसयं । ता एय साहण च्चिय अपमाओ होइ कायव्वो ।। २०३५ ॥ संसारियाई सोक्खाई जाई ताई खु तत्तचिंताए । दुक्खसरूवाई दुहफलाई दुक्खाणुबंधीणि ॥ २०३६ ॥ एयारिसेसु वि इमेसु तह वि तित्ती न अस्थि जीवाणं ! । एत्थ वि निसुणह इंगालदाहगस्सेव दिद्रुतं ।। २०३७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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