Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 127
________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं विहसंतवयणपंकयपयडियईसीसिदसणकिरणेहिं । कुण पाहाउय दीवे वि बहलतेए नरवरिंद ! || २४८६ ॥ तुह निम्मलजसपब्भारधवलिमा निज्जियं व लज्जंतं । ओ कुमुयवणं कुमुयायरेसु संकोयमुवयाइ || २४८७ ॥ मित्तोदयम्म वियसंति जाई पंकयवणाई ताइं पुणो । सयलजयपायडगुणं, तुह हिययं अणुसरंति व्व ॥ २४८८ ॥ अइदूरविहडियाइं वि घडंति जह पेच्छ चक्कमिहुणाई । मित्तोदयम्मि कस्स व, न होज्ज भण इट्ठसंजोगो || २४८९ वावारिंतो कमलागरेसु दिवसाहिवो करे उचिए । सोहइ तुमं व अणुरत्तमंडलो उदयमणुपत्तो ।। २४९० ।। उदयाचलमारोहइ, मित्तो तुह एस विविहकज्जेसु । किं किं सिद्धं किं वा न सिद्धमिइ पेच्छणत्थं व || २४९१ ।। मागहजणगीयमिणं, गाहाकुलयं निसम्म नरनाहो । सयणीयाओ समुट्ठइ नमो जिणाणं ति भणमाणो ।। २४९२ ।। काउं देहावस्सयमाई हाओ विलित्तगत्तो य । देवालयं पविट्ठो वरहत्थाहरणसोहधरो ।। २४९३ ।। अट्ठप्पयारपूयं काउं तत्थ य जिणिदपडिमाण । संथुणइ भावसारं सयत्थथुइथोत्तमाईहिं ।। २४९४ ।। दारग्गलग्गनिम्मलरत्तमणिज्जोइभासुरसरीरो । चिइवंदणं करित्ता, नीहरमाणो तओ राया ।। २४९५ ।। उदयाचलसिहराओ समुग्गमंतस्स दिवसनाहस्स । लच्छिमतुच्छं उव्वहइ तक्खणं जणक्याणंदो ।। २४९६ ।। (जुयलं ) तत्तो अत्थाणभुवं पत्तो तत्थ य विचित्तरयणेहिं । किम्मीरियम्मि कलहोयमइयसिंहासणे पवरे ।। २४९७ । उवरिट्ठियमिउमसूरे, दिव्वंसुयपावुए स पावीढे । पिट्ठीसुहमत्तवारणविरायमाणो समुवविट्ठो ॥ २४९८ ॥ एत्थंतरम्मि सामंतमंतिमंडलियमाइलोएहिं । नमिओ धरणियलमिलंतमउलिमणिमउडकोडीहिं ॥ २४९९ ॥ अह तत्थेव निवासी, पडिहारनिवेइओ समणुपत्तो । जोइसविज्जाकुसलो, सिद्धाएसो त्ति जोइसिओ || २५०० ।। नरवइनि उत्तपुरिसेण वियरिए आसणम्मि उवविट्ठो । आसीवायपुरस्सरमेवं भणिउं च आढत्तो ।। २५०१ ।। अज्ज तिही सुपसत्था, वारो सारो वरं च नक्खत्तं । जोगो उ सिद्धिजोगो, नरिंद ! करणं व सुहकरणं ॥ २५०२ ।। जं पुण समग्गगहबलसमन्नियं अज्ज होहिई लग्गं । रयणीए पढमजामे, तस्सम्हे वन्निमो किंच ॥ २५०३ ।। ता तुज्झमणाभिमयं एत्थ पसत्थं जमित्थ करणिज्जं । तं कुणसु निव्वियप्पं अपमत्तो अज्ज नरनाह ! ।। २५०४ ।। इय सुणिउं नरनाहो, पमायभरमंथराए दिट्ठीए । वयणाई पसन्नाई पलोयए मंतिमाईण || २५०५ ।। विहुहियगय से भावं नाऊण बिंति वयणमिणं । देव ! विही अणूकूलो अणुकूलं कुणइ सव्वं पि ।। २५०६ || | ९६ जओ कत्थ व तुह चित्तमिणं, सिद्धाएसस्स कत्थ वा गमणं । सव्वोवाहिविसुद्धं, कत्थ व अज्जेव दिणमेवं ॥ २५०७ ॥ तामा देव ! विलंबो कीरउ मणवंछियत्थसिद्धीए । जम्हा अउन्नवंताण मिलइ एवं न सामग्गी ॥ २५०८ ॥ अंगविलग्गाभरणं राया तो देइ तुट्ठचित्तो से । अन्नं च बहुपसायं, करेइ वित्ताइदाणेण ।। २५०९ ।। भाइ य जोइसिय! तए रयणीए अज्ज जं समाइट्ठे । लग्गं तम्मि वि लग्गे रज्जं कुमरस्स वियरिस्सं ॥ २५१० ॥ इय जंपिऊण तं पेसिऊण रज्जाहिसेयसामग्गिं । काराविऊण सामंतमंतिमाई उ पुण भणइ ॥ २५११ ।। जो एस कुमरजेट्ठो जियसत्तू नाम अत्थि मह पुत्तो । सो तुम्ह होउ सामी, अहं खु दिक्खं पवज्जिस्सं ॥ २५९२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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