Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 130
________________ अजियसेन अवि य - जह जीयं तह धणजोव्वणाइ जीवाण नो थिरं किं पि । तह वि हु मोहोवहयाण सासयं सव्वमाभाइ ।। २५६३ ।। तहा हि - एयं करेमि संपइ कज्जं अन्नं च परुकरिस्सामि । अवरं पि परारि पुणो, थिरस्स सव्वं पि सिज्झेज्जा ॥ २५६४ ॥ ऊसुगयाइ न सिज्झइ कज्जं सिद्धं पि सुंदरं न भवे । अहिणववओ हु अहयं, अत्थि य मह दव्वमइबहुयं ॥ २५६५ इय चिन्तितो बहुविहकज्जक्खणिओ खणा खणा जीवो। न मुणइ आसन्नं पि हु मरणं तो जाइ रंको व्व ॥ २५६६ ।। किंच विसयासाविणडिज्जंतमाणसो कुणइ तह अकज्जाई । न गणइ दुक्खइदुक्खं, न य संकइ पावबंधाओ || २५६७ ।। न य चिंतइ भयसंभंतहरिणिलोयणकडक्खतरलत्तं । लच्छीए अतुच्छाइ वि, पयत्तरक्खिज्जमाणाए || २५६८ ॥ न य तिणचटुलीचटुलत्तणंगणामाणसस्स मुणइ मणे । करिकन्नतालचवलत्तणं च जाणइ न आउस्स ।। २५६९ ।। न य परिभावइ अथिरत्तणं च जोव्वणधणस्स रुइरस्स । आसन्नजराजलमाणजलणजालावलीहिंतो || २५७० ।। एमेव अहिलसंतो नरो पगामं मणोरमे कामे । पावइ मरणमकामो, दुग्गइगमणं च अणुहवइ || २५७१ ॥ (कुलयं) अन्नं च - ९९ पुरिसं गुरुइड्ढयं पि कह वि खीणम्मि हवइ पब्भारे । बंधू निद्धा वि मुयंति रुक्खरुक्खं व पक्खिगणा ।। २५७२ पिक्कं सडतबिंटं फलं व एवं जियाण देहं पि । अन्नायपडणसमयं विद्धंसणधम्मयं चेव ॥ २५७३ ।। अन्ने वि अथिररूवा भावा संसारिया असेसा वि । जीवो वज्जियमेक्कं, मोत्तूण सुहासुहं कम्मं ॥ २५७४ ।। जम्हा तं चेव भवंतरम्मि वच्चइ समं जिएणेत्थ । अन्नस्स पुणो जोगो, सव्वस्स विओगपेरंतो ।। २५७५ ।। ता सुकयअज्जणे च्चिय, जुज्जइ सव्वुज्जमो विवेईण । जस्स पसाएण भवंतरे वि दुक्खाई न हु हु॑ति ।। २५७६ ॥ सुकयं च सव्वविरई, जीए पावासवाण पडिसेहो । सो य न जिणवरदिक्खं मोत्तूणऽन्नत्थ संभवइ ।। २५७७ ॥ दिक्खोवरिं च हिरिमइ जाईसरणम्मि मुणिवरं दतुं । तद्देसणं च सोउं, जो जाओ मज्झ अहिलासो ॥ २५७८ ॥ सो हत्थिहत्थपावियपुरिसविणासावलोयणमिसेण । तोरवणत्थं मज्झं, विहिणा पउणीकओ इन्हि ।। २५७९ ॥ तो तूण गुणप्पभसूरिसयासे वयं पवज्जामि । वज्जासणिं व गुरुगिरिसमाण पावाण कम्माण ।। २५८० ।। इय चिंतिऊण पभणइ, जियसत्तुनराहिवं भवविरत्तो । सिरिअजियसेणचक्की, पुत्तं सामंतमंतिजुयं ॥ २५८१ ॥ वच्छ ! तुमं संठविओ, रज्जम्मि पए पयाइ रक्खट्ठा। ता एसा नीईए पालेयव्वा तहा तुमए ।। २५८२ ।। जह न सरइ पुव्वनराहिवाण पयपालणिक्कचित्ताण । अवगणियसकज्जाणं नियकुलगयणुज्जलससीणं ।। २५८३ ।। अयं तु गुणप्पहरिचरणसेवापरायणो होउं । पडिवन्नसाहुधम्मो करेमि तवसंजमुज्जोयं ॥ २५८४ ॥ सामंताई य इमे तुह आणाकारिणो मए विहिया। एए य मए दिट्ठा जह तह तुमए वि दट्ठव्वा ॥ २५८५ ॥ सामंताई तओ भणिया भो भो इमस्स आणाए । तुब्भेहिं वट्टियव्वं सम्मं अइभत्तिमंतेहिं ।। २५८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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