Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 134
________________ पउमनाहनिवो १०३ भो भो लोया दूरम्मि ताव तुब्भेत्थ होह जाव अहं ! वसमाणिऊण तुम्हं वालं वालं च अप्पेमि ।। २६६१ ।। सामंताई वि इमे, सव्वे वि नियंतु कोउयं ताव । जाव गइंदेण समं करेमि कीलाविणोयमहं ।। २६६२ ।। इय भणिउं दढमाबद्धपरियरो वारिऊण परिवारं । आहवइ गयाहिवई, नरनाहो साहससहाओ ।। २६६३ ।। रे रे मायंगो च्चिय, सव्वं मारेसि जो जणं दीणं । जइ अत्थि किं पि सत्तं, तुह ता मह सम्मुहो एहिं ।। २६६४ ।। एवमहिक्खिविओ सो, पहाविओ सम्मुहं नरवइस्स । उइंडसुंडडंडं उन्नमिउं गरुयरोसेण ॥ २६६५ ।। इंतस्स तस्स रन्ना, करिणीपस्सवणसित्तमहवत्थं । पुव्वाणीयं पक्खित्तमभिमुहं सो तयक्खित्तो ।। २६६६ ।। जा संजाओ ताव य, निवो वि वेगेण आवहेऊणं । तं हणइ लउडघाएण पासदेसम्मि अभिउत्तो ॥ २६६७ ।। तो वलिओ तयभिमुहं जाव इमो ताव दक्खयावसओ । राया वि बीयपासे, रएण सो झ त्ति संजाओ ॥ २६६८ ।। तत्थ वि वलिऊण करं, जा वाहइ नरवइस्स गहणत्थं । पेक्खंतस्स वि हेठेण निग्गओ ताविमो तस्स ।। २६६९ ।। एवं पच्छापुरओ य उभयओ करिवरस्स तह कह वि । परिभमइ सो नरिंदो नियएणं लाघवगुणेणं ।। २६७० ।। पासपरिट्ठियपासायसिहरचडिएहिं जह जणोहेहिं । समकालं चिय दीसइ मायागोलो व्व सयलदिसो ।। २६७१ ।। अह चम्मपुत्तलेणं, पुरओ होउं भमंतओ चेव । कुंभयडे हणइ करि, राया इट्टालसहिएण ॥ २६७२ ।। अच्चारुट्ठो तो करिवरो वि दळूण तं पुरो पडियं । परिणमिउमुज्जओ जाव ताव राया वि अइदक्खो ॥ २६७३ ।। दाउं पायं दंतम्मि तस्स कुंभम्मि चडइ उल्ललिउं । तत्तो य गले पट्ठिय पुच्छइ देसे य अवयरइ ॥ २६७४ ।। पुणरवि पुरओ होउं, गयमाहविउं पहावई एसो । न य सक्कइ तं गहिउं तप्पिद्रु धाविओ वि करी ॥ २६७५ ।। किं बहुणा पुव्वक्कयपावेहिं व नियफलं समुवणीयं । दुरइक्कम न सक्कइ विलंघिउं दुहयरं तं सो ॥ २६७६ ।। एवं च हत्थिसिक्खाकुसलो कीलाविऊण विविहाहिं । कीलाहिं हत्थिरायं, राया तं कुणइ निप्फंदं ।। २६७७ ।। वसमागयं वियाणिय, करेण गहिऊण अंकुसं तत्तो । आरुहिओ तस्सुवरिं, सहइ सुरिंदो व्व सुरगयारूढो ।। २६७८ ।। एत्यंतरम्मि तुट्टेण अमरनिवहेण नहयलगएण । सीसम्मि कुसुमवुट्ठी मुक्का से रुणरुणंतभमरउला ॥ २६७९ (गीतिका द्वयम्) तयणंतरं च अणुवमभुयबलगव्वं समुव्वहंतेहिं । जो मिलियबहुनरेहिं वि, न पारिओ वसमुवाणेउं ॥ २६८० ।। एगागिणा वि रन्ना, लीलाए सो वसीकओ हत्थी । पुन्नुक्कडाण अहवा, किमसज्झं होज्ज पुरिसाण ॥ २६८१ ।। एमाइ पयंपतो, जीव चिरं नंद भुंज रज्जसुहं । निक्कंटयं असेसं, पालसु पुहई च कामदुहं ।। २६८२ ॥ इय आसीओ पउंजइ, गुणाणुरत्तो जणो नरवरस्स । गायइ य विमलकित्ति, पहट्ठचित्तो सुवित्तस्स ।। २६८३ (च तं च सुणतो राया आरूढो तम्मि चेव करिनाहे । चलिओ सुगंधिपवणुज्जाणाभिमुहो पहट्ठमणो ।। २६८४ ॥ सामंताइसमेओ, गयवरपरिरक्खएण य जणेण । कोऊहलागएण य समन्निओ धावमाणेण ॥ २६८५ ।। पत्तो तं उज्जाणं, दढयरमवलोइऊण तरुमेक्कं । आलाणिऊण तं तत्थ निययहत्थेण करिनाहं ।। २६८६ ।। ओयरिऊण य तत्तो, भत्तिब्भरनिब्भरो गओ पच्छा । सिरिहरमुणिंदपासे, विणएणं पणमिउं तं च ।। २६८७ ॥ भणइ मुणिं सामि ! तए नणु जो मम चेव पच्चयनिमित्तं । आइट्ठो पुव्वुद्दिट्ठवत्थुविसयम्मि गयमोह ! ।। २६८८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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