Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 133
________________ १०२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं भयवं ! इमं तह च्चिय जह तुमए साहियं पर किंतु । अबुहजणप्पडिवत्ती, जह होइ तहा भणसु किंच ।। २६३५ ।। जओ - अवि चलइ मेरुचूला मज्जायं अवि मुएज्ज जलही वि । अवि पच्छिमाए उदयं, पाविज्जा दिवसनाहो वि ।। २६३६ केवलनाणुवलद्धस्स न उण अत्थस्स अन्नहा भावो । तह वि हु दूराईयम्मि दुक्कुहो संदिहिज्जा वि ।। २६३७ ।। ता भाविकालविसयं, थोवदिणं कमवि पच्चयं कहसु । अबुहजणाण वि चित्ते चमक्कयं जो लहु करेज्जा ।। २६३८ ।। इय भणमाणं सिरिहरमुणिवसभो भणइ पउमनाहनिवं । जह एवं तो निसुणसु, नरिंद ! आगामियत्थं पि ।। २६३९ ।। जूहं परिच्चइत्ता, तुज्झ पुरे करिवरो अइमहंतो । एही दसमम्मि दिणे, मयजलसंसित्तभूमिजलो ॥ २६४० ।। तप्पच्चयाओ सव्वं, तुम पि सयमेव थोवकालेण । मम भणियमवितहं चिय जाणिहसि असंसओ राय ! ।। २६४१ ।। एएणं वयणेणं, मुणिस्स आणंदनिब्भरो राया । अवणीयसंसओऽणुव्वयाइं सम्मत्तमूलाई ॥ २६४२ ॥ पडिवज्जिऊण सम्मं, पुणो वि पाए सिरेण नमिऊण । मुणिनाहस्स सहरिसं, नियपुरहुत्तं गओ राया ॥ २६४३ ।। नियआवासं पत्तो, अणवरयं मुणिगुणे सरेमाणो । गुणवंतगुणे को वा, न सरइ गुणवच्छलो हुंतो ।। २६४४ ।। अह दसमदिणे मुणिनाहसाहिए नरवरस्स अत्थाणे । उवविट्ठस्स अकम्हा विम्हियअत्थाणजणनिवहो ।। २६४५ ॥ उक्कन्नंतो तुरए, रएण व सहाइएण तासिंतो । आहोडतो जणसवणविवरमासाओ पूरितो ।। २६४६ ।। पयडिंतो नीसेसं भुवणं, सद्देक्करूवनिम्माणं । उच्छलिओ तुमुलरवो, जणस्स जलहिस्स व जुगते ॥ २६४७ ॥ (विसेसयं) तं सोऊण नरिंदो, हाहारवगब्भमह महारोलं । पासट्ठिए पवत्तइ, पुरिसे तज्जाणणट्ठाए ॥ २६४८ ।। रे रे वच्चह तुरियं, किमेस परचक्कपेल्लिओ लोओ । एवं तुमुलारावे करेइ जलणेण व जलंतो ।। २६४९ ।। तो ते तव्वयणाओ, गंतूणं जाणिउं च से हेउं । पच्चागया नरिंदस्स, बिंति विणयावणयसीसा ।। २६५० ।। कत्तो वि देवदेविंदहत्थितुल्लो महाकरी एक्को । पुरबाहिं संपत्तो गंडयलझरंतदाणजलो ।। २६५१ ॥ निहणइ सयलं पि जणं पुरबाहिं गोयरागयं देव ! । तुज्झ भुयजुयलरक्खियमवि करुणसरेण रसमाणं ।। २६५२ ।। अवि य - नीहरइ पविसई वा जो पयडो को वि वंससव्वं पि । करदंतपहारहयं, करेइ दिसपालबलियरणं ।। २६५३ ।। उट्टखरवसहमाई चउप्पए रुक्खमाइ अपए य । सव्वं पि वि विहडतो, नज्जइ संहारकीलो व्व ।। २६५४ ।। इय आगमणं मुणिसूइयस्स हत्थिस्स नरवई सोच्चा । हरिसभरनिब्भरमणो जाओ सुणिऊण मुणिवयणं ॥ २६५५ ॥ परिभावितो य गयस्स दुक्करत्तं दुयं वसाणयणे । किंचि विसायं पि गओ विन्नेउमिमं समाढत्तो ।। २६५६ ।। जइ ताओ करिवरोद्दवाओ रक्खेमि पुरजणं न इमं । नरनाहो त्ति पसिद्धी तो मज्झ निरत्थया चेव ॥ २६५७ ।। किंच खयाओ जो किर रक्खइ तं खत्तियं ति बिंति विऊ । खत्तियजाई वि कहं, खयाओ ताएमि ता न जणं ॥ २६५८ इय चिंतिऊण नीहरइ, जाव सामंतमाइलोओ वि । पट्ठिए ताव लग्गो नियनियपरिवारपरियरिओ ॥ २६५९ ।। पत्तो य तमुद्देसं जत्थ करी तं च पासिउं राया । नियभुयगव्वमउव्वं, समुव्वहंतो भणइ लोयं ।। २६६० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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