Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 131
________________ १०० सिरिचंदप्पहजिणचरियं जम्हा अहिणवपहुणो, जोव्वणरूविड्ढिमाइमयमत्ता । हुति दुराराहा सेवयाण थेवं पि खलिराणं ।। २५८७ ।। अप्पाहिऊण एवं, दोन्नि वि वग्गे नरेसरो जाव । उठेऊण पहट्ठो, चलिओ दिक्खाइ गहणत्थं ।। २५८८ ॥ पाएसु निवडिऊणं, सोयाउलमाणसेण विन्नत्तो । पुत्तेण ताव चक्की, सगग्गयं खलियवायाए ।। २५८९ ।। जाव उवट्ठावेमी दिक्खामहिमं तुहेत्थ ताय ! अहं । ता केत्तियं पि कालं, विलंब मा ऊसूगो होहि ।। २५९० ।। तो उवरोहेण सुयस्स जाव कालं विलंबए कं पि । नरनाहो ताव सुओ वि तस्स कारवइ वरसिबियं ।। २५९१ ।। दिव्वमणिरयणकंचणटिव्विक्कियममलकिरणराहिल्लं । सिंहासणोववेयं, पुरिससहस्सेण वहणिज्जं ॥ २५९२ ।। अट्ठाहियामहूसवमणहं जिणमंदिरेसु सव्वेसु । तह य पयट्टावइ नट्टगेयवाइत्तरमणिज्ज !| २५९३ ।। दावेइ अभयदाणं घोसावेई आमारिघोसं च । एमाइविभूईए विमुंचई तयणु रायाणं ॥ २५९४ ।। न्हायविलित्तालंकियगत्तो सिबियाए तो समारूढो । सीहासणे निविट्ठो धरिएणं धवलछत्तेणं ॥ २५९५ ॥ तह सेयचामरेहि, वीइज्जंतो य उभयपासेसु । रह-हत्थि-तुरय-पाइक्क-चक्क-अणुगम्ममाणपहो ।। २५९६ ।। आभासितो आभासणिज्जमवलोयणिज्जमिक्खंतो । मग्गट्ठियजिणभवणेसु विविहपूयं करावितो ॥ २५९७ ।। दाविंतो दाणमपरिमियं च मग्गणगणस्स विविहस्स । दाविज्जतो अंगुलिसएहिं दूरट्ठियजणेण ॥ २५९८ ।। थुव्वंतो अणलियसंथुईहिं पुरओ पढंतभट्टगणो । वज्जिरचउव्विहाउज्जवज्जसंसद्दरुद्धनहो । २५९९ ॥ नीहरिओ गरुयविभूइभारविम्हइयदेवमणुयमणो । सो अजियसेणचक्की, पव्वज्जागहणतुरियमणो ॥ २६०० ।। नियनियविभूइविरइयनिक्खमणूसवपवड्ढियसुसोहो । तिसहस्ससंखनरवइगणो य लग्गो तयणुमग्गे ।। २६०१ ।। तह हिरिमइपमुहाहिं, देवीहिं समन्निओ य काहिं पि । उज्जाणं संपत्तो सिबियारयणाओ ओयरिउं ।। २६०२ ।। पंचविहाभिगमेणं पविसिय पासे गुणप्पहगुरुस्स । अभिवंदिऊण भत्तीए कुणइ विन्नत्तियं राया ॥ २६०३ ।। भयवं ! भववत्तावत्तनिवडियं उद्धरेसु मं इन्हिं । जिणवरदिक्खाहत्थावलंबदाणेण पसिऊण ॥ २६०४ ॥ तो धम्मलाभपुव्वं, गुरुणा भणियं नरिंद ! जुत्तमिणं । जं कीरइ जिणधम्मम्मि उज्जमो मोहरहिएहि ॥ २६०५ ।। एवं उववूहेडं, विहिणा दिक्खं इमस्स देइ गुरू । नरवइसहस्सतिगपरिगयस्स देवीहि य जुयस्स ।। २६०६ ॥ दिक्खादाणाणंतरमह सूरी देसणं कुणइ तेसिं । संवेयसुद्धिजणणिं भववासुव्वेयजणणिं च ॥ २६०७ ।। सीलगिरीगणिणीए, हिरिमइपमुहाओ साहुणीओ य । तयणु समप्पेइ गुरू, साहू य ठिया गुरुसमीवे ॥ २६०८ ।। तत्तो य अजियसेणो, सिक्खइ दुविहं पि सिक्खमइरेण । भविलक्खदुक्खपविमोक्खणत्थमब्भुज्जओ होउं ।। २६०९ चरइ तवं च विचित्तं, संजमपरिपालणापउणचित्तो । विविहाभिग्गहसंगहजणियजणमणचमक्कारो ।। २६१० ।। इहपरलोयासंसाविमुक्कचित्तो इमं सरेमाणो । सुत्तत्थमचलसत्तो जिणगणहरसम्मयं निउणं ।। २६११ ।। 'नो इहलोगट्ठाए तवमहिछेज्जा । नो परलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा । नो कित्तिवन्नसिलोगट्ठाए तवमहिछेज्जा । नन्नत्थ निज्जरट्ठाए तवमहिट्ठिज्जा । तहा - नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिद्वैज्जा । नो परलोगट्ठयाए आयारमहिछेज्जा। नो कित्तिवन्नसद्दसिलोगट्टयाए आयारमहिढेज्जा । नन्नत्थ आरहंतिएहिं हेऊहिं आयारमहिठेज्ज" त्ति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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