Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ ९८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तओपहरिसमय व्व लीलामय व्व आणंदसोक्खमइय व्व । साराई वोलीणा, निवेण सह सयललोयस्स ॥ २५३८ ॥ जाए पभायसमए कयपाभाउयसमग्गकायव्वो । सिरिअजियसेणचक्की, अत्थाणसहाए उवविट्ठो ॥ २५३९ ॥ जियसत्तुनरवरिंदस्स तयणु सामंतमंतिपमुहेण । लोएण कीरमाणेसु विविहमंगल्लनिवहेसु ।। २५४० ।। करिवरतुरंगमणिरयणवत्थआभरणाइदव्वेसु । ढोइज्जतेसु बहुप्पयारढोयणियलक्खेसु ।। २५४१ ।। दिज्जतेसु य नाणाविहेसु दाणेसु मग्गणगणस्स । नच्चंतेसु विलासिणिजणेसु करणंगहारेहिं ॥ २५४२ ।। आलाणखंभमुम्मूलिऊण मयवसपरवसत्तेण । पत्तो कत्तो वि निवंगणग्ग' मीए रायकरी ॥ २५४३ ।। तं गरुयसत्तजुत्तं, वरवंसुप्पत्तिसालिणमतुच्छं । सुपसत्थहत्थमवलोइऊण बीयं व अप्पाणं ॥ २५४४ ॥ राया तो वीरनरे, वावारइ हत्थिसिक्खअइदक्खे । तरलियचित्ते कोऊहलेण कोलावणत्थं से ॥ २५४५ ॥ तो एक्को वीरनरो, गाढं मुट्ठीए कुलिसकढिणाए । तं पविसिऊण पहणइ, थोरकरे करिवरं मत्तं ॥ २५४६ ।। तो तस्सुवरि पसारियगुरुहत्थो जाव धावई एसो। अवरेण आरियाए पच्छिमगत्तम्मि ता विद्धो । २५४७ ।। गरुययरमच्छरेणं गहणत्थं वलिय पच्छिमनरस्स । वेगेण जाव पिट्ठीए एइ तावऽन्नपुरिसेहिं ।। २५४८ ॥ पहओ पासे घणलेठ्ठएहिं तो सव्वओ वि रुंभंतो। निवआणाए सट्ठाणसम्मुहं नेउमाढत्तो ॥ २५४९ ।। एत्थंतरम्मि एक्को को वि नरो धावणम्मि असमत्थो । तं ठाणं संपत्तो, कालेण वि चोइओ कह वि ॥ २५५० ।। सो रोसपरवसेणं सुंडाडंडस्स गोयरे पडिओ । उल्लालिऊण खित्तो नहंगणे हत्थिणा तेण ।। २५५१ ॥ तो निवडतो गयणंगणाओ भयवसपणट्ठमणसन्नो । उड्ढमुहेणं पुणरवि पडिच्छिओ दंतमुसलेहिं ।। २५५२ ॥ हाहारवं करितो जणम्मि घेत्तुं करेण धरणीए । अप्फालिओ य तह कह वि जह गओ खंडखंडिं सो ॥ २५५३ ।। सारयमेहं पिव तं खणेण खीणं पलोइऊण निवो। अंगेण जीविएण य, तो चिंतइ जायनिव्वेओ ॥ २५५४ ।। अहह कह पेच्छ जीवाण जीवियव्वस्स चंचलत्तमिणं । तडिविलसियं पि जेणं, विणिज्जियं नियसरूवेण ।। २५५५ ।। एगावयाओ कहमवि जइ रक्खिज्जइ तहा वि अवराए । निज्जइ विणासमेयं, वाउद्धृयजलयवंदं व ॥ २५५६ ॥ तहा हि - रोगेरितो रक्खा जइ कीरइ कह वि वेज्जकिरियाहिं । तह वि हु इमस्स नासो हवेज्ज सत्थाइएहिं पि ॥ २५५७ ।। जम्हा हणेज्ज कोई, असिछुरियासेल्लसव्वलाईहिं । अहवा सयं पि घायं, करेज्ज रोसाइकारणओ ॥ २५५८ ।। पविसिज्ज जलणमज्झे, अहवा सलिले खिविज्ज अप्पाणं । देज्ज विसं वा कोई, पोएज्ज व सूलमाईहिं ।। २५५९ ॥ एएहिंतो कह वि हु अप्पाणं जइ वि को वि रक्खिज्ज । सीहाइगोयरगओ, तहा वि खयमासु वच्चिज्जा ॥ २५६० ।। तेहितो वि हु चुक्को, पडिज्ज विसयम्मि मत्तहत्थिस्स । अहवा वि दुट्ठभुयगाइयाण तत्तो वि जाइ खयं ॥ २५६१ ।। इय विविहावयसयकारणस्स मरणस्स कारणे पडियं । केच्चिरकालं जीयं, हवेज्ज भवगत्तवत्तीण ॥ २५६२ ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246