Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१७
हिरिमइदेवी तो बिंति ते वि नरवर ! जियसत्तू ताव नियगुणगणेण । इण्हि पि सामिओ च्चिय अम्हं ता तत्थ किं भणिमो॥ २५१३ जओपडिवन्नवच्छलत्तं जणाणुराओ पियं वयत्तं च । पुव्वाभिभासियत्तं तहेव नयविणयसारत्तं ॥ २५१४ ॥ सूरत्तोदारत्तं गंभीरत्तं जिइंदियत्तं च । सोहग्गं आणासारया य अइसाइ रूवित्तं ॥ २५१५ ॥ एमाइ गुणगणो जह दीसइ अच्चब्भुओ कुमारस्स । तह सामित्तं इमिणा, सयमेव जणस्स पडिवन्नं ।। २५१६ ।। रज्जाभिसेयकरणं, ता कुमरे कस्स नाणुमयमेत्थ । कस्स व घयउन्ना सक्कराइ पडिया न रुच्चंति ।। २५१७ ।। किंतु तुह उवरि जो खलु इमस्स लोयस्स कोइ पडिबंधो । तेणेस तुह विओयं, खणं पि सहिउं न सक्किहइ ॥ २५१८ इय भणिए तेहिं तओ, नरनाहो भणइ जइ इमं एवं । ता मइ पडिबद्धाणं, मए समं चेव होउ वयं ॥ २५१९ ।। एवं चिय अविओगो, वि दीहरो इहरहा अवत्थाणं । रयणीए एगरुक्खे सउणगणनिवासतुल्लमिह ॥ २५२० ॥ जे खलु करेंति कम्म, एगं गुणठाणयं समारूढा। एगट्ठा मिलिऊणं आरुहिउं खवगसेढिन्ते ।। २५२१ ।। घाइचउक्कं खविऊण उत्तरोत्तरगुणिड्ढिमणुपत्तो । साइमणतं कालं, अविउत्ता ठंति सिवनयरे ।। २५२२ ॥ अविजोगमभिलसंता वि जे उ धम्मं करेंति नो मूढा । अन्नन्नासु गईसु ते कम्मगलत्थिया जंति ।। २५२३ ।। अन्नन्नगइगयाणं विभिन्नफलभिन्नकम्मकारीण । कत्तो संजोगो ताण होज्ज अणवट्ठियम्मि भवे ॥ २५२४ ॥ होज्ज व जइ संबंधो कह वि हु सो तह वि नो चिरं होइ । संसारियसंजोगा, सव्वे वि जओ विओगंता ॥ २५२५ ।। ता समुदाएणं चिय भो भो मोक्खत्थमुज्जम करिमो । समुदायकडा कम्मा, समुदायफल त्ति जेण फुडं ।। २५२६ ।। जे वि हु न तब्भवे च्चिय वच्चंति सिवं सुदेवमणुएसु । ते वि हु गंतूण परंपराइ गच्छंति निच्चपयं ॥ २५२७ ।। इय ते नरिंदवयणं, सुणिऊणं जायतिव्वसंवेगा। पडिवज्जति तह च्चिय सव्वे सवन्नुवयणं व ॥ २५२९ ॥ एत्थंतरम्मि पढियं कालनिवेएण - दिक्खाकयाहिलासं ! एस रवी जाणिऊण तं देव !! चिंताविम्हरियगमो व्व मंदं मंदं समुवयाति ॥ २५३० ।। अवि य - आखंचियरहतुरओ, मज्झत्थो होइऊण दिणनाहो । जाओ थिरो व्व तुह धम्मवयणसवणाभिलासेण ॥ २५३१ ।। एवं निसामिऊणं, दिणमज्झं जाणिऊण णरनाहो । उट्ठइ विसज्जिऊणं, सभाइ सेवागयं लोयं ॥ २५३२ ।। कुणइ य तक्कालोच्चियदेवच्चणभोयणाइवावारं । सद्दावइ जोइसियं तओ य सामंतमाई य ।। २५३३ ।। उच्चट्ठाणठिएसुं गहेसु छव्वग्गसुद्धलग्गम्मि । सिद्धाएसु व इठे इठं से नरवई हट्ठो ॥ २५३४ ॥ नियचक्कवट्टिलच्छीए समुचियाए महाविभूईए । रज्जाभिसेयमउलं, करेइ जियसत्तुकुमरस्स ॥ २५३५ ॥ पडुपाडपवज्जिरबहलतूररवभरियभूरिभूविवरं । पहरिसवसनच्चिरतरुणरमणितुटुंतहारलयं ।। २५३६ ।। लयतालमणोहरगिज्जमाणवरगेयखित्तजणनिवहं । आढत्तं तत्थ खणे वद्धावणयं सुहावणयं ।। २५३७ ॥
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