Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिचंदप्पहजिणचरियं खणमुग्गमारुणं बिंबमंबरे भाइ रयणिनाहस्स । संझासहीए पुव्वंगणाइ जा सुयणसिहरो व्व कओ ॥ २४३४ (गीतिका द्वयं) अवरोवरुद्धरयणी नियवहुमोयावणिद्धसंरद्धे । सारंगधणुहसंलग्गकिरणबाणे मुयंतम्मि ।। २४३५ ।। उदयायलमारूढे रहं व लद्धोदए निसानाहे । उय मोत्तुं भुवणयलं पलाइ भीओ व्व तिमिरभरो ॥ २४३६ ।। (जुयलं) हरिणो भएण लीणं गुहासु गिरिणो अवंति तिमिरकरिं । सरणागयवच्छलया पयइ च्चिय अहव तुंगाण ॥ २४३७ ।। करदंडताडणेहिं, नहाओ निव्वासियं निसावइणा । विरहिणिमणेसु मुच्छच्छलेसु सभयं तमो विसइ ।। २४३८ ॥ तमचंडाले निसाओ य छिक्का गयणवीहिमोइन्ना । वि हु महमहद्दहे कुणइ अत्तसुद्धिं व मज्जंती ॥ २४३९ ।। ल्हसिरतिमिरुत्तरीया तारयगणसेयबिंदुदंतुरिया । मयणाउर व्व रेहइ नहलच्छी पेच्छिउं तरुणरायं ।। २४४० ॥ (गीतिका) सयलं पि दिणं खरतरणितावतवियन्ति संपयं नलिणी । अमयकरकिरणलंभियसुहव्वओ निब्भरं सुयइ ।। २४४१ ।। सिसिरंसुकरामरिसम्मि पयडकेसरमिसेण कइरविणी । वियसंतकुमुयवयणा बहलं पुलयं समुव्वहइ ।। २४४२ ॥ नियतेयवुड्ढिहेऊ, जह खलु ससिणा पयासिया रयणी । तह कुमुइणी वि अहवा, निरवेक्खा सुयणउवयारा ॥ २४४३ कमलाण किं व हरियं, किं वा कमयाण दिन्नमेएण । मउलिंति हसंति य ताई पेच्छ जं ससहरस्सदए ।। २४४४ ।। गुणहीणा उ विरज्जइ सव्वो गुणवंतमब्भुवेइ जओ। कमलं मउलियमुज्झिय, गया सिरी वियसियं कुमुयं ॥ २४४५ सीयलकरे वि जणमणहरे वि चंदेण सम्मुहानलिणी । सकलंकेणं लज्जइ, अहवा सउणासओ सव्वो ॥ २४४६ ।। निम्मलगुणेहिं संगो, मलिणाण वि मलिणयं समुप्फुसइ । चंदस्स जेण संगे, जायं गयणं पि विमलयरं ।। २४४७ ।। वियसंतकुमुयनियरं, सरं च गयणं च पयडतारगणं । अन्नोन्नं उवमेयं, जायं ससिकिरणपसरम्मि ॥ २४४८ ॥ ससहरकरावहरिए, तिमिरे नीले पडे व्व सोहंति । सियकुमुयप्पयरा इव, गहा नहे कुट्टिमतले व्व ।। २४४९ ।। रोहिणिपियस्स वुड्ढीए जलनिही पेच्छ वुड्ढिमावन्नो। अहवा परुन्नइ फलाओ चेव गरुयाण रिद्धीओ ।। २४५० ।। पेच्छह ससिस्स उदए, वुड्ढी जह होइ सलिलरासिस्स । अहवा जडबुद्धीए बुद्धी जडहीण किमजुत्तं ।। २४५१ ॥ उग्गमणे जह बिंबं, महंतमाभाइ रयणिनाहस्स । न तहुत्तरकालम्मि वि, गरिमा सव्वस्स वा उदए ॥ २४५२ ।। उज्झियरागस्स जहा ससिस्स तेओ तहा न पुव्वं पि । कत्तो व्व पहापसरो, उक्कडरागाण जंतण ॥ २४५३ ।। वज्जियराओ कहइ व्व ससहरो चत्तपुव्ववहुसंगो। विमलेहिं रच्चियव्वं, संगि च्चिय नूण रमणीसु ।। २४५४ ॥ रमणीण पणयकोवेण माणगंठी मणम्मि जो आसि । ससिणा सो नियकरताडणेण उय किह णु विद्दविओ ॥ २४५५ चंदस्स मंडलं पासिऊण उक्कंठियाण पियसंगे । रमणीण रागजलही, सविलासमुवेइ संवुड्ढि ॥ २४५६ ॥ जह जह आरुहइ ससी, सणियं सणियं नहम्मि उवरुवरि । तह तह विलासिदिट्ठीओ वासभवणेसु निवडंति ।। २४५७ कयकुंकुमंगरागाओ रइयरमणीयचारुवेसाओ । रणझणिरनेउराओ, मणिमेहलमंडियकडीओ ॥ २४५८ ।। नियवल्लहघरगमणूसुयाओ तुरियं पि गंतुकामाओ। सणियं सरंति अहिसारियाओ थणरमणभारेण ॥ २४५९ ।। सज्जियसेज्जं सेज्जंतसज्जसज्जुक्कफुल्लतंबोलं । कुणमाणिं नियदेहस्स मंडणं विविहभंगीहिं ।। २४६० ।। पविसंतो च्चिय दइओ मयणवियारे निए वि पयडंति । पियमुक्कंठाइ खिवेइ तीए कंठम्मि भुयपासं ।। २४६१ ।।
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