Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
हिरिमइदेवी
इय भणिउं उठ्ठित्तु ताओ ठाणाओ नरवरो तुरियं । पत्तो निययावासं देहट्टिइयाइ तो कुणइ ।। २४०८ ॥ कालनिवेयणकज्जे विणिउत्तो पढइ एत्थ पत्थावे । रन्नो पत्थुयकज्जम्मि उज्जमं संजणेमाणो ॥ २४०९ ।। उदयावत्थो होउं असमपयावं पयासिउं भुवणे । एसत्थमेइ सूरो, वेरग्गं व पोसेउं ॥ २४१० ।। अवि य - किं भणिमो इयरजणाण ताव देवा वि अत्थिरपयावा । इय कहिउं व सरीराण अत्थुमुवयाइ एस रवी ॥ २४११ ।। दिवसे च्चिय पुरिसाणं फुरइ पयावो सिरी परुवयारो । तव्विलए जं रविणो पेच्छ गलियं समग्गमिणं ॥ २४१२ ।।
अन्नं च - पियसंगमूसुयाणं रमणीणं नयणबाणपहरेहिं । रुहिरविलत्तं व रवी तणुमरुणं वहइ नरनाह ! ॥ २४१३ ॥ पुव्वदिसं र(......)खलंतपाए रविम्मि समुविते । मुणियावराहकुवियप्पवारुणी धरइ सुहमरुणं ।। २४१४ ।। रविरमणकरग्गहणे, निवसियकोसुंभवत्थजुयल व्व । पच्छिमदिसा विरायइ, संझाराए वियंभंते ।। २४१५ ।। दिणयरवल्लहसंगे वरुणदिसा सहइ पयडमुहराया। संझासहीए सयमेव नाइ कयघुसिणमुहलेवा ॥ २४१६ ।। परकज्जुज्जयचित्तो पुरिसो किच्छं गओ वि संपुज्जो । अत्थगिरी अत्थमणे वि तेण सीसम्मि धरइ रवी ।। २४१७ ।। मइ पेच्छंते वि तमेण मा जगं अभिभवेज्ज उ इमं ति । कलिऊण विनिब्बुड्डो, पच्छिमजलहिम्मि दिणनाहो ।। २४१८ पडिवन्ने निव्वहणं छज्जइ दिवसस्स चेव एक्कस्स । नियसामिस्सत्थमणे अत्थमिओ जो समं चेव ।। २४१९ ॥ वलिओ विहि च्चिय परं, देहीण न पोरुसं न य सहाया । स तहा पयाववंदणवई वि जं गंजिओ तमसा ।। २४२० ।। गुणवज्जियम्मि देसे, गुणहीणा वि हु महत्तणमुर्विति । अत्थमिए दिणनाहे तमं पि कह पिच्छ वित्थरियं ॥ २४२१ ।। फुरियपयावो तरणि व्व होउ एक्को वि अप्पयावेहिं । बहुएहिं वि किं कीरउ, तारेहिं व हीणपुरिसेहिं ।। २४२२ ।। इय कहइ व उत्थरिओ तमनियरो सव्वओ वि भुवणम्मि । रयणियर घूयचिप्पिरियमाइपक्खीण सद्देहिं ।। २४२३ ॥ (जुयलं) नीडाभिमुहविहंगमविविहारावेहिं रविविओयम्मि । सोयधारमुहीओ दूरं विलवंति व दिसाओ ॥ २४२४ ॥ अत्थमिए दिणनाहे संझाराओ वरत्तवत्थेहिं । पिहिउं कालनरेणं पक्खित्ते पच्छिमसमुद्दे ।। २४२५ ।। तारयघणं सुबिंदूहिं उयह रोयंति दिसपुरंधीओ । निस्सई गुरुदुक्खेण मुक्कतमदीहकेसाओ ॥ २४२६ ।। (जुयल) मलिणसहावेण तमेण गंजियं पेच्छऊण भुवणमिणं । रविविरहम्मि भएण व दिसाओ दूरं पणट्ठाओ ।। २४२७ ।। पयडित्तु भुवणगेहं करेहिओ उवयरम्मि रविदीवे । दीसइ जणेहिं तं कज्जलं व पसरंतमंधतमं ।। २४२८ ॥ विरहग्गिधूमधूसरदेहेहिं व तिमिरमइलियतणूहिं । कंदंतेहिं सकरुणं विहडिज्जइ चक्कमिहुणेहिं ॥ २४२९ ।। जं आसि चक्कमिहुणं सुहियं दियहम्मि तं पि रयणीए । ओ पिच्छ विरहविहुरं हद्धी विहिविलसियं अहवा ।। २४३० रयणिवहूए दिन्नाओ दीवियाओ व्व ससिपियागमणे । रेहति पज्जलंतो सहिओ सेलग्गसिहरेसु ।। २४३१ ॥ कुनरिंदेण वि रविणा चंडकरुत्तावियं जयं दटुं । सीयलकरहिं निव्वाविउं व अह उग्गओ चंदो ॥ २४३२ ॥ उदयायलगहणनिवासिसपरसरपहरविहुरहरिणस्स । रुहिराविलं व रेहइ, मंडलमुदयारुणं मियंकस्स ।। २४३३ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246