Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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हिरिमइदेवी
पहवइ न रागतिमिरं, विवेयदीवम्मि पज्जलंतम्मि । न हु जलणजलियपासट्ठियाण परिभवइ सीयदुहं ॥ २३५३ ।। पामारोगेसु व जो, करेइ कंडूयणं व भोगेसु । सुहलवलुद्धो रागं, आरोग्गं सो कहं लहिही ।। २३५४ || भवसयसहस्सदुलहं, मणुयत्तं पाविऊण जे जीवा । पारतहियं चिंतंति नेय ते वंचिया वरया ।। २३५५ ।। मोहदढमूलबद्धाओ ताण कह जम्ममरणवेल्लीओ । तुट्टंति मणुयजम्मे वि जेण छिंदंति तवअसिणा || २३५६ || उग्गतवखग्गसंसग्गनिहयविसइंदियारिवग्गोहं । ता वर नेव्वुइ नारिं वरेमि को मज्झपरिपंथी || २३५७ ।। इय भणिऊणं हिरिमइदेविं पुणरवि नरिंदसद्दूलो । नियचित्तं संबोहइ, पडिहयअविवेयमाहप्पो || २३५८ ।। हे चित्त ! विरम रमणिज्जरमणिसंगाओ मंच अणुबंधं । रिद्धीसु होसु मह चिंतियत्थसिद्धीए अणुकूलं ।। २३५९ ।। परिहर भवपडिबंधं तुज्झं मज्झं च जेण संबंधो। जाव न केवललाभो ताव च्चिय एत्थ जियलोए || २३६० || इय जाव निययचित्तस्स नरवई देइ तत्थ अणुसट्ठि । ताव गुणप्पहसूरी, समोसढो बीयउज्जाणे || २३६१ || फासुयभूमिपएसे, असेससत्तोवरोहरहियम्मि । हियकरणरओ रयतमविवज्जिओ जियकसायरिऊ || २३६२ || तं जाणिऊण उज्जाणपालओ (वर) महामुणिं पत्तं । बहुसाहुसंघसंहियं, उग्गतवच्चरणसुसियंगं || २३६३ || हिरिमइदेवीसम्मुहमह भणइ निवो मयच्छि ! अणुकूलं । सव्वस्स वि कल्लाणं करेइ दइवं ति सच्चमिणं ।। २३६४ ॥ तुझं मज्झं च जओ, दोण्ह वि संजायएगचित्ताणं । सूरीण इहागमणं, जं तं खु अणब्भवुट्ठिसमं ॥ २३६५ || ता देवि ! भणसु संपइ किं कायव्वं ति पुच्छिए रन्ना । पभणइ हिरिमइदेवी हरिसवसुब्भिन्नरोमंचा || २३६६ || देव ! अकम्हा अम्हं, गुरूआगमणं जमेत्थ संपन्नं । अवलंबमिट्ठसुविसिट्ठसिद्धिचिंधं तयं मन्नं ॥ २३६७ || पडिपुन्ना सामग्गी, जओ न पुच्छइ अपुन्नवंताणं । न हु रयणरासिवुट्ठी संजायइ मंदपुन्नगिहे || २३६८ ॥ ता झत्ति उज्जमं कुणसु देव ! गम्मउ गुरुस्स पामूले । न हु इच्छियत्थलाभे कुणइ विलंब अयाणो वि ॥ २३६९ ॥ इय तव्वयणं आयन्निऊण गुरुआयरेण चक्कहरो । तीय च्चिय करयलठावियग्गपाणी विणयसारं ।। २३७० ॥ उट्ठेऊण पहट्ठो सत्तट्ठपयाई सम्मुहो गंतुं । तिक्खुत्तो कुणइ निवो, गुरूणो पंचगपणिवायं ।। २३७१ ।। नियविट्ठरउवविट्ठो पुणो वि आइसइ तयणु पडिहारं । जाणावसु जह तुरियं, सव्वस्स वि सूरिआगमणं ।। २३७२ ता हट्ठमणो एसो रन्नो आणं पडिच्छिय सिरेण । संपाडिऊण य पुणो, नरवइणो कहइ विणण || २३७३ || तो राया जयवारणमारूढो पउरपुरजणाणुगओ । गयतुरयरहभडुक्कडचउरंगबलेण परिकलिओ || २३७४ ॥ परमाए रिद्धिए पत्तो सूरिस्स अंतिए तत्थ । अवयरिऊणं गयवरखंधाओ विहीए नमइ गुरुं || २३७५ || सेसं पि तवस्सिजणं नाणाविहरिद्धिलद्धिसुपसिद्धं । निच्चतवतेयवंतं, गहसुक्कमउ व्व जोइसगणं व || २३७६ (गीइया) दट्ठूण विविहसज्झायझाणतवचरणसोसियसरीरं । विणओ णओ नरिंदो, पणमइ मइमंतसिरितिलओ || २३७७ || भत्तिभरनिब्भरमणो पुणो वि नमिउं गुणप्पभं सूरिं । लग्गो अणलियगुणसंथवेण तं थोउमह राया || २३७८ ॥ तुम्ह नमो समुज्जलगुणगणमणिनियरसायरमुणिंद ! नियवयणामयअवहरियभव्वमिच्छत्तविसपसर ! ।। २३७९ ।। जे तुह मुणिंद ! कमकमलजुयलममलं सरंति सयकालं । दोगच्चहराइ हवंति धम्मलच्छीए ते ठाणं ।। २३८० ॥
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