Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 108
________________ भरहराया जत्थ परोप्परभिट्टंतखग्गउट्ठतसिहिकणुग्घाया । खज्जोया इव विलसंति बहलरयकंपिए सूरे || १९८६ ।। जत्थ य सव्वलकुंतासिधेणुचक्कासिसत्तिसरहत्था । धावंति कयंतभड व्व मारणट्ठाइ भडनिवहा || १९८७ || संता कट्टता नज्जति सरे न जत्थ य मुयन्ता । भिंदंति तह य सुहडा, परहिययं कामदेव व्व ॥ १९८८ ॥ तत्थेरिसम्मि अइदारुणम्मि जुज्झम्मि वट्टमाणम्मि । नित्थामाई दोण्ह वि जायाइं बलाई काले || १९८९ ।। (कुलयं) तो नमिविनमी सयमेव दो वि भरहेसरेण सह लग्गा । आइच्चजससमेएण गरूयविज्जाबलुम्मत्ता । १९९० ॥ तत्थ वि बहूणि दिवसाणि जाव संगामसागरे पडिया । न लहंति कह वि पारं, तावऽन्नदिणम्मि भरण || १९९१ ।। भरावूरियमाणसेण जालाकलावदुप्पेच्छे । गहियम्मि चक्करयणे, तेसिं दोन्हं वि हणणत्थं ॥। १९९२ ।। आगंतूपासु निवडिया भरहनरवरिंदस्स । आणं अप्पडिहयसासणस्स सम्मं पउिच्छंति || १९९३ || बारससंवच्छरिएण तेण अइदारुणेण जुज्झेण । ते निज्जिया समाणा, कोसलियाई च ढोइति । १९९४ || तहा हि ७७ I विमी इत्थीरयणं, गहाय समुवट्ठिओ नरिंदस्स । रयणाणि विविहरूवाणि देइ नमिखयरनाहो वि ।। १९९५ ।। भरसरो उ चक्की, उचियं काऊण ताण सम्माणं । ठविऊण खयरचक्कित्तणे य ते दो वि सेणिदुगे || १९९६ ।। खंडप्पवायनामं, जाइ गुहं तयणु तत्थ देवो य । सिरिनट्टमालनामो, वसीकओ नियपभावेण । १९९७ ।। तीए च्चिय नीहरिओ, गंगाकूलम्मि तयणु नवनिहिणो । नेसप्पाईआ बिंति सहरिसं तस्स पुन्नेहिं ॥ १९९८ ॥ नवजोयणवित्थिन्ना, बारसजोयणपमाण आयामा । जोयणअट्ठयउच्चा पक्कट्ठपइट्ठिया सव्वे ।। १९९९ ॥ वेरुलियमणिकवाडा, कणयमया विविहरयणपडिपुन्ना। मंजूसासंठाणा, हियइच्छियवत्थुसंजणया || २००० || पलि ओवमट्ठिईया निहिसरिनामा य तेसु खलु देवा । तेसिं ते आवासा, सुक्किलया अहियसत्तेया ॥ २००१ ॥ तत्थ ठिओ भरहनिवो सेणावइणो पयच्छई आणं । दाहिणगंगानिक्खुडपसाहणट्ठाए नट्ठरिऊ ।। २००२ ।। तागंतूण इमो वि हु, भरहनरिंदस्स गाहिउं आणं । सव्वत्थ वि अक्खलियं, संपत्तो पुण वि सट्ठाणं || २००३ || एएण कमेणेवं, वाससहस्सेहिं सट्ठिसंखेहिं । भरहो भरहक्खेत्तं जिणिऊण विणीयमणुपत्तो । २००४ || बारसवासाणि तहिं, जाओ रज्जाभिसेयगरुयमहो । तस्सऽवसाणे य तओ, विसज्जिया राइणो सव्वे ॥ २००५ ॥ नियनियठाणेस गया, राया वि सरेइ तो निययवग्गं । दंसिज्जंति निएल्ला कमेण लहुगरुयगरुययरा || २००६ || एवं परिवाडीए, पसिया सुंदरी तओ दिट्ठा। सा पंडुच्चायमुही दुब्बललायन्नझीणतणू || २००७ ।। साय किर जम्मि दिवसे, वयगहणकज्जउज्जमा वि भरहेण । धरिया तप्पभिदं चिय, आयंबिलतवरया जाया || २००८ तो सुसियतं दठ्ठे, रुट्ठो कोडुबिए भणइ एवं । किं मज्झ गिहे वेज्जा, न संति अह भोयणं नत्थि । २००९ ।। जेणेयारिसरुवा, जाया एसा तओ य ते बिन्ति । देव ! इमा निययतणुं सोसइ आयंबिलेहिं सया || २०१० || तो पेम्बंधो सो जाओ तीय उवरि भणिया य । सा तेण सुयणु ! जइ ते रुच्चइ तो चिट्ठसु सुहेण || २०११ || भोगसुहमणुहवंती, मए समं अह न तो तुमं गंतुं । तायस्स पायमूले, अणवज्जं लेसु पव्वज्जं ॥। २०१२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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