Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 119
________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं सा वि हु वंतरदेवी अक्खित्ता तस्स निम्मलगुणेहिं । उवसंतमणा जाया, भत्तिब्भरनिब्भरा तम्मि ॥ २२७७ ।। अन्नम्मि दिणे साहुस्स तस्स सज्झायझाणनिरयस्स । निक्कारणकरुणारसवसेण एयारिसं जायं ॥ २२७८ ।। तहा हि - एगो दियस्स पुत्तो, वंठकलत्तम्मि गाढमणुरत्तो। तम्मि च्चिय देवउले संपत्तो तं गहेऊण || २२७९ ।। तेण समं, एगंते खणमेत्तं जाव अच्छई एसो। निब्भरकीलासत्तो, तत्तो भवियव्वयावसओ ॥ २२८० ।। तत्थेव समायाओ, तब्भत्ता पेसणाओ कत्तो वि । वलिओ दळूण पियं, तेण समं कोवरत्तच्छो ॥ २२८१ ॥ तं बंधिऊण बंभणपुत्तं भज्जं च धरिय बाहाहि । नीहरिओ देवउलाओ दो वि काऊण ते पुरओ ॥ २२८२ ॥ सिरिचंडसेणरन्नो, गओ सगासं निवेइओ सव्वो । वुत्तंतो तो रुट्ठो राया दुन्हं पि ताणुवरिं ॥ २२८३ ।। भणियं दिएण नाहं, नरिंद ! कारी इमस्स कम्मस्स । एमेव देविदंसणकएण देवउलमणुपत्तो ॥ २२८४ ।। एत्थं च जइ न पत्तियह अत्थि ता तत्थ मुणिवरो एगो । तं पुच्छह स महप्पा, जहट्ठियं साहिही तुम्ह ॥ २२८५ ।। एवं च वइयरं से, तप्पिउणा जाणिऊण कत्तो वि । गंतूण मुणिसमीवं. भणियं पाएसु पडिऊण ।। २२८६ ।। मुणिनाह ! जीवरक्खं, करेसु मह पुत्तयस्स एत्ताहे । वियरेसु पाणभिक्खं अच्चंतदयालुओ होउं ॥ २२८७ ॥ पयईए चेव मुणिणो हवंति करुणापवाहसुहचित्ता । न हु ससहरस्स किरणा सिसिरत्ते कारणावेक्खा ॥ २२८८ ।। तुम्हारिसा वि मुणिवर ! जइ पुण काहिंति नेय दुक्खियणे । अणुकंपं ता दीणाण होज्ज सरणं किमेत्थ जए ।। २२८९ एत्थंतरम्मि रन्ना आगंतूणं स पुच्छिओ साहू । को वइयरो इमाणं मुणिनाह ! कहेसु सब्भावं ॥ २२९० ।। तो निक्कारिमकरुणापहाणचित्तेण जंपियं मुणिणा । निद्दोसाइं वि नरनाह ! कह णु पीडेसि एयाई ॥ २२९१ ।। मुक्काई सदोसाई वि तो नरनाहेण ताई तुट्टेण । मुणिवयणाओ दोन्नि वि निद्दोसाइं ति कलिऊण ॥ २२९२ ।। वंठो विलक्खवयणो, संजाओ तयणु सो वि तो मुणिणा। तह कह वि हु पन्नविओ, निरणुसओ जह मणे जाओ। २२९३ निक्कारिमकारुन्नं मुणिणो दठूण दियवरस्स सुओ। सह पिउणा पडिबुद्धो, पडिवज्जइ उत्तमं धम्मं ॥ २२९४ ।। वंठस्स य जा महिला, सा वि य सुस्साविया तया जाया । परपुरिसाओ निवित्तिं, जावज्जीवं पवज्जेइ ॥ २२९५ ॥ मुणिणा पुण तेणेव य, दयाइ भणिएण अलियवयणेण । निम्मायत्तं हणियं, विसलेसेणेव परमन्नं ॥ २२९६ ।। तुच्छं पि अणुचियं खलु, जिणधम्मे सव्वसंजमविघायं । कुणइ अओ च्चिय भणियं गुत्ती सव्वत्थ कायव्वा ॥ २२९७ तप्पच्चयं च कम्मं, बद्धं थीभाववेयणिज्जं जं । चरिऊण पुणो चरणं, वरं च विहिमरणमणुपत्तो ॥ २२९८ ॥ तत्तो य महासुक्के, उप्पन्नो सुरवरो महिड्ढीओ। सत्तरससागराऊ, समुवज्जियसुकयसंभारो ।। २२९९ ।। देवभवउचियसोक्खं, अणुभविऊणं तओ चुओ संतो । थीवेयणिज्जकम्माणुभावओ सो तुमं जाया ।। २३०० ।। सो य तुमं पुव्वब्भासजोगओ पयणुरागदोसुदया । जीवेसु दयाजुत्ता जुत्ताजुत्तत्थसविवेया ॥ २३०१ ।। बहुखवियदुट्ठकम्मा, कम्मखओवसमपत्तसम्मत्ता । भवजलहितीरपत्ता, दुक्कडलेसस्स मा भाहि ।। २३०२ ।। नियपिययमगुणउ च्चिय, जेण तुमं पाविऊण सुजइत्तं । एयस्स काहिसी खयं, दुक्कडलेसस्स धम्मरए ! ।। २३०३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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