Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 114
________________ भरहराया अहह मह निव्विवेयत्तमेत्थ जं गुणगुरूण भाऊण । संके पणामकरणे वि अत्तणो किं पि लहुयत्तं ॥ २१४६ ॥ विणओ गुणाण मूलं, विणओ गरुयत्तणं पयासेइ । मयवसवत्तीण पुणो, कह णु गुणा कह णु गरुयत्तं ॥ २१४७ ॥ भणियं च - विणओ सासणे मूलं, विणओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो को तवो ॥ २१४८ ॥ विणओ आहवइ सिरिं, लहइ विणीओ जसं च कित्तिं च । न कयाइ दुव्विणीओ सकज्जसिद्धिं समाणेइ ।। २१४९ ॥ विणओ मूलं गरुयत्तणस्स मूलं सिरीए ववसाओ। धम्मो सुहाण मूलं, दप्पो मूलं विणासस्स ।। २१५० ।। तो जामि सामिपासम्मि भाउणो पणिवयामि गंतूण । अहयं मद्दवअंकुसनासियगुरुमाणकंदप्पो ॥ २१५१ ।। इय चिंतिऊण चलणं, उप्पाडइ जाव तत्थ गमणत्थं । ता निक्कस्सायचित्तस्स तस्स सियझाणमुल्लसियं ॥ २१५२ ।। तेण पलयानलेण व निद्दड्ढे घाइकम्मवणगहणे । सासयमउलमणंतं, उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ २१५३ ।। सामिसयासं पत्तो, ताहे तिपयाहिणाओ दाऊणं । तित्थस्स नमो भणिउं केवलिपरिसाए उवविट्ठो ॥ २१५४ ।। तप्पभिई भरहो वि हु अप्पडिहयसासणो भरहवासे । अणुहवइ देवराओ व्व पमुइओ चक्कवट्टिसिरिं ॥ २१५५ ।। तहा हि - अच्छेरयभूयाई चोद्दसरयणाई दिव्वरूवाई । एगिंदियाई सत्त उ, सत्त उ पंचिंदियाइं से ॥ २१५६ ॥ जक्खसहस्साहिट्ठियमेक्केक्कं तेसु आसि वररयणं । अन्ने दोन्नि सहस्सा, जक्खाणं अंगरक्खकरा ।। २१५७ ॥ सोलसजक्खसहस्सा. एवं सन्नेज्झकारिणो निच्चं । तद्दगणा तस्स वसे, रायाणो मउडबद्धा य ।। २१५८ ।। जणवयकल्लाणीणं अणुकल्लाणीण तह य पत्तेयं । बत्तीसई सहस्सा, सप्पडिहेरा य नव निहिणो ॥ २१५९ ।। करडयडगलियअणवरयमयजलासारसित्तभूमीण । पाउसजलवाहसमप्पहाणगिरितुंगदेहाण ।। २१६० ।। जियसजलजलयगंभीरगज्जिगुरुरावबहिरियदिसाण । चउरासीईलक्खा, गयाण वरलक्खणजुयाण ॥ २१६१ ।। मुहमंडलेसु निम्मंसयाण पच्छिमपएसु पीणाणं । उच्चत्तेणं संजणियगरुयगिरिटंकसंकाण ॥ २१६२ ।। एवं एत्तियलक्खा, तुरगाणं विजियपवणवेगाणं । वग्गंतवग्गुवग्गा तियम्मि कोसल्लवंताण ॥ २१६३ ।। पवणपहल्लिरऊसियसेयपडायापडंचलमिसेण । तज्जंति सूररहमंगुलीहिं जे दूरवत्थमिमं ॥ २१६४ ॥ चुलसीइसयसहस्सा, ताण रहाणं तुरंगवोज्झाण । तह सत्थसुप्पसत्थाण सुपडिउत्ताण अणवरयं ।। २१६५ ॥ गुणवियअसेसपहरणगणाण तुरयाइसिक्खदुक्खाण । पडिभयपयट्टगव्वावहारकरणेक्करसियाण ॥ २१६६ ॥ साहसवसतोसियसामिसययसम्माणपत्तकित्तीण । छन्नउईकोडीओ, भडाण अइभत्तिमंताण ॥ २१६७ ॥ तिन्नि सया तेसट्ठा, सूयाराणं स सिप्पकुसलाणं । छप्पन्नअंतरजला, अउणापन्ना कुरज्जाण ।। २१६८ ।। बावत्तरि सहस्सा, नगराणं करविवज्जियाणं च । छन्नउईकोडीओ, सुहगुणगामाण गामाणं ।। २१६९ ।। बत्तीस पत्तबद्धाण तह य वरतरुणिनाडयाणं च । बत्तीसई सहस्सा, सेणिपसेणीओ अट्ठारा ॥ २१७० ।। बत्तीसं च सहस्सा, पहट्ठलोयाण पवरदेसाण । खेडयसयाई सोलस, संवाहसहस्स चोद्दसगं ।। २१७१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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