Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भरहराया
हाओ कयबलिकम्मो, सियवत्थाहरणसोहियसरीरो । सियगयरयणारूढो सियचमरविइज्जमाणो य || २०९३ || धरियधवलायवत्तो, मागहजणघुट्ठजयजयारावो । मंगलगीयपगाइरसन्निहियविलासिणीसत्थो । २०९४ ।। अणुगम्ममाणमग्गो, हयगयरहजोहसयसहस्सेहिं । वज्जिरविविहाउज्जो, विणीयनयरीओ नीहरिओ ।। २०९५ ।। (चक्कलयं) अह तुरयखरखुरुक्खयखोणिरयच्छाइया दस दिसाओ । दंसंति तम्मि चलियम्मि एगरूवं व सव्वजगं || २०९६ || अन्नं च खरखुरुक्खयरयरेणू नहयलाओ निवडंता । भाविभडक्खयउप्पायपसुवरिसं व दंसिंति ॥ २०९७ ॥ उट्ठति तह य हरखुरखम्मतारयकणा महियलाओ । मयगलदाणजलेणं, सिच्चंता उवसमं पत्ता ॥। २०९८ ।।
तहा
भग्गे दिप्पिसरे रहसयचक्खुक्खयाइ धूलीए । सेणाजणा विसन्ने, न तस्स निवुन्नए मुणए || २०९९ ।। मयगलगंडयलझरंतदाणसंसित्तमहियलाभोगे । कडयम्मि तस्स चलिए, सरंति नवपाउस लोया ।। २१०० ॥ संभिट्टपक्कपाइक्कचक्कचक्काइपहरणपहारा । सिबिरम्मि तस्स ऊसुयभडाण समणं पडिखलति ॥ २१०१ ॥ इय कित्तियं च भन्नइ, चलिओ चउरंगिणीए सेणाए । भरहनरिंदो इंदो व्व सहइ पडिवक्खउवरिम्मि ।। २१०२ ।। वच्चंतो स कमेणं, अणवरयपयाणएहिं संपत्तो । अखलियपयावपसरो, संधिं जा निययदेसस्स ।। २१०३ || बाहुबली विवियाणिय वावसियसयासओ तया गमणं । नीहरिडं नियनयरीओ देससंधीए संपत्तो ॥ २१०४ ॥ दोह वि अग्गाणीयाण लग्गमाओहणं तओ तत्थ । भाणइ दूयमुहेणं, बाहुबली तयणु भरहनिवं ।। २१०५ ॥ तं च अहं च दुवे विहु, वट्टामो रज्जकखुया दूरं । ता किं इमिणा लोएण निरवराहेण निहएण || २१०६ || जुज्झता दोह वि, अम्हाणं जो जिणस्सई को वि । तस्सेव होउ रज्जं, तो भरहो भणइ होउ इमं ।। २१०७ ॥ तयतरं च दूओ, तं बाहुबलिस्स कहइ गंतूण । सो तुट्ठमणो भरहस्स अंतियं आगओ भणइ || २१०८ ।। तुम्हे अम्हं भाउ ! उत्तमजुज्झेण जुज्झिउं जुत्तं । एवं होउ त्ति तओ, पडिवन्ने भरहनाहेण ।। २१०९ ।। बाहुबली हट्ठमणा दिट्ठिजुज्झेण जिणइ तं झत्ति । वायाजुज्झं भरहो ता काउं तत्थ आढत्तो ।। २११० ।। तमिवि बाहुबली तं निज्जिणइ पयंपई तओ भरहो । न हु एरिसजुज्झेहिं, जायइ जयहारिमज्जाया ।। २१११ ।। तो बाहुजुज्झमसमं काहामो जयपराजयववत्था । निव्वडइ जओ तुरियं, बाहुबली चिंतए तयणु ॥ २११२ ।। अच्चंतरज्जकंखी मह भाया एस तेण देइ मणं । हीणयरम्मि वि जुज्झे, उत्तमजुज्झं पमोत्तूण || २११३ ॥ ता बाहूहिं वि जुज्झं करेमि इमिणा समं अहं इण्हि । अन्नह असमत्थं चिय मं गणिही एस दुट्टप्पा || २११४ ।। इय चिंतिऊण लग्गो, बाहाहिं तहिं पि निज्जिओ भरहो । मुट्ठीहिं पहरमाणो, तत्थ वि हेलाए विजिओ सो || २११५ दंड घेत्तूण तओ, पहाविओ रोसफुरफुरंतोट्ठो । तत्थ वि विजिओ अहवा, भग्गपइन्नाण कत्थ जओ ? || २११६ || भणियं च
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पढमं दिट्ठीजुज्झं वायाजुज्झं तेहव बाहाहिं । मुट्ठीहि य दंडेहिं य, सव्वत्थ वि जिप्पए भरहो || २११७ || तो सो विलक्खचित्तो, चिंतइ चक्की भवामि किं नाहं । सव्वत्थ वि जेण अहं, हारेमि इमस्स अंगेण || २११८ ॥
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