Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिचंदप्पहजिणचरियं नियसुंदरे विणिज्जियजयं पि जातं न पेच्छइ वराई । कमलदललोयणा वि हु, सा परमत्थेण जच्चंधा ।। ९१७ ।। पत्तियसि जं न मझं, एत्थत्थे सामि ! कंपि नियपुरिसं । पच्चइयं ता पेससु, जो तं गंतुं पलोएइ ।। ९१८ ।। तो अन्ननिव्विसेसं, मुहरयनामं नियाणुचरमेसो ! तीए च्चिय सह पेसइ, तव्वयणस्सावसाणम्मि ॥ ९१९ ।। एसो वि तत्थ गंतुं, सव्वावयवाणुगामिणिं तीसे । दळूणं स्वसिरिं, जाणिय तस्सुवरि रागं च ॥ ९२० ॥ आगंतूणं साहइ, तो दत्तो मयणबाणहयहियओ । कह कह वि गमइ दियह, चवलागमणं नियच्छंतो ॥ ९२१ ।। एत्थंतरम्मि दुट्ठाए चेट्ठियं तीए दठुमतरतो । रोसेण व अत्थायलसिहरंतरिओ रवी जाओ ॥ ९२२ ।। लज्जाइ व तिमिरपडावगुंठिएसु य दिसावहुमुहेसु । दटुं व तीए चरियं, उम्मीलियतारए नढे ।। ९२३ ।। रन्नो वियारवेलासेवाइ गयम्मि मूलदेवम्मि । दत्तो पओससमए, मयणेण व मुहरएण जुओ ।। ९२४ ॥ उक्कंठाइ व चवलाए चालिओ कसिणकंबलावरणो । कयवेढयसंकेयं, जच्चंधं कामए गंतु ॥ ९ः
। ९२५ ॥ खणमेत्ताओ गयम्मि य, सट्ठाणं तम्मि राउलाहिंतो । आगम्म मूलदेवो, तहेव तं जोयए जाव ।। ९२६ ।। परपुरिससंगदूसियअंगं तं ताव पासिउं हियए । परिभावइ नूणमिमा, अज्ज विणट्ठ त्ति पडिहाइ || ९२७ ।। अहवा सयावि अहयं, जाणामि च्चिय इमाण दुट्ठत्तं । एत्तो च्चिय परिणयणे, वि आयरो नो मए विहिओ ।। ९२८ जं पि इमं जंपिज्जइ, पुरिसविसेसा सईओ असईओ । नारीओ हुंति तं पि हु, न होइ एगंतियं किंचि ॥ ९२९ ।। नीसेस धुत्तचूडामणि त्ति अहयं जयम्मि विक्खाओ । ता जइ मज्झ वि गेहे, एवं तो धुत्तयाए अलं ॥ ९३० ।। इय चिंतितो य इमो, न भुजई नेय रमइ न य सुयइ । केवलमंतो खेयानलेण हिययम्मि डझंतो ।। ९३१ ॥ सरयसमयम्मि पंको व्व पइदिणं सोसमेइ तावेण । चिन्तइ य मह गिह च्चिय, एवं अन्नत्थ वि उयाहु ॥ ९३२ इय चिंतिऊण पइविवणि पइगिहं पइपहं पइनिवाणं । दटुं महिलाविलसियमलक्खियं भमइ सो धुत्तो ।। ९३३ तो विहरंतो पेच्छइ, कत्थइ नरनाह हत्थिणो मिठं । दढपोढदेहबंध, भोगपयं पउरदव्ववयं ॥ ९३४ ।।। तो चिंतइ होयव्वं, इमिणा मह ईसरस्स घरिणीए । कीयवि वभिचारगयाए नूण तो एस एरिसओ ॥ ९३५ ॥ इय चिंतिऊण सुवणच्छलेण पावरियकंबलो तत्थ । पडिऊण जाव अच्छइ, ता जायं जामिणीमज्झं ॥ ९३६ ।। एयम्मि य समयम्मी, विक्कमसूरस्स राइणो देवी । पाणेहितो वि पिया, चेल्ला समुवागया तत्थ ॥ ९३७ ।। अणुचरियाए बहुविहभोयणपडिपुन्नभोयणकराए । संगहिय सीयजलकरवयाए अणुगम्ममाणपहा ॥ ९३८।। (जुयलं) आगयमेत्तं च तयं, दुगुणीकाऊण करिवरत्तमिमो । अच्छोडिय अच्छोडिय, तीए सरोसं भणइ एवं ।। ९३९ ।। आ पावे ! कीस तुमं, एत्तियवेलाए आगया एत्थ । किं जाणसि न हु एवं, खिज्जिहइ पडिक्खमाणो सो ॥ ९४० सा वि तयमणुणयंती, जंपइ मा कारणं विणा कुप्प । जम्हा अम्हागमणं, छलं विणा वल्लह ! न होइ ।। ९४१ ता उवविस भुंज तुमं, इय भणिउं तस्स अग्गओ धरिउं । तं भोयणपडिपुन्नं, भायणमिह भोयए तं च ॥ ९४२ कयभोयणेण पच्छा, तंबोलपयाणपुव्वमणुहविउं । सुरयसुहं तेण समं, खणमेक्कं तो गया सगिहं ।। ९४३ ।। एयं च सव्वमवि तेण तत्थ दठूण मूलदेवण । तच्चिट्ठियं मणायं, परिचत्तो चित्तसंखोहो ।। ९४४ ।।
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