Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 71
________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एवं च मूलदेवेण दत्तयाई विडंबिया कह णु । जं परिपुट्ठे तुमए, तं कहियं तुज्झ नरनाह ! || १०२७ ।। एवं तिहावि अइरुदविवागरूवो, रागो मए नरवरिंद ! निवेइओ ते । एयस्स जे न हु गया वसवत्तिभावं, तेसिं सुहाई सयलाई अणिट्ठियाई || १०२८ || इय सोउमजियसेणो, भणइ मुणिदं जहट्ठियं साहु । कहियं रागसरूवं, तुमए अम्हं परिगयं च ।। १०२९ ।। ता एय जिणणदक्खं, नियदिक्खं देसु अम्ह पसिऊण । वयगहणमंतरेणं, न पारिमो जेण जेउमिमं || १०३० || तो मुणिणा संलत्तं, होसि न अज्ज वि तुमं वयग्गहणे । जोग्गो होयव्वं चक्कवट्टिणा जेण किर तुमए । १०३१ ता होसु निच्चलमणो, जिणुत्ततत्तत्थसद्दहाणम्मि । तिविहं तिविहेण परिच्चयित्तु मिच्छत्तसब्भावं ॥ १०३२ ॥ पडिवज्जसु जिणनाहं, देवत्तेणं गुरू य मुणिवसभे । तो तुज्झ वयग्गहणं, पि होहिई पच्छिमवयम्मि || १०३३ || ४० भणिए मुणिवणा, सिक्खं गहिऊण भत्तिभरकलिओ । अभिवंदिऊण मुणिवरमह चलिओ नियपुरीहुत्तं ॥ १०३४ संपत्तो स कमेणं, महिंदरायस्स सह नरिंदेहिं । विज्जाहरवंदेण य, समन्निओ नियपुरीए बहिं ।। १०३५ ।। तं सोउं सकलत्तमुक्खयरिडं पत्तं पुरीए बहिं, लच्छीए महईए भूसियतणुं संजायरोमुग्गमो । निग्गंतूण पियासमं पुरजणेणंतेउरेणं तहा, संतोसप्पसरंतबाहसलिलो घेत्तुं पविट्ठो पुरिं ।। १०३६ ।। तत्थागओ य जणयाइ जणे जणित्ता, आणंदबिंदुकरनिम्मलसोममुत्ती । मायाइदोसरहिओ नियमाउयाए, काउं पणाममसमं स जणेइ तो ॥ १०३७ || तुट्ठो तस्स समागमम्मि समयं बंधूहिं राया तओ, दाविंतो अभयप्पयाण मणहं मोतीओ मोयाविउं । आणंदूसवमुत्तमं नियपुरे तं कारवेई लहुं, जं दट्ठूण जणस्स निम्मलयरा धम्मे मई जायए || १०३८ || तयणु गुरुपमोया बंधहेऊम्मि धम्मे, जणियजणथिरत्तो पत्तसम्मत्तवित्तो । गमइ अजियसेणो तत्थ संसुद्धचित्तो, गुरुसिरिमणुपतो कालमिंदो व्व सग्गे ॥ १०३९ ।। इय वसणं पि हु पुन्नग्गलाण मुणिऊण संपयामूलं । उज्जमह जणा सुकए, वरजसदेवत्तहेउम्मि || १०४० || इह चंदप्पहचरिए, तइए पव्वम्मि जो समुक्खित्तो। अत्थो जसदेवंके, स एस सव्वो परिसमत्तो ॥ १०४१ || एत्तो अजियंजयनरवइस्स जायं जहा वयग्गहणं । तह भो चउत्थपव्वे, कहिज्जमाणं निसामेह || १०४२ ॥ (चउत्थो पव्वो - ) जोगिगणाणं आणंदरूवमप्पाणगं व अप्पाणं । कुणमाणं निययतणुप्पहाए चंदप्पहं नमह ।। १०४३ || अह पुव्वजम्मकयसुकयकम्मुणा तस्स अजियसेणस्स । मणचिंतियसंपज्जंतसयलसंसारसोक्खस्स || १०४४ ।। कइया विनिययदेसे, समुट्ठिए कंटए समुद्धरिउं । कयसावहाणहिययस्स रज्जकज्जेसु सत्तस्स ।। १०४५ ।। कइया वि दीणदुक्खियजणाणुकंपाए सयलभुवणं पि । कुणमाणस्स कयत्थं, मेहस्स व मेहवुट्ठीहिं ।। १०४६ ।। कइयावि बुद्धिलीणं, सव्वं पि जगं वहति जे हियए । तेहिं सुमंतीहिं समं, मंतणयं मंतयंतस्स ।। १०४७ ॥ कइयावि तुरयगयवाहणाइचिंता वट्टमाणस्स । कइयावि लोयकज्जाई साहमाणस्स विविहारं ॥। १०४८ ॥ कइयावि निययदइयाकवोलपालीसु पत्तवल्लीओ । विरयंतस्स सलीलं, कत्थूरियमाइदव्वेहिं ॥ १०४९ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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