Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय एवमाइ सव्वं पलोइडं भणइ भरहनरनाहो । पुणरवि मरुदेवि पेच्छ अंब ! नियपुत्तवररिद्धिं ।। १९०७ ।। एत्थंतरम्मि तीए, ससलिलजलवाहगज्जिगंभीरो । धम्मकहानिग्घोसो, निसुओ सिरिउसभनाहस्स ।। १९०८ ॥ तं से निसुणंतीए हरिसवसुब्भिन्नबहलपुलयाए । भिन्नं च मोहपडलं नट्ठा नीलीय नयणाणं ॥ १९०९ ।। सा य किर तीए जाया दूसुयसुयविरहनिच्चरुण्णेण । दिट्ठीसु तया जइया, पडिवन्नो जिणवरो दिक्खं ।। १९१० ।। पासंतीए पच्छा, छत्ताइच्छत्तरयणमाईयं । रिद्धिं जणस्स रुइरं बाहजलुप्फुल्लनयणाए । १९११ ।। वयणविसेसाईयं, पाविय सुहझाणपयरिसमउव्वं । खाइयसम्मत्तचरित्तजुत्तभावंतरं पत्ता ।। १९१२ ॥ आरुहिय खवगसेढिं उप्पाडिय नाणमक्खयमणंतं । सेलसिं पडिवज्जिय, सासयसोक्खं गया मोक्खं ॥ १९१३ ।। एसा य आसि निच्चं, वणस्सईकाइएसु किर पुट्विं । बेइंदियत्तमेत्तं पि जेण पत्तं न कइया वि ॥ १९१४ ।। एक्काइ च्चिय हेलाइ संपयं पाविऊण मणुयत्तं । संजाया जिणमाया, पत्ता य सुहेण निव्वाणं ॥ १९१५ ॥ इय अच्छरियब्भूया, एसा अवसप्पिणीए एयाए । जंबुद्दीवगभरहे, पढमो सिद्धो त्ति कलिऊण ।। १९१६ ॥ देवेहिं कया महिमा, तीए देहं च भत्तिकलिएहिं । पक्खित्तं खीरसमुद्दसलिलमज्झम्मि नेऊण ॥ १९१७ ॥ केवलमहिमाअवलोयणेण तायस्स अज्जियाए य । दीहरविओयदुक्खेण हरिससोए अणुहवंतो ॥ १९१८ ।। भरहेसरो वि रायालंकारे मउडछत्तखग्गाई । मोत्तूणालोए च्चिय विसइ समोसरणभूमीए ।। १९१९ ।। तिपयाहिणिऊण जिणं केवलमहिमं करित्तु भत्तीए । वंदित्ता उवविट्ठो निययट्ठाणम्मि उवउत्तो ॥ १९२० ।। भयवं पि कहइ धम्मं सदेव मणुयासुराए परिसाए । सव्वजियाणं नियनियभासापरिणामिवाणीए ।। १९२१ ।। एत्थंतरम्मि पुत्तो, भरहनरिंदस्स उसभसेणो त्ति । संवेगभावियप्पा सुणिउं धम्मं जिणसयासे ॥ १९२२ ॥ पुव्विल्लभवोवज्जियगणहरसन्नामगोत्तकम्मंसो। पडिबुद्धो पव्वइओ, जाओ सो पढमगणहारी ।। १९२३ ।। बंभी य पढमअज्जा जाओ सुस्सावगो सयं भरहो । दिक्खं गिण्हंती सुंदरी य धरिया नरिंदेण ।। १९२४ ॥ इत्थीरयणं होही मह एसा दिव्वरूवलायण्णा । इय बुद्धीए सा वि हु जाया सुस्साविया तत्थ ।। १९२५ ॥ एवं च चउवियप्पो संघो परमेसरस्स संपन्नो । कच्छमहाकच्छाई जे य पुरा तावसा आसि ॥ १९२६ ।। कच्छसुकच्छे परिवज्जिऊण ते वि हु जिणस्स पासम्मि । आगंतूण सहरिसा दठूण जिणस्स परिसं च ॥ १९२७ ।। भवणवइवाणमंतरजोत्सवेमाणियाइदेवेहिं । देवीहि व संकिन्नं पव्वइया ते वि लहुकम्मा ॥ १९२८ ।। तहा - पंच य पत्तसयाई भरहस्स य सत्त नत्तयसयाई । सयराहं पव्वइया तम्मि कमारा समोसरणे ॥ १९२९ ।। दठूण कीरमाणिं महिमं देवेहिं खत्तिओ मिरिई । सम्मत्तलद्धबुद्धी धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥ १९३० ।। सो य किर जायमेत्तो मरीइजालं विमुक्कवंतो त्ति । तेण मरीइ त्ति कयं अम्मा-पीऊहिं से नामं ।। १९३१ ।। पुणरवि वंदित्तु जिणं भरहनरिंदो गओ नियट्ठाणं । तत्थ वि आउहसालाए चक्करयणस्स कारवइ ।। १९३२ ।। अट्ठाहियामहूसवमणहं तस्सावसाणदिवसे य । पुव्वाभिमुहं चक्कं, चलियं राया वि तयभिमुहो ॥ १९३३ ।।
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