Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 77
________________ ४६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जइ पुण जणहासाओ, पमायओ वा नियाओ देहाओ । तं दूरे पि य मुंचसि, सो मरिही सो न संदेहो ॥ ११८५ न मयम्मि तम्मि लाभो, तुह होही न वि य ससुरमाईण । ता जत्तेणं पिययम ! इमो तए रक्खियव्वी त्ति ॥ ११८६ एवं भणिए सव्वं, अब्भुवगंतुं पियाए सो वयणं । पत्तो ससुरसयासं, स मग्गिओ तेण लद्धो य ॥ ११८७ ।। नवरं ससुरेणं सालयाइलोएण तह य सिक्खविओ । सव्वं तहेव पडिवज्जिऊण चलियो सपुरहुत्तं ।। ११८८ ।। आगच्छंतो स कमेण परिचियापरिचिएहिं लोएहिं । पुच्छिज्जइ किं एयं, उरणयं वहसि हिययकयं ।। ११८९ ।। सो भणइ ससुरगेहं, गओ अहं तत्थ एस संपत्तो । गुरुबहुमाणेण अओ, वहिज्जए एव धम्मो त्ति ॥ ११९० ॥ तो लोएण हसिज्जइ, ससुरगिहे सुंदरो तए लाभो । लद्धो इमेण होही, तुब्भं दारिद्दवोच्छेओ ॥ ११९१ ।। तो एसो लज्जतो, वि ताण सिक्खं मणम्मि धारितो । ससुराईणं तं मुयइ नेव पत्तो य नियनयरं ।। ११९२ ।। चिंतइ य एस एत्तियभूमि संपाविओ मए ताव । उरणओ लोएणं, हसिज्जमाणो ण वि पगामं ॥ ११९३ ।। इण्हि थोवं चिय गेहअंतरं ता इमम्मि उज्जाणे । नयरासन्ने धरिउं, एयं वच्चामि नियभवणं ।। ११९४ ।। एत्थ जओ मह बहवे, मित्ताई पुव्वपरिचिया लोया । हसियव्वो तेहिं अहं, समीवधरियम्मि एयम्मि ।। ११९५ ।। इय चिंतिऊण धरियं, तं आरामे गओ सयं गेहं । दिट्ठो य समहिलाए, पुट्ठो य तहिं स झुंटणओ || ११९६ भणियं इमेण मुक्को, नयरासन्नम्मि चेव उज्जाणे । तो भणइ इमा हा हा, हयास एसो मओ होही ॥ ११९७ ।। इय महिलाए भणिए, वलिऊण गओ स तम्मि उज्जाणे । तग्गहणऊसुयमणो, ता जाव तयं पलोएड् ।। ११९८ ।। जइ अत्थिणा वि इमिणा, मुक्को तुममेगगो इमम्मि वणे । मह किं तुमए त्ति विचिंतिऊण जीवेण परिचत्तं ॥ ११९९ दठूणं तयवत्थं, पच्छायावानलेण दज्झतो । बहु सोइउं पवत्तो, किं चत्तो जणुवहासभया ॥ १२०० ।। हा जइ न विमुंचतो, अहमेयं ता महंतलाभस्स । भायणमवस्स हुतो, अभग्गवंतो परमहं हि ।। १२०१ ।। । एमाइ झूरिऊणं, काई वि रोमाई तस्स घेत्तूण । महिलाए अप्पियाई, तीए परिकम्मियाई च।। १२०२ ।। जाओ अप्पो लाभो, समीहियत्थो उ नेय संपन्नो । अविसयविसयाए खलु, लज्जाए इमो परीणामो ॥ १२०३ ॥ एत्थुवणयं पि निसुणसु, झुंटणगसमो हविज्ज इह धम्मो । पुव्वावराविरुद्धो, निदंसिओ जिणवरिंदेहिं ॥ १२०४ ।। वणियसमा तप्पडिवज्जगा य तेसु य कुतित्थियाइहिं । उवहसिया के वि परिच्चयंति पडिवज्जिङ पि इमं ।। १२०५ भज्जाससुराईहि य सिक्खवियो वाणिओ जहा निउणं । तह गुरुयणोवएसो, धम्म पडिवज्जिउमणाण ॥ १२०६ ।। ताण हि एक्करयाणं, अवगणिऊणं गुरूण उवएसं । अबुहजणेणुवहसिया, मुयंति जे पत्तमवि धम्मं ॥ १२०७ ॥ झुंटणवणिओ व्व इहं, हवंति ते दुक्खभाइणो जीवा । नरयाइकुगइपडिया, पयंडपावप्फलोवहया ।। १२०८ ।। जे ऊण निच्छियसार, गहियं पाणच्चए वि न चयंति । धम्ममिणं ते भद्दे ! सुगइसुहाराहया हुंति ॥ १२०९ ॥ ता झुटणवणिओवमसत्ताण न एस होइ दायव्वो । तेसिं चेव हियट्ठा, निद्धाहारो व्व जरियाण ॥ १२१० ॥ एवं सुणिऊणत्थं, दिळंतो सिरिमई तओ आह । को सो गोव्वरवणिओ, जो दिळंतीकओ तुमए ॥ १२११ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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