Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिचंदप्पहजिणचरियं मणुयाणं तिरियाणं च जं तयावरणखयउवसमेण । तं गुणपगरिसपत्तस्स लद्धिरूवं वियाणाहि ।। १२९२ ॥ मिच्छत्तकलुसियमिणं, नाणत्तिययं पि होइ अन्नाणं । जह मज्जदूसियं, पंचगव्वमवि होइ अपवित्तं ॥ १२९३ ।। मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं । माणुसखेत्तनिबद्धं, गुणपच्चइयं चरित्तवओ ।। १२९४ ॥ रिजुमइविउलमईभेयभिन्नमेयं पि भन्नई दुविहं । नवरं इमम्मि संभवइ नेय मिच्छत्तपरिणामो ॥ १२९५ ।। तीयाणागयसंपइ असेसपरिणामपरिणए दव्वे । लोयालोयगए वि हु, अणंतगुणपज्जवे जत्तो ।। १२९६ ।। सा मइमुवओगेणं, मुणंति सययं पि सम्मरूवेणं । तमणंतमपडिवायं, केवलनाणं अणन्नसमं ॥ १२९७ ॥ एवं एयं नाणं, पंचवियप्पं पि बिंति दुविगप्पं । संखेवभणिइ कुसला, पच्चक्ख-परोक्खभेएहिं ॥ १२९८ ।। तत्थोहिन्नाणाई, तियगं पच्चक्खमेव परिकहियं । मइ-सुयनाणे य पुणो, परोक्खमिह जीववेक्खाए ॥ १२९९ ॥
ओहिन्नाणेण जओ, अइंदियाई पि रूविदव्वाइं । जाणंति ओहिनाणी, पच्चक्खं तेसु उवउत्ता ॥ १३०० ॥ मणपरिणामपरिणए, दव्वे मणपज्जवं पि एमेव । घाइचउक्कखउत्थं, केवलनाणं पि नियविसए ॥ १३०१ ।। केवलनाणं इह जिणवरेसु मणपज्जवं सुसाहूसु । अन्नत्थ ओहिनाणं, मई सुयं चेव छउमत्थे ॥ १३०२ ॥ सयनाणं वज्जित्ता, अण्णतरं दाणमत्थि न इमाण । सव्वाण वि नाणाणं. वन्नेमो तेण तं तस्स ।। १३०३ ।। सिद्धंत-तक्कलक्खण-साहिच्चाईपहाणगंथाण । पढणाइउज्जुयाणं, जो अप्पइ पोत्थयाईणि ।। १३०४ ।।
आलावगमाई वा, वियरइ वक्खाणमहव पभणेइ । सुयनाणदाणमणहं, पयट्टियं तेण इह होइ ।। १३०५ ॥ किंच - रागोरगविसगारुडमंतो दोसानलस्स सलिलोहो । अन्नाणतमपईवो, सन्नाणुल्लाससंजणओ ॥ १३०६ ॥ जो अत्थओ जिणिंदेहिं गणहराईहिं सुत्तओ भणिओ । अंगोवंगपइन्नयमाई सो सुद्धसिद्धंतो ॥ १३०७ ॥ तस्सावोच्छेयकए लिहावई पोत्थयाइं जो धन्नो । तेसिं च रक्खणट्ठा, वेंटणयाई पयच्छेइ ।। १३०८ ॥ तप्पडिबद्धे पयरणमाइम्मि व तह पयट्टई जो य । सिद्धते बहुमाणं, उव्वहमाणो अणन्नसमं ।। १३०९ ।। कारइ य जोगवहणं, सामायारिं च सिक्खवइ सव्वं । साहेज्जम्मि य वट्टइ, जोगुव्वहणं करितेसु ॥ १३१० ॥ आहारमाइणा तह, कुणइ उवटुंभमेत्थ निरयाण । सुयनाणदाणमणहं, तेणावि पयट्टियं होइ ॥ १३११ ॥ जो वा नाहियवाइयमाई एयस्स कुणइ उवहासं । एयप्परूवगाणं, च जिणवराईण निण्हवणं ॥ १३१२ ।। सइ सामत्थे तित्थप्पभावणाकज्जउज्जओ होउं । अब्भसियतक्कमाहप्पदलियपरवाइगुरुगव्वो ॥ १३१३ ।। धम्मम्मि थिरीकरणत्थमेव वयणम्मि तस्स मसिकुच्चं । जो देइ तेण वि इमं, पयट्टियं होइ सुयदाणं ॥ १३१४ ।। इय कित्तियं व भन्नइ, जह जह वुड्ढी इमस्स संभवइ । भवियाण मणे तह तह, पयट्टमाणो सुयं देइ ।। १३१५ एवं सुयदाणविही, एसो भणिओ समासओ किंचि । संभवइ जहा दाणं, भवेसु अणंतरमिमस्स ॥ १३१६ ।। सेसाण वि नाणाणं, परंपराए निमित्तभावेण । जणयंतो उवयारं, तद्दाणे होइ हु पयट्टो ॥ १३१७ ॥ नाणस्स दाणमेवं, परूवियं अभयदाणमेत्ताहे । वोच्छामि जहा दिज्जइ, जेहिं जेसिं च पाणीणं ॥ १३१८ ।।
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