Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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४८
सिरिचंदप्पहजिणचरियं
तो वणिएणं भणियं, नरिंद ! जइ अत्थि एवमणुकंपा । मह उवरि तुम्ह ता मे, दावह दोणारलक्खं ति ॥ १२३५ तो आइट्ठो रन्ना, अव्वाहेऊण निययसिरिघरिओ । दीणारलक्खमेयस्स देहि दिन्नं च तेण तयं ॥ १२३६ ।। गहियं इमेण कारावियं च अइगरुयपवहणं तयणु । उक्कुरुडियाण कयवरमाणाविय तं भरावेइ ।। १२३७ ॥ जं मग्गियविहवेणं, वसीकरेऊण तह य निज्जामे । गोमयदीवपहन्न, पसत्थदियहे तओ चलिओ ॥ १२३८ ॥ लोओ य हणइ जह सोहणं खु भंडं गहाय चलियो सि । एएण तुज्झ लाभो, कोडिगुणो सेट्ठि! संभविही ।। १२३९ उवहासेण वि एवं, जणस्स सोऊण सुंदरं वयणं । बंधित्तु सउणगंठिं, संचलियो जलहिमग्गेण ॥ १२४० ॥ पत्तो कमेण गोमयदीवं तं विक्खिरावई तत्थ । सव्वं पि कयवर पवहणाओ कम्मारएहिंतो ॥ १२४१ ।। तो उवहसंति निज्जामगाइया तस्स चेट्ठियं दऔं । इयरो वि अवगणतो, उवहासं ताण तत्थ ठिओ ॥ १२४२ जावागयाओ तव्वासिणीयो गावीओ चरियचारीओ । उवविट्ठाओ तहियं, ओगालेउं पवत्ताओ ॥ १२४३ ॥ रयणीए अवसाणे, उठ्ठित्ता गोमयाइ उज्झित्ता । पुणरवि चारिनिमित्तं, कत्थ वि अन्नत्थ ताओ गया ॥ १२४४ दत्तो वि एगगोणीए गोमयं गिहिऊण एगते । गंतण खिवइ जलणे, दडढम्मि य नियइ रयणाई ।। १२४५ ।। संजायपच्चओ तो, ताणं गावीण गोमयं गहिउं । नियपवहणं भरावइ, कारवई अन्नवहणे य ।। १२४६ ।। ते वि हु कमेण एवं, भराविउं जाइ निययनयरम्मि । पासइ गंतूण निवं, पुट्ठो य तओ नरिंदेण ॥ १२४७ ।। आणीयं किं पि तए, भंडं सो आह गोब्बरो देव ! । रन्ना य गहग्गहियो त्ति कलिय भणिओ तओ एवं ॥ १२४८ उस्सुकं तुह भंडं, तेण वि वुत्तं महापसाओ त्ति । लोओ वि हसइ विविहं, न स-चित्ते कुणइ तं किं पि ।। १२४९ महया विच्छड्डेणं, पवेसियं पवहणं च तुट्टेणं । गंतूणं गिहं पज्जालिओ य सो गोमओ सव्वो ।। १२५० ।। घेत्तूणं रयणाई, थालं भरिऊण नरवइस्स पुरो । काऊण ढोयणीयं, सेसे वि हु के वि विक्कणइ ।। १२५१ ॥ तो रन्नो रिणदाणं करेइ पुव्वं व चायभोएहिं । संपावई य पूयं, जणाओ सो ताए रिद्धीए ॥ १२५२ ॥ एवं च तेण विविहप्पयारहासो जणस्स न हु गणिओ । निच्छयसारेण पहाणकज्जदिन्नेक्कचित्तेण ॥ १२५३ ॥ अन्नो वि हु सविवेओ, तहेव कज्जम्मि निच्चलो होउं । मुक्खजणस्सुवहासं, निवारणं वा न हु गणेइ ॥ १२५४ ता लट्ठ चिय भणियं, झुंटणवणिओवमा न सव्वे वि । गोब्बरवाणियगसमा वि हुंति केई गुरुविवेया ।। १२५५ एयस्स वि दिटुंतस्स उवणओ सहि ! निसम्मउ इयाणि । पत्तयलिहियसरिच्छं, वयणं इह जिणवरिंदाणं ।। १२५६ तप्पडिवत्तिपवन्नो, जो जीवो दत्तवाणियसमो सो । लोओवहासतुल्लं, कुतित्थिजणनिंदणं नेयं ॥ १२५७ ।। उवएसो जणयस्स उ, गुरुवएसो वियाणियव्वो त्ति । जा पुण तहा पवित्ती, धम्माणुट्ठाणसेवा सा ॥ १२५८ ॥ गोमयदीवे गमणं तु जाण जइजणउवासए गमणं । कयवरविक्खिरणं पुण, जईण वसहिप्पयाणाइ ॥ १२५९ ॥ गावीण तहिं दंसणमवगंतव्वं च धम्मियजणस्स । अवलोयणं च रयणाण होइ नाणाइलाभसमं ॥ १२६० ॥ नियपट्टणे गमो पुण, सावगधम्मो गिहत्थभावुचियो । राया य तत्थ जो पुण, सो कुसलो कम्मपरिणामो ।। १२६१ दीणारलक्खलाभो, जो तत्तो सो उ लक्खलाभो त्ति । तत्तो जमुत्तरोत्तरगुणरिद्धिसमुब्भवो सव्वो ।। १२६२ ।। निवपूयपुव्वमूलप्पणं च सविसेसमूलगुणरक्खा । से सिट्ठिउत्तरोत्तरगुणलाभसमो मुणेयव्वो ।। १२६३ ॥
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