Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 91
________________ ६० सिरिचंदप्पहजिणचरियं नीइनिउणेण जेणं, धरणी हयदुन्नया हरियदोसा । अन्नविरत्ता भुत्ता, सइत्तपत्त व्व सगुणेहिं ।। १५५७ ।। वड्ढियललि उवयारं, जो उन्नयपिहुपओहरसुगोत्तं । तरुणिं व धरं भुंजइ, थिरत्तगुणलद्धसक्कारं ॥ १५५८ ।। चक्किसिरिमणुहवंतस्स तस्स अह अन्नया समणुपत्तो । महुसमओ समयपिगाण जत्थ वित्थरइ महुररवो ।। १५५९ हयपउमं गयपत्तं कुवायबलनिच्चकंपियजणं च । निज्जिणिउं सिसिररिउं, महुराया महुरमुल्लसिओ ।। १५६० ।। नवपल्लवकरचरणो, ईसिसमुल्लसियमउलवरदसणो । मंजरिचूडाकलिओ, कीलइ बालो व्व जो भवणे ॥ १५६१ किं च - जणयंतो जणहरिसं, दावितो विरहिणीण बहुदुक्खं । सिक्खाविंतो कलकलयलं च कलयंठकंठीयो ॥ १५६२ ॥ उल्लासिंतो मलयानिलेण सहयारमंजरीजालं । फुल्लाविंतो नवमालियाओ सह मल्लियाहिं तहा ॥ १५६३ ॥ जो वहइ दक्खिणदिसाकामिणिमणिकुंडलं तरणिबिंबं । मलयानिलपेल्लियमिव, उत्तरनहपंगणे पडियं ॥ १५६४ (विसेसय) जो य गुरुपरिमलुप्पीलपयडपसरंतदाणकयसोहो । सहयारमंजरीजालदंतमुसलेहिं रमणीओ ॥ १५६५ ॥ गयवइवित्थारियविरहपावओ वारणो ब्व अइपोढो । अक्खलियो भुवणवणम्मि भमइ भसलालिकयहरिसो ॥ १५६६ ॥ (जुयलं) अवरं च - सुहपुव्वकालमूलो, कुणइ सुहं मणु जणस्स सरओ वि । एमेव य पुण एसो, पेच्छह महुणो गुणसमिद्धिं ।। १५६७ विरहिणिहरिणीकयगरुयविद्दवो लसियकेसरकलावो । किंसुयनहग्गरुइरो, महुमासो सहइ सीहो व्व ॥ १५६८ ।। हिययहरपत्तवल्लीपसाहणं पवरमेस धारिंतो । तरुणिथणाणं रइहरथंभाण य लहइ उवमाणं ।। १५६९ ।। जो न वि मुंचइ माणं, भंजइ तह सुरहिबंधुणो आणं । तस्स वहत्थं व महू, संधइ तरुधणुसुकुसुमपाणगयं ।। १५७० (गीतिका) मंजरिनियरपसाहियसहयारगिहेसु भमइ महुलच्छी । अरुणप्पवालचरणा, महुयररवतुलियनेउरा रावा ।। १५७१ (गीतिका) अन्नं च - कलियविमलंबरं ता, ससहरजोण्हाए एत्थ बहलाए । रयणीसु गयणलच्छी, चंदणचच्चं व अणुहवइ ॥ १५७२ ।। माणिणिमणभवणेसुं, माणरए मलयमारुएण वहरिए । महुनिहियपल्लवकरो, महुयररवमंगलेहिं पविसइ मयणो ॥ १५७३ (खंधो) पेच्छह वसंतसत्तिं, जो कुसुमपरायचुन्नमेत्तेण । मोहंतो भुवणमिमं, करइ कामस्स वसवत्तिं ॥ १५७४ ।। कलकलयलेण कोइलकुलाई जणयंति विरहिसंतावं । परपुट्ठमलिणरूवाण अहव भण केत्तियं एयं ॥ १५७५ ।। हिंडइ चूयवणेसुं, लुटतो पहियहिययसाराई । कलयंठकुलमिसेणं, चरडगणो मयणभिल्लस्स ।। १५७६ ॥ वल्लहसरीरफासो, मयराइरसो सुगंधिणो पवणा । लडहकडक्खा कामिणिजणस्स तह पंचमस्स झुणी ।। १५७७ ।। पंच वि इमे पयत्था, महुसमए पयरिसं परं पत्ता । सयलिंदियसुहहेऊ, होति विलासीण पुण्णेहिं ॥ १५७८ ।। एवंविहे वसंते, पावासुयलोयसोसियवसंते । मुहमुइयमहुयरीबहलरावमुहरीकयदियंते ।। १५७९ ॥ फुल्लियअसोयचंपयकुरवइतिलयाइरुक्खरमणीए । माणिणिमाणुम्महणे, मयरद्धयनिद्धबंधुम्मि ।। १५८० ॥ सो अजियसेणचक्की, चक्कंकुसकमलसंखमाइहिं । वरलक्खणेहिं लक्खियदेहो पविसित्तु वासहरं ॥ १५८१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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