Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 95
________________ ६४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं नियनियभज्जाहिं समं, उज्जाणे तत्थ नायरजणा वि । अनिरुद्धरहप्पसरे, विसंति मयरद्धयगिहे व्व ।। १६५६ ।। सीयलसिणिद्धतरुछाहिया, वि तो वीसमंति खणमेक्कं । रविकिरणुम्हाहियमग्गखेयसेयावहरणत्थं ॥ १६५७ ।। एत्थंतरम्मि - अच्चब्भुयवणसोहं, पेच्छंता विम्हएण ते लोया । सीसे धुणंति सहसा, वम्महसरपहरविहुर व्व ॥ १६५८ ॥ दह्णुज्जाणसिरिं, सव्वोउयपुप्फफलगुणसमिद्धं । विम्हयविम्हरियनिम्मेसदिट्ठिया नाइ ते देवा ॥ १६५९ ॥ नवपल्लवगहणत्थं, काओ वि तो उट्ठियाओ रमणीओ । पुफोच्चयकज्जेणं, अवराओऽपराओ फलहेऊ ॥ १६६० एक्काइ लया निहियं, करकमलं पल्लवस्स बुद्धीए । मुद्धत्तणेण अवरा, गिण्हंती होइ हसणिज्जा ॥ १६६१ ।। निययकरेणं नियपल्लवेण गहिओ असोयसाहाओ। नवपल्लवो पियाए कण्णम्मि कओ य अव कोवायंपिरनयणच्छलेण नं सो य पल्लवे जणइ । सो च्चिय सवत्तिमहिलाण दिट्ठिमग्गागओ चोज ॥ १६६३ ।। (जुयल) एक्काइ सिरं रवितावहारिनवपल्लवुत्थयं सहइ । रइरूवहरणपरिकुवियकामधणुपहररुहिरलित्तं व ।। १६६४ ॥ (गीइया) अन्ना पियहत्थुच्चिणियगुत्थसिरिरइयरम्मवेइल्लमुंडमालाए । आबद्धरुद्धपट्ट व्व सहइ मज्झे सवत्तीणं !। १६६५ (गाहो) वल्लहसहत्थगुत्थोच्छोल्लियवेइल्लफुल्लवरहारो । एक्काए कीरमाणो, कंठे अन्नाए अवहरिओ ।। १६६६ ।। भणियं च किं तुम चिय, एक्का जोग्गा इमाण वत्थूण । अम्हे विमस्स करकिसलयम्मि लग्गाओ चिट्ठामो ॥ १६६७ (जुयल) कुणइ पियनामियलयामंजरिमवरा य उच्चिणेमाणी । कोवुग्गसेयकणोहमंजरिल्लं सवत्तिदेहलयं ॥ १६६८ । (गीइया) अन्नाहिं तिलयकुसुमेहिं विविहमाभरणमुवरयंतीहिं । तिलउ त्ति से पसिद्धी, चिरप्परूढा वि हारविया ॥ १६६९ ॥ कणयच्छविम्मि देहे, चंपगमाला न सोहइ इमीए । इय थणवढे अन्नाइ बउलमालं पिओ ठवइ ॥ १६७० ॥ अन्नाए पुण रमणो, असोयकुसुमाइं कन्नपूरकए । उच्चिणिय भणइ हसिरो, गिण्ह पिए तुममिमाई तओ ॥ १६७१ ॥ रे धिट्ठ ! जीए रत्तो, तुम असोयत्तणेण सोहेसि । तीए रत्तासोयं, देयं उचिओवयाराए ॥ १६७२ ॥ मह पुण एएण विणा, वि कन्नपूरो गुणेहिं तुह जाओ। इय भणइ का वि दइयं, तसाइया तस्स विलिएण ।। १६७३ (विसेसयं) पुप्फोच्चयसमसेयावहारकज्जेण वयणकमलस्स | पल्लवमयम्मि हत्थयलचालिए तालियंटम्मि || १६७४ ।। भमरीण गंधलुद्धाण तरुणदिट्ठीण रूवखित्ताण । मुहसम्मुहागयाणं दोण्ह वि सहि ! कुणसि किं विग्धं ॥ १६७५ इय भणिया निहससयज्झियाइ हसिऊण का वि पडिभणइ । इंदियलोला अन्नेवि विग्घसयभायणं हुंति ।। १६७६ (विसेसयं) गुरुवयणाई व परिणइसुहाई सरसाइं वन्नसाराइं । सहयाराइतरूणं अवराओ फलाइं गिण्हंति ॥ १६७७ ॥ अन्नाओ नियपओहरपमाणए पासिऊण हसिरीओ । मालूरफले गहिउं कंदुयकीलाओ कुव्वंति ।। १६७८ ।। एक्काइ भणइ भत्ता, सुंदरि ! जंबीर-पुंजमाइतरु । फलभारो नमियसिरा तुम व एए पणिवयंति ।। १६७९ ॥ फलपत्तरिद्धिनमिरे सच्छाहे सउणसेविए तुंगे । किंच पिए ! सप्पुरिस व्व पेच्छ एए महारुक्खे ॥ १६८० ॥ अन्नं च अन्नविडवीण असमपल्लवपसूणरिद्धीए । तुट्ठो व्व असोओ सुहफलेहिं रहिओ वि हु असोओ ।। १६८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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