Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिचंदप्पहजिणचरियं
रमणिज्जरयणतवणिज्जरुप्पतउतंबलोहमइयाणिं । गिहिरच्छाणं विविहाण महाकालाओ से जम्मो ॥ १०७७ ।। सर-सत्ति-सेल्लयावल्ल-भल्ल-मुग्गर-मुसुंढिमाईणि । सत्थाणि से पयच्छइ, रिउदप्पहराणि माणवगो ॥ १०७८ पउमनिही उण नाणाविहाणि वत्थाणि चित्तहारीणि । पूरइ से पडिपट्टउलरयणकंबलयमाईणि || १०७९ ।। सोइंदियसोक्खकरं, मणोहरं, तस्स जं च आउज्जं । तं संपज्जइ सयलं पि संखनिहिणो घणतयाई ॥ १०८० ॥ एमाइसमिद्धिसमागमे वि जाओ न से अहंकारो । अहवा वि य रुट्ठो, मणम्मि गव्वो कहिं वसउ ॥ १०८१ ॥ तयणु अणूसुगहियएण तेण सिरिवीयरागचरणाण । काऊण गंधधूवाणुलेवणाईहिं वरपूयं । १०८२ ।। महईए संपयाए, सबंधवेणं निहीण रयणेण । पारद्धा परमपमोयसंगएणं महामहिमा ।। १०८३ ॥ (जुयल) तीए अवसाणम्मि य, सव्वपहाणे दिणे नियगुरूहिं । रज्जाहिसेयविहिणा, ठविओ सो चक्कवट्टिपए ।। १०८४ ॥ भूमंडलं न केवलमूससियं तयभिसेयसलिलेण । हरिसभरनिब्भरं माणसं पि नियपणइवग्गस्स ॥ १०८५ ।। सुपसत्तो सवियासो, मणोहरो निम्मलंबरत्तेण । जाओ न केवलं पुरवहूण निवहो दिसाणं पि ॥ १०८६ ।। न परं गंधायड्ढियभमरोलिमणोहरेहिं कुसुमेहिं । परिपूरिया मही पत्थिवेहिं दिव्वेहिं वि निकामं ॥ १०८७ ।। न परं मित्ताण घराई सययमूसवनिविट्ठचित्ताण । उग्गयकेउसयाई, सत्तूण वि भाविवसणाण ।। १०८८ ॥ वारंगणाण गीयाइएहिं कयविबुहवग्गतोसेहिं । न परं वसुहा सुरवत्तिणी वि रम्मा सुरवहूण || १०८९ ।। नरवइघरंगणे मंगलाइं गायंति गायणा न परं । तुंबुरुमाई वि नहंगणम्मि कलकोइलालावा ॥ १०९० ॥ नरवइपहेसु पंसू न परं समिओ नरेहिं सलिलेण ! गंधोदयवुट्ठीए, तियसेहि वि तयणुरत्तेहिं ॥ १०९१ ।। सीहासणं न केवलमक्कंतं धरणिपावियपइटें । तेण गुरुविक्कमेणं, नीसेसं वइरिचक्कं पि || १०९२ ।। गुरुयणकयाहिसेओ, सो चक्किसिरीए सहइ अहिययरं । रविकरकयसंसंगो, दिणनाहमणि व्व कंतीए ।। १०९३ ।। तह तेण पुन्ननिहिणा, सुएण अजियंजओ वि संजाओ । राईण पुन्नवंताण मउडमाणिक्कसोहधरो ।। १०९४ ॥ अन्नं च पुत्तरयणेण तेण सो पाविओ कयत्थत्तं । गरुयप्पयावकलिओ, दिणनाहो वासरेणं व ॥ १०९५ ।। अह अन्नया य भवणेक्कबंधवो मोहतिमिरदिवसयरो । पयनहससिजोण्हाण्हवियनमिरसुररायसिरमउडो ॥ १०९६ पत्तो सयपहो नाम जिणवरो भवियलोयनिवहस्स । नासंतो नीसेस, मिच्छत्तणंतभवजणयं ॥ १०९७ ।। (जुयल) पुव्वुत्तरदिसभाए, सुरेहिं रइयं च से समोसरणं । सीहासणे निविट्ठो, पुव्वाभिमुहो जिणो तत्थ ॥ १०९८ ।। सोऊण समोसरियं, जिणवसभं चक्कवट्टिणा सहिओ । अजियंजयनरनाहो, नीहरिओ वंदणट्ठाए ॥ १०९९ ।। भत्तिभरनिब्भरंगो, संपत्तो समवसरणभूमीए । मोत्तूण मउडमाई, वंदइ तिपयाहिणा पुव्वं ॥ ११०० ।। तो जिणवरिंदमवलोइऊण सुपसंतरूवसुहकति । हरिसुल्लसंतपुलओ, सपुत्तओ थोउमाढत्तो ॥ ११०१ ॥ जय जयबंधव परमरूव सभभावनिच्चलावास । वासवनयपयपंकय ! कयतिहयणसोह ! जयनाह ! ॥ ११०२ ।। जय निव्वियार ! निम्मम ! नीरवाय ! कलंकमुक्क ! गुणनिलय । नीराय रोगजरजम्ममरणपेरंतसंपत्त ! ।। ११०३ ॥ जय जम्मसमयसम्मिलियसयलसुरनाहमेरुकयन्हवण ! जय गब्भम्मि वि आइमतिनाणलच्छीए कुलभवण ! ।। ११०४
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