Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 52
________________ अजियसेन निवो नियमायरं च सुपवित्तदंसणं पुत्त ! परिहरित्तु तुमं । मुच्छावियलं कत्थ व गओ सि गुरूवच्छलसुवच्छ ! ॥ ५१४ तुज्झावहारएण व सोएण कयत्थियं इमं जाय ! ता नेहि कयत्थत्तं, नियदंसणदाणओ सिग्धं ॥ ५१५ ॥ पयईए अहियधीरत्तधीजुओ वि हु नरीसरो एवं । सुयनेहेणं तव्विरहदूमिओ जाइ पुण मुच्छं ॥ ५१६ ॥ पुण लद्धचेयणो कह वि होइ मुच्छाए वियलिओ पुण वि । पडणुट्ठणे करितो, बीहावइ सयलसहलोयं ॥ ५१७ एत्थंतरम्मि पुण्णोदएण आगरिसिउ व्व तस्सेव । नरवइणो आयासेण आगओ चारणमुणिंदो ॥ ५१८ ॥ अह गयणयलाओ तमुत्तरंतमवलोयए नरवरिंदो । पजलंतं पिव उज्जलपसरियनियदेहतेएण ।। ५१९ ।। नरवइणो मोहतमं व हरिउकामो किमेस गयणाओ । पजलंतो नियतेएण अंसुमाली समोअरइ ।। ५२० ॥ कुमारावहारपिसुणियपुन्नविणासाण किंच अम्हाणं । संहरणत्थमकम्हा, नहाउ सोयामणी पडइ ॥ ५२१ ॥ विप्फुरिय विप्फुलिंगं, सक्केण उयाहु पेसियं कुलिसं । तक्खणभवजगजगडणसोयदइच्चं विणासेउं ॥ ५२२ ॥ किं वा हु कोइ देवो, अइतेयस्सी भवंतरसिणेहा । सुयविरहविहुरपडियं, नरवइमासासिउमुवेइ ॥ ५२३ ॥ एवं जणेहिं स मुणी, ऊहिज्जंतो नरिंदपासम्मि । आगंतूणुवविट्ठो, महासणे नरवइविइण्णे ।। ५२४ ॥ मणयं पणट्ठसोएण राइणा पणमिओ य भत्तीए । मुणिणा वि धम्मलाभो, से दिण्णो उब्भियकरेण ॥ ५२५ ।। तत्तो वत्थेण पमज्जिऊण सुद्धे महीयले राया । उवविसिऊण सविणयं, एवं भणिऊं समाढत्तो ॥ ५२६ ॥ जलवरिसणं व संतावियाण, दिव्वोसहं व रोगीण । मह निहिलहणं व महादरिद्ददुक्खडेयनराण ॥ ५२७ ।। तुह आगमणं मुणिवर ! अम्हाण सुपुत्तविरहतत्ताण । संजायं जम्मंतरसमुवज्जियपुन्नजोएण ।। ५२८ ।। अहवा विणा तवेणं, स एस नासो असेसकम्माणं । जाओ रिउक्खओ वा, विणा वि गरुयं रणारंभं ॥ ५२९ ॥ किसिकम्ममंतरेण वि, समग्गधन्नाण अहव निप्फत्ती । जं तुम्ह दंसणमिणं पहु ! जायमदिट्ठकारणयं ॥ ५३० ।। सक्काओ वि गरुययरं, मए पयं पत्तमज्ज मुणिनाह ! | पुन्नेहिं समहिओ तह जाओ भुयणत्तयाओ अहं || ५३१ जं मह अणुग्गहेच्छाए आगओ परुवयारबद्धरई । तं पुहु अहन्नयाणं, मणोरहाणं पि नो विसओ ॥ ५३२ ।। तं एवं भणमाणं, आह मुणी नरवरस्स अंगाओ । अमयमयवयणरयणाइ उद्धरंतो व्व सो य विसं ॥ ५३३ ॥ भो भो नरिंद ! सुयविरहदुक्खियं पासिऊण तं एत्थ । ओहिन्नाणेण समागओम्हि तवभूसणो नामं ॥ ५३४ ॥ जेणिह निसग्गओ च्चिय, जिणसासणभाविओ जणो होइ । पायं गुणाणुरागी, परदुक्खे दुक्खिओ तह य ॥ ५३५ संसारसरूवविउस्स चरिमदेहस्स निम्मलसुयस्स । नीसेसपयत्थजहट्ठियावबोहस्स तुह राय ! ॥ ५३६ ।। अणुसट्ठी दिज्जंता, पडिहासइ मज्झ दीवएणेव । सपरप्पयाससंजणयतरणिबिंबस्स पायडणा ॥ ५३७ ॥ इह अप्पियपियसंगमवियोगजं सरिसमेव जीवाण । भवसायरम्मि दुक्खं महंबुरासिम्मि सलिलं व ॥ ५३८ ॥ तत्थ य अणोरपारे, उब्बुड्डनिबुड्डणं कुणंताण । अच्छीनिमेसउम्मेसमेत्तयं जइ सुहं किंपि || ५३९ ।। जइ य च्चिय तेण सुएण संगमो कम्मजोगओ तुज्झ । संजाओ तइय च्चिय, विओगहेऊ तओ जाओ ॥ ५४० एत्थं च दूरगमणेण किमिव कज्जं जओ सदेहे वि । संजोगविओगा खलु, खणे खणे अणुहविज्जंति ॥ ५४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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