Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 59
________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं 1 सव्वं पि सुंदरं चिय, होही ता कुणसु मा विसायं तं । इय सिक्खविऊण सहिं, पेसइ तीसे समीवम्मि ॥ ७०३ सयमन्नदिणे उ निवो, पुच्छइ गणयं जहा मह सुयाए । को वारिज्जयदिवसो, कुमरेण समं कहसु एवं ॥ ७०४ गणिऊण तेण सिट्ठे, पुढो पुढो चरणपरिणयणदिवसे । गहिउं ते पूइत्ता, विसज्जिए तयणु जोइसियं ॥ ७०५ | पत्ते वरणयदिवसे, कुमरं आहविय भणइ नरनाहो । तं साहावियकरुणानिहाणमहयं किवाठाणं ॥ ७०६ ॥ सव्वजगवच्छलाणं, तुम्हारिसाण तह भवे जम्मो । अम्हारिसाण पुन्नोदएण जह कप्परुक्खाण ॥ ७०७ ॥ ता कस्स गुणा तुम्हारिसाण न मणोगया सुहं दिंति । कुणइ च्चिय सरयससी, सगुणेहिं जणमणाणंदं ॥ ७०८ || एत्तो च्चिय विन्नत्तिं, करेमि नियकज्जउज्जओ तुज्झ । गुणगणमणिरयणायरससिप्पहा अस्थि मज्झ सुया || ७०९ सा तुझ कए चिट्ठइ, कुणमाणा बहुमणोरहे इहि । एवं च भणइ दासिं पि कुणह मं तस्स कुमरस्स ॥ ७१० मह पिउणो जेण इमं, रज्जं वच्चंतयं व पायालं । उद्धरियं भूमितलं, व विण्हुणा चारुचरिण ।। ७११ ॥ इमिणा अज्झवसाएण बालिया रत्तिदियहममुणंती । न जिमइ न पियइ न सुयइ मईविवज्जासमणुपत्ता ।। ७१२ ।। काऊण दयं ता तीए उवरि वरणयमिसेण अज्ज तुमं । पडिगाहसु आसाए जेण पाणे धरइ एसा || ७१३ ।। इय भणिऊण समक्खं, समग्गलोयस्स कन्नयादाणे । जो कोई विही तं कुणइ उचियकयकुमरसक्का II ७१४ उब्भिन्नबहलपुलयंकुरच्छलेणं तु अजियसेणो वि । उत्तरमकरितो वि हु, अणुमन्नइ पत्थुयं कज्जं ॥ ७१५ ॥ पयणसरपहरजज्जरमणेण कइया विवाहमहदिवसो । होहि त्ति परिगणंतो, दइया संगूसुओ ठाइ ॥ ७१६ ॥ कइया वि फुल्लतंबोल- वत्थ- आभरण-पेसणरयाण । कइया वि चित्तवट्टियविलिहियरुवाइ खित्ताण ॥ ७१७ नियनियअवत्थसंसूयणत्थगाहाइ पेसणपराण । कइय वि कइयावि विचित्तभक्खदाणाइनिरयाण ।। ७१८ ।। वच्चंति जाव कइय वि, दिणाणि संवड्ढियाणुरायाणि । विविहविणोयसएहिं, परोप्परं ताण दोन्हं पि ॥ ७१९ ॥ ताजं जायं एत्थंतरम्मि तं सुणह होउमुवउत्ता । भो भो एत्थेव भवे, पुण्णा पुण्णफलसरूवं ॥ ७२० ।। अत्थि गिरी सुपसिद्धो, विजयद्दो नाम खेयरावासो । नियसिहरसिहुत्तंभियसमीववरजोइसविमाणो ॥ ७२१ ॥ जो य कओ वित्थररुद्धदिसविभागो विसालभूवीढो । विजयद्धसीमकज्जेण तुंगसालो व्व एक्कदिसो || ७२२ || जयस्स कलहोयमयस्स सहइ आसासु फुरियकरनियरो । ससिकिरणनिम्मलो कंचुओ व्व नहसप्पपरिचत्तो ।। ७२३ दक्खिणओ रमणीयं, तत्थ पुरं अस्थि रविपुरं नाम । रुप्पमयदप्पणम्मि व, पडियं सुरलोयपडिबिंबं ॥ ७२४ ॥ खयरचक्काहिवई, पालइ धरणिट्ठओ तयं जेण । अमरिंदेणेव कया, हयपक्खा खयरभूमिधरा ॥ ७२५ ।। अन्नम्म दिने सो नियसहाइ मज्झट्ठिओ नियइ एगं । समणब्भूयं सावगमणुव्वयाई गुणविसिद्धं ॥ ७२६ || तं दट्ठूण सयं चिय अब्भुट्ठाणाइ कुणइ पडिवत्तिं । उचियम्मि मह मईओ, गुरुया ण परं पलोइंति ॥ ७२७ तयणंतरं विसज्जियविज्जाहरबंधुमतिमाइजणो । गुरुविट्ठरोवविट्ठेण तेण उच्चरिय आसीसो ॥ ७२८ ॥ अरूवं किंचि वि सप्पहासवयणेण नरवरो भणिओ । खयरिंद ! मज्झ किर जोगिणो वि तुह उवरि गुरुनेहो || ७२९ नामं पितुज्झ गिण्हइ, जो कोइ वि खयररायसुइसुहयं । जाणामि तस्स सरिसो, न बंधवो को वि मह अन्नो || ७३० २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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