Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जयधम्मनिवो
कुमरो वि अजियसेणो, अलंकिओ जयसिरीए दिव्वाए । देवं विसज्जिऊणं, हिरन्ननामं सठाणम्मि ॥ ७८६ ॥ आसासिऊण खयरे, अवसेसे गाहिऊण नियसेवं । खयरिंदविमाणगओ, दीसंतो पुरजणेण तओ ॥ ७८७ ॥ जयधम्मनरिंदेण य, पहरिसपूरिज्जमाणहियएण । अभिनंदिज्जतो गुरुसिणेहसाराए दिट्ठीए ॥ ७८८ ॥ उदयं लहिउं हरिऊण रिउतमं दुगुणदूसहपयावो । विउलपुरस्स नहस्स व, सो सूरो मज्झमवयरइ ॥ ७८९ ।। अह अन्नदिणेसु पसत्थलग्गवेलाए सुहमुहुत्तम्मि । नीसेसमिलियपरियणकारवियासेसकायब्लो ।। ७९० ॥ जयधम्मो गरुयमहूसवेण कारवइ निययधूयाए । पाणिग्गहणं सिरिअजियसेणकुमरेण हट्टेण ॥ ७९१ ॥ तत्तो य अजियसेणो ससिप्पहाए ससि व्व जोण्हाए । रेहइ कुंदुज्जलकित्तिकिरणभरभरियभुवणयलो ।। ७९२ ।। तीए समं तत्थ पसत्थभोगसंभोगजोगदुल्ललिओ । कइवयदिणाणि गमिउं, अन्नदिणे भणइ नियससुरं ॥ ७९३ ॥ तुम्हाणुमईए अहं, गंतुं इच्छामि नियपिउसमीवं । चिरकालविओगुब्भवदुहग्गिविज्झावणकएण ॥ ७९४ ।। जम्हा जयावहरिओ, अहयं नियपिउसहाइ मज्झाओ । नामेण चंडरुइणा, असुरेणं पुव्ववेरेण ।। ७९५ ।। तप्पभिई चिय जाया, कावि अवत्था पिऊण मह विरहे । जाणामि तं न नरनाह ! जेण भमिओ हमेक्कल्लो ॥ ७९६ कत्थ वि सुहेण कत्थ वि दुहेण कत्थ वि य पोरुसवसेण । ता जाव तुज्झ पासे, संपत्तो रायलच्छि पि ।। ७९७ ता देसु ममाएसं, गंतूणं जेण नियपिउजणस्स । दंसणसुहेण सुहयामि निययमुम्माहियं हिययं ।। ७९८ ॥ इय भणिए भाविविओगदुक्खदूमियमणो महाराओ । पडिभणइ किमित्थत्थे, काहामि तुहुत्तरं अहयं ॥ ७९९ ।। जओ - जाहि त्ति फरुसवयणं, तुरियमुवेहि त्ति आणदाणं च । एत्थेव चिट्ठ पिउकुसलवत्तमाणिस्समहमेव ॥ ८०० ।। एयम्मि पत्थुयस्स तुह विरहहेउ त्ति ता इमं चेव । जुत्तं तुमए सद्धिं, जमागमिस्सामि अहयं पि ।। ८०१ ॥ एवं च कीरमाणे, सेवावित्ती न लंघिया होइ । न य होइ विरहसहणं, अओ इमं चेव कायव्वं ।। ८०२ ।। इय भणिए नरनाहेण तयणु पडिभणइ अजियसेणो वि । हा ताय ! तुहाएसं, पडिच्छमाणे वि मइ निच्च ।। ८०३ किं भणसि सेवगो हं, जं पुण भणियं विओगसहणं नो । संजोगविओगाणं, तत्थ न निययं अवत्थाणं ॥ ८०४ ता पालसु तं रज्जं, एत्थेव ठिओ अहं तु गंतूण । तुज्झाएसेण पिऊण दंसणं देव ! काहामि ॥ ८०५ ।। तो मुक्को नरवइणा, समयं सामंत-मंतिमाईहिं । चउरंगबलसमेओ, विभूसिओ गुरुविभूईए ॥ ८०६ ॥ सह निययपियाए ससिप्पहाए पिउदिन्नगरुयविहवाए । सुपसत्थम्मि मुहुत्ते, चलिओ अह अन्नदियहम्मि ॥ ८०७ धरणिद्धयखयरवहे, वसीकया जे य खेयरा केइ । ताणं दिव्वविमाणे, आरूढो तेहिं सहिओ य ।। ८०८ ॥ अइतुरियं वच्चन्तो, पत्तो सुंदरपुरस्स सो बाहिं । उउकुलभावण नाम, उज्जाणं, मणयतरुरम्मं ।। ८०९ ।। तत्थ य हिंतालतमालतालसज्जज्जुणाइतरुनियरं । ओइण्णो दट्टुं कोउएण सह खयरविंदेण ।। ८१० ।। अवलोयन्तो नाणाविहाण उज्जाणतरुवराण सिरिं । सत्तच्छयछायाए, अह पेच्छइ मुणिवरं एगं ॥ ८११ ॥ झाणम्मि निच्चलमणं, सुपसन्नं चत्तसयलवावारं । तं दठूण कुमारो, समागओ वंदणकएण ।। ८१२ ।।
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