Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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अजियसेननिवो
वच्च धरणिं सो कित्तियं पि ता अग्गओ गिरिं गरुयं । पासइ सुराण सुरलोयचडणसोवाणमग्गं च ॥ ५६८ ( विसेस ) अह तं सो आरूढो, उच्चयरपरक्कमो कमजुएण । अक्कंततदुव्वसिरो, अगम्ममियराण पुरिसाण ॥ ५६९ ।। एत्थंतरम्मि पासइ, सकालिमाए विलिंपर्यंतं व । तं सेलमेगपुरिसं, ससलिलजलवाहकसिणतणुं ॥ ५७० || विगरालरूवकक्कसकायं जमरायभीमदंडं व । भामितं निययकरेण दंडयं भीरुभयजणयं ॥ ५७१ ॥ देहम्मि अमायतं, मुत्तं पिव मच्छरं वमंतमिमं । उज्जलजलंतजलणुक्कडेण वयणेण दाहकरं ॥ ५७२ ॥ मुहकुहरपयडदाढाविलग्गनीहरियथूलगुरुरसणं । अंजणगिरिं व सकरीरकंदरालोलअयगरयं ॥ ५७३ ।। पडिसद्दभरियनीसेससेलविवरं रएण समुवितं । सम्मुहसमीवदेसं, तज्जंतं फरुसवयणेहिं ॥ ५७४ ॥ किं कोइ निययबलगव्वगव्विओ तं सि अहव विज्जाए । दप्पेणं अप्पाणं, सप्पाणमईव मन्नेसि ।। ५७५ ।। जं मह भूमिं अक्कमिउमागओ सुरवराण वि अगम्मं । अवियाणंतो गरुयं, परक्कमं मज्झ दुस्सझं ॥ ५७६ ॥ देवो व दाणवो वा, न मज्झ आणं विलंघिऊण जओ । आगच्छइ कोइ इहं, मज्झ भुयादंडकयरक्खे || ५७७ निज्झरझरंतजलसंगसीयपवणे इमम्मि सेलम्मि । दिणयरकिरणा वि न जं, तवंति तं मज्झ माहप्पं ॥ ५७८ ॥ ता केण विप्पलद्धो, विरुद्धमेवं च कारिओ केण । अप्पवहाए सयण्णो, न किंचि कज्जं अणुट्ठेइ ॥ ५७९ ॥ अहमेत्थ सुरो नणु संवसामि रमणीयतुंगसेलम्मि । ता किह किमिकीडसमो, समागओ कहसु तं एत्थ ? ॥ ५८० अहवा न याणिउ च्चिय, तुमए मुद्धेण अहमिह वसंतो। संतो वियाणमाणा, असमिक्खियकारिणो न जओ ।। ५८१ जइ मुद्धयाइ सच्चं, ता वलसु इमाओ चेव ठाणाओ । पहरंति न मज्झ करा, अयाणुए दीण-दुहिए वा ॥ ५८२ एवं निसामिऊणं सगव्ववयणाई तस्स देवस्स । गुरुकोवफुरफुरंतोट्ठसंपुडो भालकयभिउडी ॥ ५८३ ॥ भणिउं तयं पवत्तो, रायकुमारो अहो सुर ! तए किं । कइया वि न सुयमेवं, वसुंधरा धीरभोज्ज त्ति ॥ ५८४ ॥ ता जइ पराभवो तुज्झ एत्थ अस्थि हु समत्थया का वि । ता होसु सम्मुहो मह रणम्मि किं बहुपलत्तेण ॥ ५८५ गलगज्जियाओ एयाओ तुज्झ पुण मज्झ नत्थि किं पि भयं । भीरु च्चिय केइ परं, इमेण जह भेसिया तुमए ॥ ५८६ ता मंच झत्ति घायं, मज्झ तुमं जेण तुज्झ पडिघायं । अहमवि मुयामि पढमं, पहरामि न कस्स वि अहं तु ।। ५८७ इय पभणंतम्मि नरेसरस्स पुत्ते झड त्ति देवेण । मुक्को आयसदंडो, भीमो जमरायदंडो व्व ॥ ५८८ ॥ तं वंचिऊण एसो विनिययभुयपंजरंतरक्खित्तं । काऊण तं सुरं जाव चंपए निययसत्तीए ।। ५८९ ॥ इमिणा वि ताव कुमरो, नियबाहुबलेण झ त्ति अक्कंतो । एवं परुप्परं ते, देवदइच्च व्व अबिभट्टा ॥ ५९० ॥ (जुयलं ) नाणाविहकरणेहिं, बंधपयारेहिं चित्तरूवेहिं । वज्जोवघायतुल्लेहिं विविहमुट्ठिप्पहारेहिं ॥। ५९१ ।। तह चरणपहारेहिं, कमजायजयं पयंडसत्तीण । दोण्हं वि ताण जायं, रणमंगेणं चिरं कालं ॥ ५९२ ॥
तो सो सुरेण गयणे, करेहिं अप्फालणत्थमुक्खित्तो । अप्पाणं मोयाविय, गहिओ इमिणा उ सो चेव ॥ ५९३ ॥ पक्खित्तो य नहम्मी, तत्तो सो दिव्वकुंडलाहरणो । वरमउडदित्तसीसो, देवंसुयरुइरकयवेसो ॥ ५९४ ।। वरकडयतुडियमंडियभुयदंडो हारभूसियसुवच्छो । कुमरस्स पुरो ठाऊण भणिउमेवं समाढत्तो ॥ ५९५ ॥
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