Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 56
________________ २५ अजियसेननिवो तीएऽणुरत्तहियओ, जयधम्मनरेसरं भणावेइ । राया महिंदनामो, जह मज्झ सुयं इमं देहि ।। ६२४ ॥ सो य न से देइ जओ, तस्स पुरो थेवजीविओ सिट्ठो । नेमित्तिएण एसो, कहिया एसा उ चक्किपिया ॥ ६२५ जयधम्मस्सुवरि तओ, सो रुट्ठो निययसेन्नपरियरिओ। आगच्छइ हारावइ, रणम्मि सयलं बलं तस्स ॥ ६२६ अपहुप्पंतो जयधम्मनरवई तस्स तयणु नियनयरे । पविसित्तु ठिओ रोहगसज्जं तं कारवेऊण ॥ ६२७ ॥ सीमालनिवे इयरोवगाहिऊणं सपक्खमणवेक्खो । तस्स पुरं वेढेऊण तो ठिओ पउरकडएण ॥ ६२८ ॥ परचक्काओ लोओ, संकेतो अत्तणा विणासमिमो । सरणं अपेच्छमाणो, पलाइउं एवमारद्धो ॥ ६२९ ॥ तं सोउं परउवयारकरणवावडमणो त्ति रायसुओ। हिट्ठमणो विउलपुरस्स सम्मुहो चेव संचलिओ ॥ ६३० ॥ वेगेणं गच्छंतो, पेच्छइ परचक्कवेढियं तं सो । जलनिहितरलतरंगक्कंतं वेलाउलपुरं व ॥ ६३१ ॥ बहुकरडिघडासंघट्टसंकडे वरतुरंगरुद्धपहे । रहपहकरपरिरक्खियपरपुरिसपवेससंचारे ॥ ६३२ ॥ बहुविहपहरणपरिकरियपाणिवीरेहिं भीरुभयजणए । निब्भयमणो कुमारो, तओ पविट्ठो तहिं कडए ॥ ६३३ ॥ दीसंतो संकाउलमणेहिं सेणाभडेहिं भयरहिओ । भीमुक्कपहेहिं निसिज्जमाणओ वयणमेत्तेण ॥ ६३४ ।। ता जाइ जा निवावासदारमरिकरिघडा निरुद्धपहं । न लहइ तओ पवेसं, गइंदविंदस्स मज्झम्मि ॥ ६३५ ।। सो हक्किऊण करिणो, तम्मज्झेणेव जाव संचलिओ । तो पयरक्खिनरेहिं, सकक्कसं भणिउमारद्धो ।। ६३६ ॥ भो भो । किं निव्विण्णो, देहाओ अहव जीवियव्वाओ । निस्संको जेण महिंदरायआणं विलंघेसि ॥ ६३७ ॥ काऊण अगण्णसुई, वच्चसि पुरओ य सुणिय ताण इमं । पज्जलियकोवजलणो, पहाविओ एक्कभडसमुहं ॥ ६३८ रे रे ! सरपूरियभत्थएण सममेव मुयसु कोदंडं । अन्नह गओ सि जमरायमंदिरं मज्झ हत्थेण ॥ ६३९ ॥ एमाइ पयंपंतो, हढेण उद्दालिऊण कोयंडं । तोणीरजुयं सव्वेसि तेसि पेक्खंतयाणं पि ॥ ६४० ।। रे रे ! नियपहुणा सह, रक्खह नियजीवियं जइ समत्थि । सामत्थमत्थि तुम्हाण किं पि एवं पुण भणंतो ॥ ६४१ गिरितुंगगयघडामक्कचक्कदुग्गम्मि कडयजलहिम्मि । पडुपवणतरलतरतुरयलोलकल्लोलकलियम्मि ॥ ६४२ ॥ दीसंतो मंदरगिरिवरो व्व पउरेहिं परिभमंतो सो । मुंचंतो य निरंतरसरवुठिं पलयजलउ व्व ॥ ६४३ ॥ को एस हणह बाहासु लेह अहवा गयस्स हत्थेण । पाडावह पोढपहारपडिहयं किं विलंबेह ॥ ६४४ ॥ तरलतरतरयखरखरसएहिं खंदाविऊण वीसासं । गिण्हह इमस्स इमाइ कडयवयणाडं जंपते ॥ ६४५ ।। बाणावलिं खिवंते, विसग्गिजालावलिं विमुच्चंते । दुप्पेच्छसेन्नसुहडे, विमुहे गरुडो व्व कुणमाणो । ६४६ ॥ मयवसविसंतुले गयवरे वि अइगरुयसिंहनाएहिं । मोयाविंतो मयपसरमसरिसं पंचवयणो व्व ॥ ६४७ ॥ अक्खलियगई तावेस आगओ जा महिंदराओ त्ति । कोवपरव्वसदिट्ठी, महिंदराओ वि तं दलृ ॥ ६४८ ॥ निब्भच्छंतो पहरणसयाइं जा गिण्हिऊण पहरेइ । ता एस एकबाणेण हिययमेयस्स ताडेइ ।। ६४९ ॥ तेण य महिंदराओ, मम्माभिहओ जमालयं नीओ । अवितहनिमित्तदिळं, वयणं किं अन्नहा होइ ।। ६५० ॥ सुरकयजयजयसबस्स तक्खण च्चेय किन्नराईहिं । मुक्का कुमरस्सोवरि, नहाओ सुरतरुकुसुमवुट्ठी ॥ ६५१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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