Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 55
________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं भो भो जुवराय ! सुरो, सुरलोयाओ हिरन्ननामो हं । आसि गओ सुरसेलं, सासयजिणपडिमनमणत्थं ॥ ५९६ ॥ तत्तो चलिएण मए, दिट्ठी एसो महागिरी रम्मो । कीलानिमित्तमेत्थं, अवइण्णेणं खणद्वेणं ॥ ५९७ ॥ अवलोइओ तुमं तो, तुज्झ च्चिय साहसं परिक्खेउं । वेडव्वियरूवधरेण जुद्धमेयं समाढत्तं ॥ ५९८ ॥ दिट्ठे च तुज्झ निम्मायपोरुसं तेण मज्झ अक्खित्तं । चित्तं सुपुरिस ! ता किं भणामि दासो म्हि ते तो ।। ५९९ भिच्चावयवेण अओ, कज्जं जं किंचि साहियव्वं ति । तत्थाएसं दिज्जह, सुमरणमेत्तोवओगेण ॥ ६०० ॥ यं तु मं भणियं सक्कुणोमि जह किं पि वरसु वरमिट्ठे । तुम्हारिसाण जम्हा न होइ सिद्धी परायता ॥ ६०१ जइ वेवं तह वि पयत्तसज्झकज्जम्मि कम्मि वि ममं पि । वावारिज्जसु असहाययाण सिद्धी जओ नत्थि ॥ ६०२ अन्नं च तुज्झ परभवसंबंधो वि हु मए समं को वि । अत्थि सुण तं पि एत्तो भवाओ तइए भवम्मि तुमं ॥ ६०३ ॥ सिरिपुरनयरस्सामी, सुगंधिविजयम्मि आसि विक्खाओ । सिरिधम्मनिवो तुह चेव करिसया सूरससिनामा ॥ ६०४ तत्थेव य वत्तव्वा, महाधणा ताण अन्नदियहम्मि । ससिणा खत्तं दाऊं, रयणीए सूरगेहम्मि ॥ ६०५ ॥ घरसारं सव्वं पि हु, अवहरिउं जाणियं च तं तुमए । तो निग्गहिऊण तयं, सूरस्स समप्पियं रित्थं ॥ ६०६ मरिऊण ससी विभवे, कइवि भमित्ता अणंतरभवम्मि । बालतवाई किंचि वि काउं असुरेसु उववण्णो || ६०७ नामेण चंदरूई, पुव्वभवुप्पन्नवेरिभावेण । सो पिउसहाए मज्झाओ तुज्झ अवहारओ जाओ || ६०८ ॥ जो पुण सूरो सो तइरित्थसंजोयणे तुहं मेत्तो । संजाओ सो य अहं, समुवज्जियपुव्वभवपुन्नो || ६०९ ॥ जाओ हिरन्ननामो, देवो मित्तत्तवइरिभावे य । न परो हेऊ मोत्तणुवयारउवयारकरणाई || ६१० ।। ता खमसु मज्झ सव्वं, जेणं तेणावि जं तुमं एवं । खलियारिओ महायस खमाधणा चेव सप्पुरिसा ॥ ६११ ॥ इय सो भणिऊण सुरो, तक्खणमदंसणं समावन्नो । कुमरो वि हु अत्ताणं, पेच्छइ जणसंकुले देसे ॥ ६१२ ॥ तो चिंतिउं पवत्तो, किमेवमच्चभूयं अणुहवामि । कत्थ व एसो देसो, कत्थ व तं सुन्नरन्नं ति ॥ ६१३ ॥ अहवा सुरस सत्ती, अचिन्तरूवा इमा अहं जीए। निम्माणुसाडवीओ, ओयारिय एत्थ मुक्को ति ॥ ६१४ ॥ न य तेण मज्झ किंचि वि, भणियं एमेव आणिओ अहवा । अभणंत च्चिय सुयणा, परोवयारे पयट्टंति ॥ ६१५ एवं चिंतितो च्चिय, पेच्छइ भयवसविसंठुलं लोयं । पुव्वावरदाहिणउत्तरासु धावंतमासासु ॥ ६१६ ॥ ताणं मज्झे एक्को, पुट्ठो तत्तो नरो कुमारेण । भो ! कीस इमो लोओ, पलायए कस्स व भएण ? || ६१७ || सो भइ तुमं किं अंबराओ पडिओ सि अइपसिद्धं पि । जं न मुणसि वत्तमिमं.. ..... ।। ६१८ ॥ एस महायस ! देसो, अरिंजओ नाम एत्थ अत्थि पुरं । विउलं ति सुप्पसिद्धं, जयधम्मो नरवई तत्थ ।। ६१९ ॥ सयलंतेउरसारा, तस्स पिया जयसिरि त्ति नामेण । ताण सुया संजाया, ससिप्पहा नाम विक्खाया ॥ ६२० || ती य निययअणुवमरूवेण विणिज्जिय व्व देवीओ । लोए लज्जाइ न पायडंति पाएण अप्पाणं ।। ६२१ ।। तियसा वि तीए दंसणअक्खित्तमण व्व सव्वह च्चेव । वीसरिऊण निमेसे, अणिमिसनयणत्तणं पत्ता ।। ६२२ ॥ नियरूवविणिज्जियतिहुयणाए किं तीए वन्निमो अहवा । ससिरुइरा जीए तणुं तरइ व लायन्नजलहिम्मि || ६२३ २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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