Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिधम्मनिवो
निव्वासिओ सरज्जाओ सव्वमुद्दालिऊण रज्जसिरिं । पडिसिद्धअन्नदेसट्ठिई वि कंतारमाविसइ ॥ ३५६ ।। (जुयल) पाविय तवोवणं किं पि तत्थ जायाए परिगओ राया । तीय च्चिय आणियवणफलाइकयपाणवित्ती य ॥ ३५७ ॥ अच्छंतो कइयाइ वि, देवीए कुणइ गब्भसंभूई । सुस्सुमिणावेइयपवरपुत्तउप्पत्तिसंजणणिं ॥ ३५८ ॥ देवी पुण पुव्वं पिव, नरिंदकज्जम्मि उज्जमसणाहा । अगणंती गब्भदुहं, सोमालसरीरपीडं च ।। ३५९ ॥ फल-फुल्ल-मूलकंदाइआणणत्थं वणम्मि दूरे वि । वच्चइ ताव स बाहुल्लयाए नियडे तमलहंती ॥ ३६० ।। एवं वेलामासे वि एगदियहम्मि गिरिनिउंजम्मि । जाव गया ता पेच्छइ, नवजाए सीहसिसुनिवहे || ३६१ ॥ तन्नियडे नाणाविहफलपरियरियं तहेव कयलिवणं । सिंही उ कत्थ व गया, वणम्मि भक्खाइ कज्जेणं ॥ ३६२ ॥ एत्थंतरम्मि भयभीयमाणसाए झड त्ति से जुयलं । सुयदारियाण गम्भाओ निवडियं फुरफुरेमाणं ॥ ३६३ ।। तत्तो भएण एसा, नियवक्कलउत्तरिज्जदेसेण । पुत्तं गहिऊण गया, सुया य न य लक्खिया तीए ॥ ३६४ ॥ गयबंधणत्थमेत्थ य, वणम्मि एत्तो य केरलो नाम । राया समागओ आसि तस्स पुरिसेहिं सा दिट्ठा ॥ ३६५ संतट्ठवणमिगी इव, पलायमाणा इमेहिं तो गहिउं । नीया रायसयासे, भणिया रन्ना य ते पुरिसा ॥ ३६६ ।। मुंचह एयं गहिउं, वक्कलबद्धं इमीए जं किंचि । तो तेहिं वि सा भणिया, जाहि तुमं मोत्तुमेयं ति ।। ३६७ ।। तत्तो मोत्तूण गया, एसा तव्विरहदुक्खभयघत्था । केरलनिवो य ससुओ, सिरिकरनियनयरमणुपत्तो ॥ ३६८ ।। सिरिदेवीए समप्पइ, तं तणयं भणइ एस तुह पुत्तो । वणदेवयाए दिण्णो, कहियव्वं कस्स वि न चेवं ।। ३६९ वद्धावणयं तत्तो, कारावइ सो महाविभूईए । जाणावइ य जणम्मी, देवी पच्छन्नगब्भा सि || ३७० ॥ वोलीणम्मि य मासे, तो वणराओ त्ति कुणइ से नामं । वुड्ढि गओ कमेणं, देहेण कलाकलावेण ॥ ३७१ ।। जोव्वणभरम्मि च ठिओ, अच्चब्भुयरूवविमललायण्णो । नय-विणयसीलसुविसुद्धबुद्धिगुणपयरिसं पत्तो ॥ ३७२ अह अन्नया स केरलराएण समं तमेव जाइ वणं । करिबंधणकज्जेणं, पेच्छइ य तहिं भमंतो य ॥ ३७३ ।। उप्पण्णविमलकेवलबलावलोइयसमग्गतइलोक्कं । सुरअसुरखेयराहिवमणुस्सनिवेहेहिं कयपूयं ॥ ३७४ ।। धम्मं सदेवमणुयासुराए परिसाए वागरेमाणं । सव्वण्णुमेगमुणिवरमणंततवतेयदिप्पंतं ।। ३७५ ।। तं दठूण स केरलराएण समं मुणीसरं कुमरो । तिविहेण पणमिऊणं, उवविट्ठो धम्मसुणणत्थं ॥ ३७६ ॥ एत्थंतरम्मि तावसजणस्स मज्झम्मि सो जयनरिंदं । जयसिरिदेवीए जुयं, पासइ साणंददिट्ठीओ ।। ३७७ ॥ बाहजलभरियनयणो, पहरिसपूरिज्जमाणहियओ य । जाओ तहेव ते य वि, तं दर्छ तारिसा जाया ।। ३७८ ॥ अन्नं च तत्थ सुपसंतमुत्तिअवलोयणेण वरमुणिणो । तिरिया वि चत्तवेरा, सुगंति धम्मं विसुद्धप्पा ॥ ३७९ ।। तेस् य खणंतरेणं, नाणाविहतिरियनिवहपरियरिया । ओयरिऊणं सीहक्खंधाओ सकन्नया।
नया एगा ।। ३८० ॥ नवजोव्वणमारूढा, देवाण वि चित्तखोभसंजणणी । अइसाइरूवलायन्नपुन्नसोहग्गगुणकलिया ।। ३८१ ।। पविसित्तु सभामज्झे, दाऊण पयाहिणाओ तिक्खुत्तो । अभिवंदिउं मुणिंदं, उवविट्ठा उचियदेसम्मि ।। ३८२ ॥ दठूण तं कुमारं, पमोयवसगा मणम्मि कुणमाणी । नाणाविहे विगप्पे, कुमरेण तहेव सा दिट्ठा ॥ ३८३ ।।
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